रूपा
इस गाने में भी जीवन का महत्त्वपूर्ण दर्शन है। इस दुनिया, इस जगत को अगर समझ लें, अगर अपना मान लें, तो जीवन समरस हो जाए। शास्त्र भी तो कहते आए हैं- वसुधैव कुटुंबकम। पूरी धरती को अपने परिवार की तरह समझने की बात। इस बात को सुनते और जानते तो सभी हैं, मगर समझते कम ही हैं। समझना चाहते ही नहीं, इसलिए समझ पाते नहीं। जब हम किसी चीज को अपना मान लेते हैं, तो उससे हमारा जुड़ाव, हमारा लगाव हो जाता है। उसे ठीक से बरतना सीख जाते हैं। उसे हिफाजत से रखना शुरू कर देते हैं, उसमें किसी तरह की टूट-फूट, किसी तरह की खराबी हमें पसंद नहीं आती। तुरंत उसे सुधारने का प्रयास करते हैं।
बहुत सारे लोगों को अपनी गाड़ी से इतना लगाव हो जाता है कि उतना परिवार से भी नहीं होता। वे उस पर जरा-सा दाग-धब्बा भी बर्दाश्त नहीं करते, जरा-सी आवाज कहीं से आने लगे, तो तुरंत मिस्त्री के पास ले जाते हैं। मगर जिस दुनिया में रहते हैं, उससे लगाव नहीं हो पाता। इसी दुनिया में हमारा घर है, उसे तो हम खूब सजाते हैं, होड़ लगाए रहते हैं कि हमारा घर सबसे सुंदर घर हो। मगर इस दुनिया को सुंदर बनाने के बारे में कितने लोग सोच पाते हैं। इसलिए कि इस दुनिया से वैसा लगाव नहीं पैदा हो पाया, जैसा अपने घर, अपनी गाड़ी से पैदा हो गया।
बहुत सारे लोगों ने इस गाने की पंक्ति का अर्थ अपने जीवन में ‘मजे ले लो’ से जोड़ लिया है। मजे यानी भरपूर उपभोग। दुनिया का दोहन। दुह लो दुनिया को। दुनिया की सारी संपत्ति पर अपना नाम अंकित कर दो। इसके मजे ले लो यानी शारीरिक और मानसिक सुख ले लो, जितना ले सकते हो। संपत्ति का विकृत रूप ही ‘मजे’ के भाव को भी विकृत करता गया है। इसे ऐशो-आराम के रूप में रूढ़ कर दिया गया है। कोई नहीं सोचता कि यह भी कोई मजा है क्या। मजा यानी आनंद, तो बहुत ऊंचा भाव है, मगर हम उसे पाना कब चाहते हैं। अंग्रेजी के ‘प्लेजर’ को ही आनंद के रूप में रूढ़ कर दिया है। उसी को मजा मान बैठे हैं।
‘प्लेजर’ तो शरीर का, मन का क्षणिक सुख है। फिर वही सुख पाने की भूख फिर पैदा हो जाती है। बार-बार भागते हैं उसी ‘मजे’ की तरफ, निरंतर भागते रहते हैं ‘और प्लेजर’ के लिए। अनंत भागमभाग है इसके पीछे, पर कभी संतुष्टि नहीं मिल पाती। हमने इस दुनिया को कभी अपना माना ही नहीं। हमारे भीतर यह बोध बैठा हुआ है कि इस दुनिया के बहुत सारे मालिक हैं। इसलिए कि हम इस दुनिया को एक भूखंड, एक जमीन के रूप में देखते हैं। इस जमीन को ही देखते हैं हम।
स्वाभाविक ही तब लगता है कि इसके बहुत सारे मालिक हैं। जो हमसे अधिक जमीन हथियाए हुए है, उससे होड़ में लग जाते हैं। उससे ईर्ष्या करने लगते हैं। उसे पछाड़ने में लग जाते हैं। फिर दुनिया के मजे ले कैसे पाएं। मजे लेने, आनंद पाने के लिए तो पहले लगाव और जुड़ाव पैदा करना जरूरी है। वह लगाव कैसे पैदा हो, यही तो सोचना है।
यही भाव तो पैदा करना है। कुछ लोग पेड़-पौधे लगा कर, नदियों की सफाई करके, कूड़ा-कचरा साफ करके सोच लेते हैं कि उन्हें दुनिया से लगाव पैदा हो गया, उन्हें दुनिया के मजे मिलने लगे हैं। मगर यह भी एक झूठा अहंकार है। इसलिए कि भीतर कहीं यह भाव बैठा हुआ है कि दुनिया को सुंदर बनाने में उनका भी नाम कहीं अंकित हो रहा है।
सच्चा लगाव वही है, जिसमें निरासक्ति का भाव भी हो। जैसे ही हम किसी चीज पर अपना नाम अंकित कर देते हैं, वह लगाव उस चीज से नहीं, अपने नाम से जुड़ जाता है। इसलिए दुनिया को अपना मानने में उससे निरासक्ति भी जरूरी है। अपना मानने का यह अर्थ नहीं कि उसकी मिल्कियत अपने नाम कर लो।
जब हम कहीं जाते हैं, किसी आलीशान होटल में ठहरते हैं, तो उस होटल की सुविधाएं हमें मोहती हैं। उसमें रह कर हमें अच्छा लगता है। मगर इसका यह अर्थ तो नहीं कि उस होटल को अपने नाम कराने का सोचने लगते हैं। उस होटल की चीजों का इसी भाव से उपभोग करते हैं कि एक दिन उन सबको छोड़ कर चले जाना है। हालांकि मन में यह भाव जरूर कहीं बना रहता है कि फिर कभी इस शहर में आएंगे, तो इस होटल में ठहरेंगे।
दुनिया के प्रति, दुनिया की चीजों के प्रति भी अगर यही भाव पैदा हो जाए, तो हम इसे नाहक नोचना-खसोटना, इसकी चीजों को बेवजह दुहना बंद कर दें। जितने की जरूरत है, उतने का ही उपभोग करना सीख जाएं। दुनिया के मजे इसी में हैं कि इसे वैसे ही रहने दें, जैसे यह है, जैसा इसका स्वभाव है। हम इसके साथ जीना सीख लें, इस दुनिया को अपने ढंग से बनाना बंद कर दें। हममें से हर कोई दुनिया को अपने ढंग से बनाना-चलाना चाहता है। हम यह भूल गए हैं कि जैसे ही हम किसी को भी अपने ढंग से चलाने की कोशिश करते हैं, तो उसकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया आनी शुरू हो जाती है।
इससे जीवन का आनंद जाता रहता है। हर चीज अपने स्वभाव में रहना चाहती है। फिर दुनिया अगर हमारी है, तो हम उसे उसके स्वभाव में रहने क्यों नहीं देना चाहते। दुनिया के मजे लेने हैं, तो पहले समझें तो सही कि दुनिया का स्वभाव क्या है, उसका मिजाज क्या है। मिजाज को समझे बिना तो हम किसी आदमी से जुड़ाव नहीं बना पाते, फिर इस दुनिया से कैसे बना पाएंगे।