लिट्टी चोखा खाकर जापानी एंबेसडर बोले - 'गजब स्वाद बा!', लेकिन क्या आप जानते हैं इस व्यंजन का इतिहास

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भारत की मिट्टी से जुड़े व्यंजनों की बात हो और लिट्टी-चोखा का जिक्र न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। हाल ही में जब जापान के एंबेसडर हिरोशी सुजुकी ने लिट्टी-चोखा का स्वाद चखा, तो उनके मुंह से भी यही निकला—‘गजब स्वाद बा!’।

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पर क्या आपने कभी सोचा है कि इस देसी डिश की शुरुआत कहां से हुई? इसकी जड़ें कितनी गहरी हैं? चलिए, आज आपको लिट्टी-चोखा के स्वाद से लेकर इतिहास तक की पूरी कहानी बताते हैं।

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लिट्टी-चोखा: बिहार की आत्मा, भारत की शान

लिट्टी-चोखा बिहार का पारंपरिक व्यंजन है, लेकिन इसकी महक अब पूरे देश ही नहीं, विदेशों तक फैल चुकी है। गेहूं के आटे से बनी सादी या सत्तू से भरी हुई लिट्टी को आग या कोयले पर सेंका जाता है और फिर चोखा—यानी भुने हुए आलू, बैंगन और टमाटर के मिश्रण—के साथ परोसा जाता है।

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1857 की क्रांति और लिट्टी-चोखा

इतिहासकारों के अनुसार, 1857 की आजादी की पहली लड़ाई में जब तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई जैसे क्रांतिकारी सैनिकों ने मोर्चा संभाला, तब उनके भोजन में लिट्टी-चोखा खासतौर पर शामिल था।

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इसका मुख्य कारण था—यह व्यंजन जल्दी खराब नहीं होता और लंबे समय तक पेट भरने वाला होता है। युद्ध की परिस्थितियों में जब समय और संसाधनों की कमी होती थी, तब लिट्टी-चोखा "फूड फॉर सर्वाइवल" की तरह सामने आया।

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मुगल काल और लिट्टी का नया स्वाद

लिट्टी-चोखा का स्वाद मुगल रसोइयों तक भी पहुंचा। कहा जाता है कि मुगलों के दरबार में इस व्यंजन को नॉनवेज के साथ परोसा जाता था। लिट्टी को मटन, चिकन या मटन करी के साथ खाया जाता था, जिससे इसे एक नया ट्विस्ट मिला। यही कारण है कि आज भी कुछ जगहों पर लिट्टी-चोखा को मांसाहारी तरीकों से परोसा जाता है।

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मगध साम्राज्य से शुरू हुआ सफर

लिट्टी-चोखा की जड़ें मगध साम्राज्य से जुड़ी हुई हैं। पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) की भूमि से जन्मा यह व्यंजन चंद्रगुप्त मौर्य और उनके सैनिकों के भोजन का हिस्सा हुआ करता था। इस व्यंजन की खास बात थी—इसे बिना तेल-घी के भी पकाया जा सकता था, और यह लंबे समय तक खराब नहीं होता था।

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मुसाफिरों और किसानों का पसंदीदा खाना

18वीं शताब्दी में लंबी यात्राएं करने वाले मुसाफिरों के लिए लिट्टी-चोखा मुख्य भोजन बन गया था। वहीं, बिहार के ग्रामीण इलाकों में किसान इसे खेतों में काम करने से पहले या बाद में खाया करते थे। इसका सादा स्वाद, पोषण से भरपूर सत्तू और झंझट रहित तैयारी इसे आम आदमी के लिए एक आसान भोजन बनाती है।

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आज का लिट्टी-चोखा: देसी से ग्लोबल तक का सफर

आज लिट्टी-चोखा न सिर्फ पटना, गया, दरभंगा या भागलपुर में मिलती है, बल्कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे मेट्रो शहरों में इसके स्टॉल्स आम हैं। विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने भी इसे ग्लोबल प्लेट पर पहुंचा दिया है। अब तो यह इतना लोकप्रिय हो गया है कि बड़े-बड़े शेफ भी इसे अपने अंदाज में परोस रहे हैं।

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