भारत में कई रहस्यमयी मंदिर मिल जाएंगे जो कई खास वजहों से भक्तों के बीच मशहूर हैं। ऐसा ही एक मंदिर है जहां हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश के लोग दर्शन करने आते हैं।
लेकिन आज हम जिस मंदिर की बात करने जा रहे हैं वहां हजारों की संख्या में चूहे रहते हैं। इस मंदिर का नाम करणी माता मंदिर है जो राजस्थान के बीकानेर जिले में देशनोक शहर में स्थित है।
इस अनोखे मंदिर में लोग देवी करणी माता के साथ-साथ चूहों के दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर को चूहों वाली माता, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
यहां रहने वाले लोगों का मानना है कि करणी माता लोगों की रक्षक देवी दुर्गा का अवतार हैं। वहीं मंदिर में रहने वाले चूहों को माता की संतान माना जाता है जिन्हें 'काबा' कहा जाता है।
कहा जाता है कि करणी माता का जन्म 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था और उनके बचपन का नाम रिघुबाई था। रिघुबाई का विवाह साठिका गांव के किपोजी चारण से हुआ।
मगर रिघुबाई सांसारिक जीवन से ऊबने लगी, जिसके बाद उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवा दी और खुद मां की भक्ति और लोगों की सेवा में लीन हो गईं।
लोगों की मदद और उनकी चमत्कारी शक्तियों के कारण लोग उन्हें करणी माता कहने लगे। कहा जाता है कि एक बार माता करणी की संतान, उनके पति और उनकी बहन का पुत्र लक्ष्मण कपिल सरोवर में डूब कर मर गए थे।
जब माता करणी को अपने परिवारजनों के मृत्यु की खबर मिली तो उन्होंने यमराज से इन लोगों को फिर से जीवित करने के लिए काफी प्रार्थना की। जिसके बाद यमराज ने विवश होकर उन्हें चूहे के रूप में पुनर्जीवित किया।
ऐसा माना जाता है कि यदि चारण परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है, तो वह चूहे के रूप में जन्म लेता है। इन चूहों की एक खासियत यह भी है कि ये सुबह 5 बजे मंगला आरती और शाम 7 बजे संध्या आरती के समय अपने बिलों से बाहर आते हैं।
इसलिए यहां आने वाले भक्त अपने पैर उठाने की बजाय घसीटकर चलते हैं, ताकि कोई चूहा पैरों के नीचे न आ जाए। इसे अशुभ माना जाता है। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि अगर किसी को काले चूहों के साथ सफेद चूहे भी दिख जाएं तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
कहा जाता है कि माता करणी 151 साल तक जीवित रही थीं। वहीं, हजारों की संख्या में चूहे होने के बाद भी इस मंदिर में किसी भी प्रकार की दुर्गंध नहीं आती और न इनकी वजह से कोई बीमारी फैली है।