रविवारी कविता: मृत्यु तो मां है
जीवन संग्राम में पाप पुण्य धाम में मोक्ष और काम में मुक्तिक्षण ललाम में साहस भर देती है पीड़ा हर लेती है मृत्यु तो मां है नया जन्म देती है

राज सिंह
मृत्यु तो मां है
नया जन्म देती है
तार तार करती है
पुराने परिधान को
एक नई देह पर
नए वस्त्र देती है
मृत्यु तो मां है
नया जन्म देती है
प्यार से दुलार से
सहेजती है सांस-सांस
अट्टहास आंसुओं को
रखती है पास-पास
डोर जब टूटती है
नई सांस देती है
मृत्यु तो मां है
नया जन्म देती है
जीवन संग्राम में
पाप पुण्य धाम में
मोक्ष और काम में
मुक्तिक्षण ललाम में
साहस भर देती है
पीड़ा हर लेती है
मृत्यु तो मां है
नया जन्म देती है
सपनों के महल हों
या खंडहर यथार्थ के
मखमली बिछौने हों
या पथरीली ठांव हो
गोद में समेटकर
आंखों को मूंदकर
पथराई पलकों में
नींद भर देती है
मृत्यु तो मां है
नया जन्म देती है
जीवन के अंत में
रात बहुत गहरी है
अंधियारी दहलीज पर
नई भोर ठहरी है
छूकर जो झुर्रियों को
दुल्हन कर देती है
मृत्यु तो मां है
नया जन्म देती है
तारों के उस पार
चलो आज तुमसे
कुछ उपहार लेते हैं
रहने दो इस तन को यहीं पर
तेरी रूह को अपने साथ लेते हैं
आज तुमसे कुछ उपहार लेते हैं
यदि संभव नहीं है देना
ये कमल सा खिलता चेहरा
हम तो ये सूरत तेरी
इस दिल में उतार लेते हैं
आज तुमसे कुछ उपहार लेते हैं
पथरा गई ये आंखें अब तो
तेरा इंतजार करते-करते
चलो बंद पलकों से ही
हम तुम्हें निहार लेते हैं
आज तुमसे कुछ उपहार लेते हैं
ये प्यास अब बुझती ही नहीं
किसी शीतल जल के सेवन से
चलो इन झील सी आंखों से
कुछ खारा पानी निकाल लेते हैं
आज तुमसे कुछ उपहार लेते हैं
मजबूर हो शायद तुम
कि वक्त अब बचा नहीं
चलो उस खुदा से
कुछ पल उधार लेते हैं
आज तुमसे कुछ उपहार लेते हैं
यदि कुछ भी नहीं है मुमकिन
तो इंतजार करो
हम चलते हैं तेरे आगे
तुम्हें तारों के उस पार लेते हैं
आज तुमसे कुछ उपहार लेते हैं