भारतीय रेलवे में काम करने वाली महिला लोको पायलटों को वॉशरूम ब्रेक लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनको कई बार सिर्फ वॉशरूम जाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
भारतीय रेलवे में काम करने वाली महिला लोको पायलटों को वॉशरूम ब्रेक लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनको कई बार सिर्फ वॉशरूम जाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।
दरअसल, महिला लोको पायलटों को ड्यूटी के दौरान वॉशरूम ब्रेक के लिए वॉकी-टॉकी से पुरुष लोको पायलट को इन्फॉर्म करना पड़ता है।
इसके बाद पुरुष लोको पायलट स्टेशन मास्टर को सूचित करता है। फिर स्टेशन मास्टर इसे आगे कंट्रोल रूम को बताता है, जो रेलगाड़ियों के संचालन का प्रबंधन करता है।
महिला लोको पायलटों के अनुसार, ये सारी बातचीत वॉकी-टॉकी के जरिए रेंज के दर्जनों अन्य अधिकारियों तक भी पहुंचती है। स्टेशन पर हर जगह संदेश प्रसारित किया जाता है कि एक महिला लोको पायलट शौचालय जाना चाहती है।
ऐसे में रेलवे की अधिकतर महिला लोको-पायलट इस असहज स्थिति से जूझ रही हैं। भारतीय रेलवे में इस दौरान 1700 से अधिक महिला लोको पायलट हैं।
महिला लोको पायलटों में से 90 प्रतिशत सहायक लोको पायलट हैं जो ट्रेन में पुरुष लोको पायलटों के सहायक के तौर पर काम करती हैं। एक लोको पायलट बतौर ड्राइवर कम से कम 10-12 घंटे इंजन में बिताता है।
इस बीच, यात्रा के दौरान वे न तो खाना खाते हैं और न ही शौचालय जाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस वक्त देश के सिर्फ 97 ट्रेनों के इंजन में शौचालय की सुविधा है।
इस सुविधा की कमी पुरुष कर्मियों के लिए भी एक समस्या है। लेकिन महिला कर्मियों को माहवारी के दौरान अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।