3500 साल पुराना है मालपुआ का इतिहास, होली पर बनने वाली इस मिठाई के हैं कई नाम

होली हो और थाली में मालपुआ ना हो तो होली का मजा किरकिरा हो जाता है। मालपुआ और गुझिया होली की प्रमुख मिठाइयां मानी जाती हैं। मालपुआ एक और ऐसा व्यंजन है, जिसे होली के बनाने का अपना अलग महत्व है।

मालपुआ भारत की सबसे पुरानी मिठाई मानी जाती है। इसका जिक्र 3500 साल पुराने वैदिक युग में मिलता है। मालपुआ का उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है।

ऋग्वेद चारों वेदों में सबसे पुराना है। इसे ऋग्वेद में 'अपुपा' के नाम से लिखा गया है। पहले इस मिठाई को जौ से बनाया जाता था। इसे बनाने के बाद घी में तलकर फिर शहद में डुबोकर इसे खाया जाता था।

वहीं, भारत के मशहूर जगन्नाथ मंदिर में मालपुआ भी हर दिन प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। वहां मालपुआ को 'अमालू' नाम से जाना जाता है।

भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले छप्पन भोग में ये डिश शामिल है। इतिहासकारों का मानना ​​है कि जब से जगन्नाथ मंदिर अस्तित्व में है, तब से ही यहां अमालू परोसा जाता रहा है।

मालपुआ को पुपालिके के नाम से भी जाना जाता है। पहले के समय में इसे गेहूं के आटे से बना कर दूध, मक्खन, चीनी, इलायची जैसी चीजों के साथ मिलाकर बनाया जाता था।

मालपुआ की कई वैरायटी है जिसे अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीके से इसे बनाकर खाया जाता है। भारत में कई जगहों पर मालपुआ बनाने के लिए उसमें केवल गाढ़े दूध और थोड़े से आटे को मिक्स कर बनाया जाता है।

नेपाल में इसे 'मारपा' के नाम से जाना जाता है। जिसे मैदा, केले, सौंफ के बीज, दूध और चीनी मिक्स कर बनाया जाता है। वहीं बांग्लादेश में भी इसे फल के साथ मिलाकर बनाया जाता है।