दिनेश विजयवर्गीय
उसकी मम्मी चाय के दो प्याले लिए अपने सेवानिवृत्त पति कौशल के पास जाकर बैठ गई। उन्होंने चाय पीते हुए पत्नी से पूछा- ‘नेहा ने शादी के बारे में कोई जवाब दिया?’ ‘नहीं, कुछ विशेष नहीं कहती। बस यही कहती है कि अभी मुझे आगे बढ़ना है। ‘केवल प्राइमरी स्कूल टीचर बन कर जिंदगी नहीं काटनी। मेरे भी अपने सपने हैं।…’
कौशल ने आंखों से चश्मा हटाते हुए कहा- ‘ये छोरी पता नहीं क्या सोच रही है। चौबीस बरस की हो गई। फिर लड़का मिलने में दिक्कत आएगी। अब टीचर बन गई और क्या चाहिए? सरकारी नौकरी मिल गई ये क्या कम है?’
‘मैं उससे तीन बार शादी के बारे में पूछ चुकी हूं। हर बार उसका यही जवाब होता- अभी नहीं।’ ‘पिछले दिनों ही मैंने जयपुर और इंदौर में बात चलाई थी, उनके फोन भी आ चुके। वे लड़की देखने को कह रहे थे। अब मैं उन्हें क्या जवाब दूं। यह भी नहीं कह सकता कि लड़की का विचार अभी शादी करने का नहीं है। वे मुझे बुरा-भला कहेंगे। फिर बात करने की पहल ही क्यों की?’ इस बीच नेहा भी उठ गई। उसने भी उनकी बातें सुनी, पर उसने उन्हें नजरअंदाज कर अपने लिए चाय बनाने लगी। ‘देखो नेहा की मां, अब मेरी कमजोर देह है। कब क्या हो जाए, क्या परिस्थिति आ जाए, कह नहीं सकता। इसलिए मेरी इच्छा है कि नेहा के हाथ समय रहते पीले हो जाएं।’
‘ऐसा अशुभ विचार मन में मत लाओ। ईश्वर ने चाहा तो विवाह का सिलसिला फिर से चालू होगा। भाग्य से कोई अच्छा संस्कारी परिवार का लड़का मिल ही जाएगा।’ पत्नी ने भरोसा जताते हुए कहा। ‘इसके बार-बार विवाह के लिए मना करने से मुझे कई बार ऐसा लगता है कि, कहीं ऐसा वैसा चक्कर तो नहीं चल रहा। नहीं तो लड़की इतना समझाने पर शादी के लिए तैयार हो ही जाती है।’ कौशल ने शंका जताई।
‘नहीं, अपनी नेहा के बारे में ऐसा सोचना भी पाप है। सीधा घर से स्कूल और स्कूल से घर आती है। कभी बिना कहे घर से बाहर नहीं जाती।’
‘जवानी में पैर फिसलते देर थोड़े लगती है। देखा न, रामगोपाल की छोरी कितनी सीधी लगती थी, भाग गई न छोरे के साथ। बेचारे की सारी शान मिट्टी में मिला दी। पुलिस में रिपोर्ट कराई है। पर पुलिस भी क्या करेगी। जवान छोरी है। कह देगी, मैं तो इसी छोरे के साथ रहना चाहती हूं। बाईस बरस मां-बाप के आंगन में खेली-कूदी, पढ़ी-लिखी, बड़ी हुई। घर भर की चहेती थी। पर पल भर में ही दे गई न धोखा। इसीलिए मुझे रह-रह कर डर लगता है। ईश्वर करे, नेहा जल्दी शादी को हां कर दे, ताकि अपन भी गंगा नहाएं।’
बातचीत की दिशा बदलते हुए पत्नी ने कहा, ‘नीलेश का फोन आया था। बोल रहा था, दिसंबर की छुट्टियों में सभी बारां आ जाओ। रोहन भी दादा-दादी, बुआ को याद करता रहता है।’ ‘हां, यह ठीक है। इस बार एक हफ्ते के लिए बारां हो आते हैं। थोड़ा वातावरण भी बदलेगा। नीलेश इस बार छुट्टियों में भी व्यस्त होने के कारण नहीं आ सकेगा।’
छुट्टियों में जब बारां गए तो नीलेश ने भी अपनी बहन से कहा, ‘नेहा, हमारी इच्छा है कि अगले वर्ष तक तेरी शादी हो जाए।’ लेकिन नेहा तो अपने लक्ष्य पर अडिग थी। उसने साफ बोल दिया- ‘भैया पहले मेरा करिअर है। अगले महीने लोक सेवा आयोग की व्याख्याता हेतु परीक्षा है। मैं अभी उसी की तैयारी कर रही हूं। इसमें सफल होने के बाद, फिर मेरा एक और लक्ष्य है, उसे पूरा करने के बाद ही शादी के बारे में सोचूंगी।’
‘इसमें तो वक्त लग सकता है। तेरी उम्र निकली जा रही है। फिर बढ़ी उम्र में अच्छे लड़के तलाशना मुश्किल होता है। मम्मी-पापा की भी यही इच्छा है।’ नीलेश ने उसे समझाने का प्रयास किया।
उसके अगले महीने व्याख्याता की परीक्षा हुई। नतीजा आया तो नेहा का चयन हो गया। अब पिता कौशल और मां कल्पना को पूरा भरोसा था कि वह शादी के लिए हां भर लेगी। यही सोच कर एक रविवार को जब सब साथ बैठे नाश्ता कर रहे थे, पिता ने नेहा से पूछा- ‘बिटिया, अब तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य मिल गया। अब शादी के बारे में बात करें?’ कौशल ने उसका मन टटोलने का प्रयास किया।
नेहा ने कहा- ‘अब आप लोगों को मेरी मेहनत और लगन पर विश्वास हो गया होगा। मैं अपना एक और लक्ष्य सामने रख रही हूं। मेरा लक्ष्य है राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास कर, उसमें काम करना। मुझे एक अवसर और दें। मुझे पूरा विश्वास है कि सफल हो जाऊंगी।’
यह बात सुन कर उसके मम्मी-पापा एक-दूसरे की ओर देखने लगे। फिर पापा ने कहा- ‘ठीक है, अगर तेरा यही फैसला है, तो हम भी तेरे लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। तू जम कर मेहनत कर।’ तभी मम्मी बोली- ‘जमाना देख रहा है और बार-बार पूछता रहता है, कब करोगे नेहा की शादी। उम्र भागी जा रही है।…’
इस बार पिता ने नेहा का पक्ष लिया- ‘जमाना कहता रहता है। हमें अपनी बिटिया की इच्छा का सम्मान करना चाहिए। देख नहीं रहे, इसने कितने आत्मविश्वास से कहा था कि मैं अपनी मेहनत से जरूर व्याख्याता परीक्षा में सफल हो जाऊंगी। और जब सफलता मिली, तो समाज के लोगों ने ही नेहा की प्रतिभा की प्रशंसा की थी।’
फिर नेहा ने आरएएस की तैयारी शुरू कर दी। उसके स्कूल की अध्यापिकाएं उसे सलाह देतीं कि घर बैठे परीक्षा तैयारी में मुश्किल आ सकती है। बेहतर होगा कि कोटा में कुछ समय के लिए कोचिंग ले लो। परीक्षा पास करने में सुविधा रहेगी। परीक्षा का स्वरूप समझ सकोगी। मगर नेहा को तो अपनी लगन, मेहनत और एकाग्रता पर पूरा भरोसा था। नौकरी के चलते कोटा जाकर कोचिंग लेना संभव नहीं बन पड़ रहा था। इसलिए वह अपने ढंग से परीक्षा की तैयारी में जुट गई।
आखिर भाग्य ने उसका साथ दिया। आरएएस की परीक्षा में सफलता प्राप्त की। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह हुआ कि उसने बिना कोचिंग के अपने ही बलबूते पूरे प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त कर लिया। उसकी इस सफलता पर कई सामाजिक संस्थाओं ने उसे सम्मानित किया। परिजन खुशी से झूम उठे। पिता तो कह उठे- ‘वाह! बेटी सचमुच पढ़ाई के प्रति तेरी लगन से हम गौरवांवित हुए। तुझे बहुत-बहुत आशीर्वाद।’
कुछ समय बाद नेहा प्रशासनिक तौर-तरीके समझने के लिए जयपुर चली गई। इसी ट्रेनिंग के चलते नेहा की अजमेर के मनोज से निकटता बढ़ती रही। मनोज भी प्रतिभाशाली और सुदर्शन लड़का था। धीरे-धीरे दोनों की मित्रता घनिष्ठता में बदल गई। आखिर एक दिन दोनों ने जीवन साथी बनने का निर्णय कर लिया।
मनोज ने नेहा से कहा- ‘मुझे विश्वास है कि मेरे मम्मी-पापा मेरी पसंद को सहज स्वीकार कर लेंगे। उन्हें बहुत खुशी होगी।’ नेहा जब ट्रेनिंग पूरी कर अपने घर पहुंची तो उसके मम्मी-पापा ने अब उससे शादी के बारे में पूछा- ‘नेहा अब तुम्हारे लक्ष्य पूरे हो गए। तुमने जो कीर्तिमान स्थापित किया है, उस पर सभी को गर्व है।’
नेहा ने कहा- ‘पापा, मैं शादी के लिए तैयार हूं।’ ‘ठीक है, अब मैं तुम्हारे अनुकूल अच्छा रिश्ता तलाश करता हूं।’ पापा, मम्मी, अब आपको लड़का तलाशने की जरूरत नहीं। एक हमउम्र लड़का मनोज, जो अजमेर के वैश्य परिवार से है, मेरे साथ ट्रेनिंग कर रहा था, उसी के साथ शादी करने का विचार है। अगर आप सहमत हों तो मैं अपनी ओर से हां बोल देती हूं।’
कौशल बाबू ने पुत्र नीलेश से भी इस बारे में बातचीत की। वह बोला- ‘पापा, इससे अच्छा प्रस्ताव क्या होगा। घर बैठे प्रशासनिक सेवा का लड़का मिल रहा है। आप और मम्मी सहमति दे दें। उन्होंने भी नेहा को इस रिश्ते के लिए हां भर दी। सबकी सहमति के बाद मनोज ने भी पिता से रिश्ते के लिए अपनी इच्छा व्यक्त कर दी। मनोज के पापा ने भी सहमति दे दी।
एक दिन मनोज अपने मम्मी-पापा के साथ बूंदी आ गया। उन्होंने घर-बार परिवार और नेहा को देखा। सब कुछ अनुकूल रहा। फरवरी में एक शुभ दिन नेहा और मनोज की खुशी के माहौल में शादी संपन्न हो गई। शादी के बाद कौशल ने पत्नी से कहा- ‘सचमुच ऊपर वाले की बड़ी कृपा रही कि नेहा को सफलता की राह पर निरंतर आगे बढ़ाता रहा और बिना किसी लड़के वालों की जी हुजूरी के एक अच्छा और उसी के स्तर का जीवन साथी मिल गया। यह अपनी बेटी के आत्मविश्वास और लगन की जीत है, जिससे ऐसा स्वर्णिम अवसर प्रदान किया।’