हीरे को आज हम भले ही महंगे आभूषण और रॉयल शानो-शौकत से जोड़ते हों, लेकिन इसकी कहानी हजारों साल पुरानी है। क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे पहले हीरा कहां मिला था?
जवाब है – भारत। यह वही देश है जहां सबसे पहले धरती की गहराई से हीरे की खोज हुई और यही वह भूमि थी जिसने पूरी दुनिया को पहली बार इस अनमोल रत्न की चमक से रूबरू कराया।
ऐतिहासिक दस्तावेज और रिपोर्ट्स बताते हैं कि भारत में हीरे की खोज लगभग 1000 ईसा पूर्व (BC) में हो चुकी थी। उस समय जब बाकी दुनिया इस अनमोल खजाने के अस्तित्व से भी अनजान थी, भारत इसकी खुदाई और व्यापार में अग्रणी बन चुका था।
साल 1896 तक भारत ही पूरी दुनिया में हीरों का एकमात्र स्रोत था। भारत की धरती पर मिलने वाले हीरे न केवल सुंदर थे, बल्कि वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के भी थे।
हीरा कोई साधारण पत्थर नहीं है। यह पृथ्वी के गर्भ में अत्यधिक ताप और दबाव की स्थिति में लाखों वर्षों में बनता है। जब यह सतह पर आता है, तो इसे खदानों से निकाला जाता है।
फिर होती है इसकी कटाई और पॉलिशिंग – जो बेहद कठिन और टेक्निकल प्रोसेस होती है। केवल कुछ ही हीरे ऐसे होते हैं जो रत्न-गुणवत्ता के होते हैं और आभूषणों में इस्तेमाल किए जाते हैं।
327 ईसा पूर्व में जब यूनानी सम्राट सिकंदर भारत आए, तो उन्होंने यहां से हीरे लेकर यूरोप की ओर वापसी की। इस यात्रा के बाद यूरोप के लोगों ने पहली बार हीरे को देखा और जाना। कह सकते हैं कि भारत ने ही पहली बार पश्चिमी दुनिया को हीरे की चमक दिखाई।
भारत के तेलंगाना राज्य में स्थित गोलकोंडा की खदानें दुनिया की सबसे मशहूर हीरा खदानों में गिनी जाती हैं। कोहिनूर जैसे कई बहुमूल्य और ऐतिहासिक हीरे यहीं से निकले हैं। यह क्षेत्र कभी भारत की समृद्धि और वैभव का केंद्र था, जहां से निकले हीरों की मांग दुनियाभर में थी।
आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के आसपास का क्षेत्र भी ऐतिहासिक रूप से हीरा खनन के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहां की मिट्टी में वह चमकदार खजाना छिपा था जिसने भारत को वैश्विक व्यापार का बड़ा केंद्र बना दिया।
भारत ने न केवल दुनिया को पहला हीरा दिया, बल्कि कई ऐसे हीरे भी दिए जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं—जैसे: कोहिनूर: जिसे अब ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा माना जाता है। द सांची हीरा, द ग्रेट मुगल डायमंड और द होप डायमंड—ये सभी कभी भारत की धरोहर थे।