भारत में भोजन करना केवल भूख मिटाने का जरिया नहीं, बल्कि एक पवित्र क्रिया मानी जाती है। हाथों से खाना खाने की परंपरा न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक कारण भी छिपे हैं। आइए जानते हैं कि भारतीय लोग हाथ से खाना क्यों पसंद करते हैं और इसके पीछे क्या-क्या कारण हैं।
भारतीय संस्कृति में भोजन को 'प्रसाद' या 'अन्न देवता' का रूप माना जाता है। जब हम हाथों से खाते हैं, तो हम भोजन के साथ सीधा संपर्क बनाते हैं, जिससे आभार और श्रद्धा की भावना जागृत होती है।
हाथों की पांचों उंगलियां पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—इन पांच महाभूतों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जब हम हाथों से भोजन करते हैं, तो ये तत्व हमारे शरीर, मन और आत्मा को भोजन से जोड़ते हैं।
हाथों से खाने से हम भोजन के स्वरूप, तापमान और बनावट को बेहतर ढंग से महसूस कर पाते हैं। इससे हम ज्यादा सतर्क रहते हैं और ओवरईटिंग से बचते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, भोजन को छूने से शरीर के भीतर पाचन रस सक्रिय हो जाते हैं। हाथों का स्पर्श मस्तिष्क को संकेत देता है कि भोजन आने वाला है, जिससे पाचन क्रिया बेहतर होती है।
उंगलियों से भोजन छूते ही मस्तिष्क को संकेत मिलते हैं, जिससे गट और डाइजेस्टिव सिस्टम एक्टिव हो जाता है। यह शरीर की प्राकृतिक तैयारी प्रक्रिया है।
भारत में खाने से पहले और बाद में हाथ धोना एक परंपरा और आदत रही है। इससे हाथों से खाना स्वच्छ और नियंत्रित प्रक्रिया बन जाती है।
जब हम हाथों से खाते हैं, तो हमारी इंद्रियां ज्यादा सक्रिय रहती हैं—देखना, सूंघना, छूना और चखना। यह भोजन को केवल स्वाद नहीं, बल्कि अनुभव का हिस्सा बना देता है।
भोजन को छूकर खाने से उसमें लगे परिश्रम और प्रकृति की देन के प्रति सम्मान की भावना विकसित होती है। यह भोजन को महज पोषण से बढ़कर, आध्यात्मिक जुड़ाव बना देता है।
ग्रामीण और पारंपरिक इलाकों में कटलरी की सफाई हमेशा भरोसेमंद नहीं होती। ऐसे में हाथों से खाना, खासकर जब हाथ साफ हों, स्वच्छता और सुरक्षा का बेहतर विकल्प होता है।