Feb 23, 2025

मुगल बादशाह औरंगजेब क्यों बुनता था 'टोपियां'?

Archana Keshri

मुगल इतिहास में औरंगजेब को सबसे कठोर और कट्टर शासकों में गिना जाता है। उसकी शासन शैली, धार्मिक नीतियां और प्रशासनिक फैसले हमेशा चर्चा और विवाद का विषय रहे हैं। लेकिन एक दिलचस्प बात जो कम ही लोगों को पता होगी, वह यह कि औरंगजेब टोपियां सिलने और कुरान की नकल करने का काम किया करता था।

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इस बारे में कई दावे किए जाते हैं, जिनमें से कुछ ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हैं, जबकि कुछ मात्र किंवदंतियां हैं। औरंगजेब के इस अनूठे पहलू को फिल्मों में भी दिखाया गया है। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'छावा' और 'तान्हाजी: द अनसंग वॉरियर' में औरंगजेब का किरदार बखूबी निभाया गया।

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इन दोनों फिल्मों में औरंगजेब को एक क्रूर, धार्मिक रूप से कट्टर और सनकी शासक के रूप में दिखाया गया है। 'तान्हाजी' फिल्म में औरंगजेब को एक जगह टोपियां बुनते हुए दिखाया गया है। यह दृश्य दर्शकों के लिए चौंकाने वाला था क्योंकि एक बादशाह, जो पूरे हिंदुस्तान पर शासन कर रहा था, वह टोपियां क्यों बुनता था?

Source: Still From Film

यही सवाल दर्शकों के मन में भी उठा। इसी तरह, मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फिल्म 'छावा' में भी औरंगजेब को टोपियों की बुनाई करते हुए दिखाया गया। इतिहासकारों के अनुसार, इस्लाम में टोपी पहनने की परंपरा बहुत पुरानी है और इसे धार्मिक आस्था से जोड़ा जाता है।

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औरंगजेब, जो इस्लाम का कट्टर अनुयायी था, खुद भी टोपी पहनता था। माना जाता है कि वह अपने हाथों से अपनी टोपियां सिलता था और उससे होने वाली आमदनी से अपनी जरूरतें पूरी करता था। कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि औरंगजेब ने अपने अंतिम संस्कार के लिए भी इसी कमाई से धन इकट्ठा किया था।

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इतिहास में यह उल्लेख मिलता है कि औरंगजेब इस्लाम के प्रति बहुत कट्टर था और अपनी निजी जिंदगी में भी उसने सादगी अपनाई थी। उसने शाही वैभव से खुद को दूर रखा और अपने खर्चों को सीमित कर दिया। उसने भोजन, वस्त्र और जीवन के अन्य सभी सुखों में संयम बनाए रखा। यही वजह थी कि वह खुद को फकीर कहता था।

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कहा जाता है कि औरंगजेब ने अपने शासनकाल ने अपने व्यक्तिगत खर्चों के लिए राज्य के खजाने का उपयोग नहीं किया, बल्कि टोपियां सिलकर और कुरान की नकल कर जो धन अर्जित करता था, उसी से अपना गुजारा करता था। यहां तक कि उसने जीवन के अंतिम वर्षों में विलासिता से दूरी बना ली थी और धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में समय व्यतीत करता था।

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हालांकि, कुछ विद्वानों का मानना है कि यह कहानी महज एक मिथक है। उनके अनुसार, औरंगजेब एक विशाल साम्राज्य का शासक था और उसके पास संसाधनों की कोई कमी नहीं थी। ऐसे में यह तर्कसंगत नहीं लगता कि वह अपने अंतिम संस्कार के लिए स्वयं टोपियां सिलकर धन इकट्ठा करता था।

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आपको बता दें, मुस्लिम समाज में टोपी को धर्मपरायणता और इस्लामी परंपराओं के पालन का प्रतीक माना जाता है। आज भी कई मुस्लिम पुरुष नमाज के दौरान और धार्मिक कार्यक्रमों में टोपी पहनते हैं। औरंगजेब का टोपियां सिलना भी उसकी धार्मिक निष्ठा और सादगी भरे जीवन को दर्शाने का एक माध्यम हो सकता है।

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