केंद्र सरकार ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) को चिट्ठी लिखकर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम में केंद्र सरकार और हाईकोर्ट की कोलेजियम में राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। ऐसा पारदर्शिता के लिए जरूरी है। वह अभी जजों की नियुक्ति वाले मौजूदा कोलेजियम सिस्टम (Collegium System) से संतुष्ट नहीं हैं। वहीं इस पर अब विवाद खड़ा हो गया है। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने इसे खतरनाक, कांग्रेस नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने जहर की गोली तक कह दिया है।
क्या बोले दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल?
दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल (Delhi CM Arvind Kejriwal) ने खबर को शेयर करते हुए लिखा है कि यह बेहद खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। वहीं सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) ने कहा कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था या चीनी आक्रामकता को ठीक करने में असमर्थ है, लेकिन न्यायाधीशों के रूप में वफादार डमी नियुक्त करने के अधिकार की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट को निशाने पर ले रही है। इसे शासन कहते हैं या दादागिरी?
किरेन रिजिजू ने किया पलटवार
दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल के ट्वीट पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि आप कोर्ट के निर्देश का सम्मान करेंगे। यह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के निर्देश पर हो रहा है। SC की संविधान पीठ ने कॉलेजियम प्रणाली के MoP को दोबारा गठित करने का निर्देश दिया था।
कांग्रेस नेता ने बोला हमला
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि “उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री का हमला यह सब न्यायपालिका को डराने और उसके बाद पूरी तरह से कब्जा करने और उसके साथ टकराव की योजना है। कॉलेजियम में सुधार की जरूरत है लेकिन यह सरकार जो चाहती है वह है पूर्ण अधीनता। स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए यह जहर के समान है। RJD नेता मनोज झा ने कहा कि “यह बिल्कुल चौंकाने वाला है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विचार को व्यापक रूप से कमजोर करने वाला है।”
कांग्रेस नेत्री @drshamamohd ने लिखा कि केंद्र सरकार अब चाहती है कि जजों की नियुक्तियों पर फैसला करने वाली सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए। न्यायिक व्यवस्था एक स्वस्थ लोकतंत्र का आधार है। यह मोदी सरकार द्वारा न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने का एक खतरनाक प्रयास है और इसे नकारा जाना चाहिए।