बलात्कार के लिए महिलाएं दोषी कैसे? ये 23 तस्वीरें दिखाती हैं समाज को आइना
यह फोटो-सीरीज भारतीय समाज का चेहरा दिखाने की कोशिश करती है जहां पीड़िता को जिम्मेदार ठहराना आम बात है।

पेशे से फोटोग्राफर गणेश टोस्टी ने भारतीय समाज में बलात्कार के मुद्दे को हाईलाइट करने के लिए एक फोटो-सीरीज बनाई है। इसकी कहानी तनिरिका नाम की एक लड़की पर आधारित है, जिसका कुछ लड़के बलात्कार करने की कोशिश करते हैं। उनमें से एक लड़का हमले को रोकता है। कहानी के अंत में, यह दिखाया जाता है कि किसी भी परिस्थिति में गलती लड़की की ही दी जाएगी, अपराध करने वालों की कोई गलती नहीं। यह फोटो-सीरीज भारतीय समाज का चेहरा दिखाने की कोशिश करती है जहां पीड़िता को जिम्मेदार ठहराना आम बात है। टोस्टी ने बजफीड से बातचीत में कहा, ”मैं अक्सर बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुनता रहता हूं; बच्चों का बलात्कार किया गया, बूढ़ी औरत के साथ बलात्कार, हर स्तर की महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं होती हैं। बलात्कार महिलाओं के पहनावे की वजह से नहीं, मानवता की कमी की वजह से होता है, इसी बारे में यह फोटो-सीरीज बात करती है।”
बलात्कार की कोशिश के बाद जब तरिनिका अपने अप्पा (पिता) से मिलती है, वह आखिरी तस्वीर तनिरिका के विचार सामने रखती है। ”मुझे कुछ याद आ जाता है। मैं तब छोटी बच्ची थी। एक दिन मैं अपने घर के बाहर खेल रही थी। मैं पत्थर के कुछ टुकड़ों पर फिसली और औंधे मुंह जमीन पर गिरी। मेरे अप्पा ने मुझे दर्द से चीखते सुना तो दौड़े चले आए। अस्पताल ले जाते वक्त उन्होंने मुझे चुप कराने के लिए बहादुर लड़की की कहानी भी सुनाई, मगर मैं रोती रही। जब डॉक्टर ने मेरा जख्म साफ किया और पट्टी बांधी जब जाकर मैंने रोना बंद किया। दो दिन बाद पट्टी खोल दी गई और जब मैंने खुद को आइने में देखा तो माथे पर लाल निशान बन गया था। मेरी आंखों में आंसू आ गए, मैं भागकर अप्पा के पास गई और पूछा कि ये क्या है, क्या ये हमेशा ऐसे ही रहेगा। अप्पा ने हंसते हुए मुझे गोद में उठाया और समझाया कि इससे डरने की जरूरत नहीं है, इसे ‘दाग’ कहते हैं। उन्होंने कहा कि यह जैविक प्रक्रिया है और इससे जख्म को ठीक होने में मदद मिलती है, यह कुछ दिन में चला जाएगा लेकिन मुझे यकीन नहीं हुआ। मैं जब भी आइने में देखती तो अजीब सा लगता। अगले कुछ दिनों तक, जब भी मैंने लॉन में कोई पत्थर देखा, मैंने उसे उठाया और पूरी ताकत से खुद से दूर फेंक दिया। एक दिन अप्पा ने मुझे ऐसा करते देखा और पूछा कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूं। मेरे बताने में उन्होंने समझाया कि मेरा गिरना पत्थर की गलती नहीं थी। उन्होंने कहा कि पत्थर तो निर्जीव होते हैं, उन्हें प्रकृति जहां-तहां छोड़ देती है। उन्होंने इसे एक हादसा कहा और सलाह दी कि मैं किसी सजीव की तरह अगली बार सावधान रहूं ताकि दोबारा मैं न गिरूं।”
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”मुझे याद है कि मेरा पक्ष न लेने की वजह से मैं उनसे (अप्पा) गुस्सा हो गई थी। कुछ दिनों में दाग चला गया और जिंदगी आगे बढ़ गई। वह याद मुझे किसी लहर की तरह धोकर चली गई जब मैं यहां चेहरे पर खून और दिल में दाग लिए बैठी हूं। क्या ये भी मेरी गलती है? क्या ये मेरी गलती है कि मैंने जंगल का रास्ता चुना और इन लोगों के सामने पड़ गई? क्या ये भी एक हादसा था? क्या इन लोगों में भी जान नहीं है? क्या मुझे बाहर निकलते वक्त और सावधान रहना चाहिए और मेरी आंखों को हर वक्त राक्षसों पर नजर रखनी चाहिए? और क्या अबसे मुझे सिर्फ घर पर रहना चाहिए क्योंकि जब इन राक्षसों में से कोई मेरे सामने आएगा तो मैं अपनी रक्षा नहीं कर पाऊंगी? और सबसे जरूरी, क्या ये जख्म गायब हो जाएगा? क्या मैं आगे बढ़ पाऊंगी?”
(Source: Facebook/Ganesh Toasty)


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