राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू धर्म ग्रंथों को लेकर कहा कि इसकी समीक्षा होनी चाहिए। नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि पहले ग्रंथी इधर – उधर हो गए और कुछ स्वार्थी लोग अपने ग्रंथ में कुछ-कुछ घुसा दिया। मोहन भागवत के इस बयान पर सोशल मीडिया यूज़र्स कई तरह के सवाल पूछने लगे।
मोहन भागवत ने दिया ऐसा बयान
मोहन भागवत ने कहा, ‘हमारे यहां पहले ग्रंथ नहीं थे। हमारा धर्म मौखिक परंपरा से चलता आ रहा था। बाद में ग्रंथ इधर-उधर हो गए और कुछ स्वार्थी लोगों ने ग्रंथ में कुछ-कुछ घुसाया जो गलत है। उन ग्रंथों, परंपराओं के ज्ञान की फिर एक बार समीक्षा जरूरी है।’ इसके साथ उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म च्वॉइस सिखाने वाला धर्म है।
उन्होंने आगे यह भी कहा कि हमारा धर्म विज्ञान के अनुसार चलता है और विज्ञान को इंसान के लिए लाभकारी होने के लिए उस धर्म की आवश्यकता है, इसलिए विज्ञान सामने लाना हमारी परंपराओं में है। आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा,’हमारे पास परंपरागत रूप से जो है, उसके बारे में हर व्यक्ति के पास कम से कम मूलभूत जानकारी होनी चाहिए। इसे शिक्षा प्रणाली और लोगों के बीच आपसी बातचीत से हासिल किया जा सकता है। ज्ञान चाहने वाले को ज्ञान ही दिया जाए। ज्ञान समाज के हर वर्ग तक पहुंचना चाहिए।’
सपा ने आरएसएस प्रमुख पर कसा तंज
सपा ने आरएसएस प्रमुख के बयान पर तंज कसते हुए लिखा कि संघ प्रमुख मोहन भगवान जी ने अब ग्रंथों पर सवाल उठा दिए हैं। इशारों – इशारों में तुलसीदास जी पर भी सवाल उठा रहे। इससे पहले भागवत जी पंडितों के बारे में भी बोल चुके हैं। अब कोई भाजपाई, कोई योगी, कोई मोदी, कोई कथित धर्मरक्षक ,साधु संत महात्मा मोहन भागवत पर सवाल क्यों नहीं खड़े कर रहा?
सोशल मीडिया यूज़र्स ने किये ऐसे कमेंट्स
पत्रकार अजीतअंजुम ने सवाल किया कि ये स्वार्थी लोग कौन थे, जिन्होंने ग्रंथों में कुछ-कुछ घुसा दिया? ये पता कब चला? @anugrahNsingh नाम के एक ट्विटर हैंडल से लिखा गया- श्रुतियॉ ,स्मृतियॉ सनातन धर्म की आधारशिला हैं। अब इसमें इच्छानुसार बदलाव की बात करके नकारने जैसा है।
@DrJaihind नाम के एक यूजर लिखते हैं,’स्वामी दयानन्द सरस्वती जी भी यही बात बोलकर आर्य समाज की स्थापना की। पाखण्ड का, ऊंच-नीच का विरोध किया और गैर ब्राह्मण को हवन में पुरोहित बनाया. बाबा नानक जी भी यही कहा। श्रीकृष्ण जी भी यही कहा।
@KirtiAzaad नाम के ट्विटर हैंडल से कमेंट किया गया- रामायण में नारद जी महर्षि वाल्मीकि को बताते हैं कि आपको राम का चरित लिखना है। महाभारत के लेखन के लिए गणेश जी पधारे थे। वेद श्रुति रूप में अवश्य थे, परंतु उसका लेखन व संपादन वेदव्यास जी ने किया। संघ पूरी तरह शास्त्र विहिनी और हिंदू-द्रोही होता जा रहा है।