प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बिहार दौरे के दौरान मखाना को ‘देश और दुनिया के लिए सुपरफूड’ करार देते हुए इसके उत्पादन और निर्यात को बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने इससे पहले एक बार यह भी बताया कि वे स्वयं अपने आहार में मखाने का नियमित रूप से सेवन करते हैं।
मखाना अब न केवल बिहार की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है, बल्कि वैश्विक बाजार में एक हेल्दी स्नैक के रूप में अपनी खास जगह बना रहा है।
पीएम मोदी ने कहा, "मखाना, मिथिला की संस्कृति का हिस्सा रहा है। हमने मखाने को GI टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग) दिलाया है, जिससे अब इसकी भौगोलिक पहचान को आधिकारिक मान्यता मिल गई है।"
इसका मतलब है कि यह उत्पाद विशेष रूप से बिहार की मिट्टी और परंपरा से जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही सरकार ने मखाना रिसर्च सेंटर को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा भी प्रदान किया है, जिससे शोध और इनोवेशन को बल मिलेगा।
बिहार अकेले दुनिया के 90% मखाने का उत्पादन करता है। पहले मखाना निकालने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और समय लेने वाली थी—गहरे पानी में गोताखोरी कर बीजों को इकट्ठा करना पड़ता था। लेकिन अब नई तकनीकों और उथले जल स्रोतों में खेती की वजह से यह प्रक्रिया आसान और अधिक उत्पादक हो गई है।
मखाना न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि पोषण से भी भरपूर है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। यह कम कैलोरी और कम फैट वाला स्नैक है, जिसे स्वास्थ्य के प्रति सजग लोग खूब पसंद कर रहे हैं। भारत में यह पारंपरिक व्यंजन मखाने की खीर से लेकर, अब रोस्टेड मखाने जैसे हेल्दी स्नैक्स में भी इस्तेमाल हो रहा है।
मखाना उत्पादन में बदलाव से न केवल उत्पादकता बढ़ी है, बल्कि यह महिला किसानों के लिए भी रोजगार और आत्मनिर्भरता का साधन बना है। सरकार द्वारा घोषित मखाना बोर्ड और शोध केंद्र, किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं। इससे उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग और मार्केटिंग तक में सुधार की उम्मीद की जा रही है।
सोशल मीडिया, शेफ्स की क्रिएटिव रेसिपीज और हेल्थ-इन्फ्लुएंसर्स की वजह से मखाना आज अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों में भी पसंद किया जा रहा है। भारत सरकार की नीतियां और निर्यात बढ़ाने के प्रयासों से यह स्थानीय उत्पाद अब वैश्विक मंच पर जगह बना रहा है।