क्यों कहा गया है "सब्र का फल मीठा होता है"?

Aug 05, 2025, 03:41 PM
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"सब्र का फल मीठा होता है" – यह कहावत न सिर्फ हमारी भाषा का हिस्सा है, बल्कि जीवन के अनुभवों का भी सार है।

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जब हम जीवन में किसी कठिनाई, असफलता या इंतजार के दौर से गुजरते हैं, तब यही कहावत हमें उम्मीद, धैर्य और आत्मबल का संबल देती है।

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आइए समझते हैं कि इस कहावत का गहरा अर्थ क्या है और ये हमारे जीवन में कैसे लागू होती है।

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धैर्य का महत्व

हर इंसान के जीवन में संघर्ष, कठिनाइयां और असफलताएं आती हैं। लेकिन जो व्यक्ति इन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारता और शांत मन से समय का इंतजार करता है, वही अंत में सफलता का स्वाद चखता है।

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यही तो है ‘सब्र’। यह केवल इंतजार करना नहीं है, बल्कि विश्वास के साथ ठहरना है – कि सही समय आएगा और मेहनत रंग लाएगी।

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सब्र और सफलता का रिश्ता

सफलता एक दिन में नहीं मिलती। कई बार हमें बार-बार असफलता झेलनी पड़ती है, मेहनत करनी पड़ती है और फिर भी तुरंत परिणाम नहीं मिलता।

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लेकिन अगर हम धैर्य नहीं रखते, तो शायद अंतिम परिणाम तक पहुंच ही नहीं पाते। उदाहरण के लिए:

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एक किसान बीज बोता है, फिर महीनों तक उसकी देखभाल करता है। अगर वह सब्र न करे तो फसल कैसे उगती?

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एक विद्यार्थी वर्षों तक पढ़ाई करता है, तब जाकर किसी प्रतियोगिता में सफलता मिलती है।

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इसलिए, जब हम मेहनत और धैर्य दोनों को साथ लेकर चलते हैं, तब जीवन की मिठास और अधिक बढ़ जाती है।

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भावनात्मक संतुलन और सब्र

सब्र का एक और पहलू है – भावनाओं पर नियंत्रण। जब गुस्सा, जलन, ईर्ष्या या निराशा हमें घेरने लगे, तब सब्र ही वह शक्ति है जो हमें सही दिशा में बनाए रखती है।

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यह हमें गलत फैसले लेने से रोकता है और हमें सोच-समझकर निर्णय लेने की क्षमता देता है।

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धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

हिंदू धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म या ईसाई धर्म – हर धर्म में ‘सब्र’ यानी धैर्य को महान गुण माना गया है। भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि “कर्म करते जाओ, फल की चिंता मत करो” – यह भी तो एक तरह से सब्र की शिक्षा है।

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