गरम मसाला भारतीय रसोई का एक अनमोल मसाला मिश्रण है, जो हर घर की रसोई में अपने खास स्वाद और सुगंध के लिए जाना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसे 'गरम' मसाला क्यों कहा जाता है?
क्या यह सच में इतना गर्म होता है? या फिर इसके नाम के पीछे कोई वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक कारण है? आइए, जानते हैं इस दिलचस्प सवाल का जवाब।
गरम मसाला एक मिश्रण होता है जिसमें दालचीनी, इलायची, लौंग, काली मिर्च, जीरा, धनिया, तेजपत्ता, जायफल जैसे कई मसाले शामिल होते हैं।
इन मसालों को भूनकर पीसा जाता है, जिससे इसका स्वाद और सुगंध दोनों ही बेहद प्रभावशाली बनते हैं। यह मसाला भारतीय व्यंजनों में स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है।
दरअसल, 'गरम' का अर्थ यहां ‘गर्मी’ से है, न कि तीखा या जलन पैदा करने वाला। आयुर्वेद के अनुसार, गरम मसाले में शामिल मसालों की तासीर गर्म होती है, यानी ये मसाले शरीर के अंदर ताप या गर्मी बढ़ाते हैं।
यह गर्माहट शरीर की पाचन शक्ति (अग्नि) को सक्रिय करती है और मेटाबॉलिज्म (चयापचय) को तेज करती है। इसलिए इसे 'गरम मसाला' कहा जाता है।
आयुर्वेद में पाचन अग्नि का बहुत महत्व है। जब पाचन अग्नि कमजोर होती है तो भोजन सही तरीके से पचता नहीं और शरीर में कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
गरम मसाले में मौजूद काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, इलायची जैसे मसाले डाइजेस्टिव फायर को जाग्रत करते हैं, कफ को कम करते हैं और शरीर में गर्माहट पैदा करते हैं। यह गर्माहट शरीर के अंदर की ठंडक को दूर कर मेटाबॉलिक प्रक्रिया को तेज करती है।
गरम मसाले पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं और गैस, अपच जैसी समस्याओं से बचाते हैं।
शरीर में गर्मी बढ़ाकर कैलोरी जलाने में मदद करते हैं।
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर मसाले संक्रमण से लड़ने में सहायक होते हैं।
ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल लेवल को नियंत्रित करते हैं।
दिमाग और मूड को बेहतर बनाते हैं।
गरम मसाले का सेवन संतुलित मात्रा में करना चाहिए। ज्यादा मात्रा में सेवन से शरीर में अत्यधिक गर्मी हो सकती है, जिससे एसिडिटी या पेट की अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
गर्मियों में इसे कम मात्रा में और सर्दियों में उचित मात्रा में उपयोग करना चाहिए। पेट के अल्सर, हाई ब्लड प्रेशर या अन्य चिकित्सकीय समस्या हो तो डॉक्टर की सलाह से ही गरम मसाले का सेवन करें।