बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
कबीर ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल। दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूलि॥
सतगुर की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावण हार॥
कबीर यहु जग अंधला, जैसी अंधी गाइ। बछा था सो मरि गया, ऊभी चांम चटाइ॥
तीन लोक भौ पींजरा, पाप-पुण्य भौ जाल। सकल जीव सावज भये, एक अहेरी काल॥
पाणी केरा बुदबुदा, इसी हमारी जाति। एक दिनां छिप जांहिगे, तारे ज्यूं परभाति॥
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए। वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।।