हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के बैंक अकाउंट से धोखाधड़ी से पैसे निकालने के आरोपी चार लोगों को बेल देने से इन्कार करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार (13 जनवरी, 2022) को सुप्रीम कोर्ट के साल 2018 के आधार से जुड़े फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने के मामले में केंद्र सरकार द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण के साथ अपनी सहमति जताई।
अपने इस (2018 के) फैसले में टॉप कोर्ट ने निर्णय दिया था कि आधार को बैंक खाते से अनिवार्य रूप से जोड़ने का कदम आनुपातिकता के परीक्षण को पूरा नहीं करता है। दरअसल, जस्टिस शेखर कुमार यादव की बेंच आरबीआई, राज्य सरकार, बीएसएनएल और केंद्र सरकार के उन उपायों के बारे में सुनवाई कर रही थी, जो साइबर धोखाधड़ी/साइबर अपराधों/बैंकों से धोखाधड़ी से पैसे की निकासी से निपटने के लिए किए जा सकते हैं।
ये प्रस्तुतियां कोर्ट के पहले के आदेश के अनुसार की जा रही थीं, जिसमें देखा गया था कि साइबर क्राइम के केसों में जवाबदेही तय करना जरूरी है, ताकि साइबर फ्रॉड के शिकार लोगों का पैसा बर्बाद न हो।
इस बारे में कोर्ट ने पहले केंद्र, राज्य और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से इस सवाल पर जवाब मांगा था कि ऑनलाइन/साइबर धोखाधड़ी के केस में बैंकों और पुलिस को कैसे जवाबदेह बनाया जाए।
जहां तक यूओआई सब्मिशन का संबंध है, कोर्ट के समक्ष पेश होकर भारत संघ ने प्रस्तुत किया कि बैंक ग्राहकों की धोखाधड़ी से निकासी का पूरा मामला आरबीआई से जुड़ा है और केवल वे ही ऐसे मामलों से निपटने के लिए जिम्मेदार हैं।
यूओआई, एसपी सिंह के वकील ने आगे यह सुझाव दिया कि बैंक आधार कार्ड-बैंक लिंकिंग के माध्यम से सभी ग्राहकों के खातों पर नजर रख सकते हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड बैंक खातों के साथ अनिवार्य लिंकिंग को समाप्त कर दिया है।