हाल ही में बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा और विराट कोहली का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें वे वृंदावन स्थित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज के आश्रम में 'दंडवत प्रणाम' करते हुए नजर आ रहे हैं। इस वीडियो पर कई लोगों ने कमेंट किया कि महिलाओं को दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए।
इस वीडियो के वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर सवाल उठने लगे कि आखिर महिलाओं के लिए 'दंडवत प्रणाम' क्यों वर्जित माना गया है। इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें भारतीय परंपराओं, शास्त्रों और धर्मग्रंथों में वर्णित कारणों को समझना होगा।
हिंदू धर्म में प्रणाम को ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है। दंडवत प्रणाम, जिसे 'अष्टांग प्रणाम' भी कहा जाता है, व्यक्ति को मन, कर्म, और वचन से भगवान के चरणों में समर्पित करता है। शास्त्रों में दंडवत प्रणाम को पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया गया है।
यह अष्टांग प्रणाम आठ अंगों (हाथ, पैर, घुटने, छाती, मस्तक, मन, वचन और आंख) के माध्यम से किया जाता है। शास्त्रों में यह उल्लेख है कि दंडवत प्रणाम से व्यक्ति एक यज्ञ के समान पुण्य अर्जित करता है। यह व्यक्ति की अहंकारहीनता, समर्पण और ईश्वर के प्रति विनम्रता का प्रतीक है।
वेदों और धर्मग्रंथों में महिलाओं के दंडवत प्रणाम करने की मनाही की गई है। इसके पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक कारण बताए गए हैं:
महिलाओं के गर्भ और वक्ष को हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है। गर्भ वह स्थान है जहां जीवन का आरंभ होता है, और वक्ष वह माध्यम है जिससे शिशु का पोषण होता है। दंडवत प्रणाम करते समय इन दोनों अंगों का सीधा संपर्क धरती से होता है। ऐसा माना जाता है कि यह धरती का अपमान है और इसे धार्मिक दृष्टिकोण से अनुचित माना गया है।
धर्मसिंधु ग्रंथ में एक श्लोक लिखा गया है: “ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्। वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।”
इसका अर्थ है कि ब्राह्मण का पिछला हिस्सा, शंख, शालिग्राम और धार्मिक ग्रंथों को धरती से सीधे स्पर्श नहीं कराना चाहिए। इसी प्रकार, महिलाओं के वक्ष और पेट को भी धरती से स्पर्श कराना वर्जित है।
मान्यता है कि यदि महिलाएं दंडवत प्रणाम करती हैं तो उनकी 'अष्टलक्ष्मी' उनसे छिन जाती है। यह अष्टलक्ष्मी (धन, विद्या, शक्ति आदि) महिलाओं के जीवन में समृद्धि का प्रतीक होती हैं।
हिंदू धर्म में महिलाओं को देवी स्वरूप माना गया है। महिलाओं को धरती पर पेट और वक्ष के बल लेटना अनुचित माना गया है क्योंकि यह उनके पूजनीय स्वरूप को कम करता है।
शास्त्रों के अनुसार, महिलाओं को दंडवत प्रणाम करने के बजाय अपने घुटनों पर बैठकर या सीधे खड़े होकर प्रणाम करना चाहिए। इससे उनकी पूजा पूर्ण होती है और धार्मिक मान्यताओं का भी पालन होता है।