हमारे शरीर में कई अजीबो-गरीब प्रक्रियाएं होती हैं, जिनमें से एक है गूसबम्प्स का आना। जब हम ठंडे होते हैं, या किसी खास भावना का अनुभव करते हैं, तो हमारी त्वचा पर छोटे-छोटे उभार आ जाते हैं।
इसे हम आमतौर पर गूसबम्प्स या गूज़फ्लेश कहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे कुछ दिलचस्प वैज्ञानिक कारण हैं? आइए जानते हैं गूसबम्प्स से जुड़े कुछ हैरान करने वाले तथ्य:
गूसबम्प्स को कई नामों से जाना जाता है, जैसे गूज़ पिम्पल्स (Goose Pimples), गूज़ फ्लेश (Goose Flesh), और गूज़ बम्पल्स (Goose Bumples)। हालांकि, इसका मेडिकल नाम कुटिस ऐंसराइन (Cutis Anserine) है।
यह नाम लैटिन शब्द कुटिस (त्वचा) और ऐंसर (हंस) से लिया गया है, क्योंकि यह स्थिति हंस की त्वचा की तरह दिखती है।
जब हमारी त्वचा स्मूथ से बम्पी हो जाती है, तो इसे गूसबम्प्स कहा जाता है। यह तब होता है जब हमारी त्वचा में छोटे-छोटे मांसपेशी (मसल्स) सिकुड़ने लगती हैं, जिससे बालों की कूप (फॉलिकल) थोड़ी ऊपर उठ जाती है।
गूसबम्प्स हमारी सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम द्वारा नियंत्रित होते हैं। यह सिस्टम शरीर के 'फाइट या फ्लाइट' (लड़ाई या भागने) प्रतिक्रिया से जुड़ा होता है।
जब शरीर को खतरा महसूस होता है या किसी तरह के मानसिक या शारीरिक तनाव का सामना करता है, तो यह प्रतिक्रिया सक्रिय होती है, और परिणामस्वरूप गूसबम्प्स उत्पन्न होते हैं। यह एक प्राकृतिक तरीका होता है शरीर का, ताकि वह खुद को खतरों से बचा सके।
ठंड के मौसम में हम अक्सर गूसबम्प्स महसूस करते हैं। जब हमारी त्वचा ठंडी होती है, तो यह मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं और बालों की कूप ऊपर उठ जाती है, जिससे गूसबम्प्स दिखने लगते हैं।
इस प्रतिक्रिया का उद्देश्य शरीर को गर्म रखने में मदद करना होता है। गूसबम्प्स बालों को खड़ा कर देते हैं, जिससे शरीर के नीचे का गर्म हवा का एक परत बन जाता है।
गूसबम्प्स केवल ठंड के कारण ही नहीं आते। वे विभिन्न भावनाओं, जैसे डर, घबराहट, खुशी, या एक्साइटमेंट के कारण भी उत्पन्न हो सकते हैं।
कभी-कभी जब हम कोई पावरफुल म्यूजिक सुनते हैं या कोई इमोशनल मोमेंट अनुभव करते हैं, तो हमारी त्वचा पर भी गूसबम्प्स आ जाते हैं। यह शरीर की एक बायोलॉजिकल रिस्पॉन्स होती है, जो इमोशनल एक्साइटमेंट का संकेत देती है।
गूसबम्प्स का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था, जो प्राचीन समय में समझा जा सकता था। जब हमारी त्वचा पर बाल खड़े होते थे, तो यह शरीर को अधिक गर्म रखने में मदद करता था, साथ ही यह शरीर को खतरों से सावधान करने का एक तरीका था। हालांकि अब यह प्रतिक्रिया शारीरिक रूप से उतनी प्रभावी नहीं है, लेकिन यह अभी भी हमारी तंत्रिका का हिस्सा है।