इतने साल चला था 'रमन इफेक्ट' पर रिसर्च, इन चीजों में काम आती है उनकी खोज

नेशनल साइंस डे

भारत में हर वर्ष 28 फरवरी को देश के प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा रमन प्रभाव की खोज की याद में नेशनल साइंस डे मनाया जाता है। इस खोज में उन्हें कई वर्ष लग गए थे। आइए जानते हैं उनकी इस खोज और योगदान के बारे में:

समुद्र का रंग नीला क्यों होता?

एक बार सीवी रमन समुद्री यात्रा पर थे। इस दौरान उन्होंने देखा की पानी का कोई रंग नहीं है इसके बाद भी समुद्र का रंग नीला दिखाई दे रहा है। इसके बाद उन्होंने हर ट्रांसपेरेंट चीज पर ध्यान देना शुरू किया कि उसमें रंग कहां से आ रहा है। इस सवाल के जवाब को ढूंढने में उन्हें सात साल लग गए।

जा रहे थे ब्रिटेन

दरअसल, वो जहाज से ब्रिटेन जा रहे थे जब वो भारत वापस लौटे तो अपने साथ कुछ उपकरण लेकर लौटे। जिसकी मदद से उन्होंने आसमान और समुद्र का अध्ययन किया।

रमन इफेक्ट की खोज

रिसर्च में उन्होंने खोजा कि समुद्र भी सूर्य के प्रकाश को विभाजित करता है जिसके चलते समुद्र के पानी का रंग नीला दिखाई पड़ता है। अपने छात्रों के साथ मिलकर सीवी रमन ने प्रकाश के बिखरने या प्रकाश के कई रंगों में बंटने की प्रकृति पर शोध किया जिसे 'रमन इफेक्ट' नाम दिया गया।

क्या है रमन इफेक्ट

जब प्रकाश किसी ट्रांसपेरेंट यानी पारदर्शी मटेरियल से गुजरता है तो उस दौरान प्रकाश की तरंगदैर्ध्य में बदलाव दिखता है। सीवी रमन को इसी खोज के लिए 1930 में फिजिक्स में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी

वहीं, सीवी रमन की खोज रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का इस्तेमाल आज दुनिया भर की केमिकल लैब में हो रहा है। उनकी इसी खोज की मदद से पदार्थ की पहचान की जाती है।

मिशन चंद्रयान में हुआ था इस्तेमाल

एक रिपोर्ट की मानें तो मिशन चंद्रयान के दौरान चांद पर पानी का पता लगाने के लिए भी रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का ही योगदान था।

इस सेक्टर में योगदान

सिर्फ इतना ही नहीं रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के जरिए फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर में सेल्स और टीशूज पर शोध से लेकर कैंसर का पता लगाने तक में इस्तेमाल किया जाता है।