आगरा का लाल किला हो या फिर अकबर का मकबरा, सभी ऐतिहासिक स्मारकों को देश में होने वाले उत्सव या महत्वपूर्ण दिनों में लाइट से जगमगा दिया जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ताजमहल पर कभी कोई लाइटिंग नहीं होती है। इसे न कभी सजाया जाता है और न ही वहां रोशनी का कोई इंतजाम किया जाता है।
ऐसा नहीं है कि ताजमहल पर कभी लाइटिंग नहीं हुई थी। ताजमहल को सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समय दूधिया रोशनी से नहलाया गया था यानी फ्लड लाइट से रोशन किया गया था और अंदर जश्न भी मनाया गया था।
दरअसल, 8 मई 1945 को मित्र देशों की सेनाओं के सामने जर्मनी की सेना ने आत्मसमर्पण किया था। उस दिन को मित्र देशों ने विजय दिवस के नाम से मनाया था। ताजमहल देश का पहला स्मारक था, जिस पर रात में रोशनी की गई थी।
वहीं, आखिरी बार ताजमहल पर लाइटिंग 20 से 24 मार्च 1997 की रात को की गई थी। तब प्रसिद्ध ग्रीक पियानोवादक यान्नी ने ताज महल के पीछे ग्यारह सिद्दी स्मारक के पास एक शो किया था। तब वहीं से ताज पर रंग बिरंगी फ्लड लाइटें डाली गई थी।
यान्नी के इस शो को भारत समेत विश्व के कई देशों में लाइव दिखाया गया था। इस कार्यक्रम से ताजमहल का जादू विश्व पर्यटन पर ऐसा चला कि ताजमहल देखने आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो गई।
लेकिन इस कार्यक्रम के अगले दिन परिसर में कई कीड़े मरे हुए पाए गए। जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसका केमिकल सर्वे किया तो जांच में पता चला कि इन कीड़ों के कारण ताजमहल पर कीड़ों के निशान रह जाते हैं।
जांच में यह भी पता चला कि लाइट से आकर्षित होने वाले ये कीड़े ताजमहल की दीवारों पर बैठते हैं और मलमूत्र त्याग करते हैं, जिससे ताजमहल के संगमरमर को नुकसान होता है। इसी के बाद से ताजमहल पर लाइटिंग को बंद कर दिया गया।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने भी 24 मार्च 1998 को आदेश दिया कि पर्यावरणीय पर्यावरण पर प्रभाव के पूर्व अध्ययन के बिना ताजमहल के 500 मीटर के अंदर कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा सकता है।