सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म कोलकाता में हुआ था। वे पढ़ाई में हमेशा से अच्छे थे, खासकर गणित में बहुत कुशाग्र थे। एक बार गणित के शिक्षक ने बोस को सौ में से एक सौ दस अंक दिए थे, क्योंकि उन्होंने सभी सवालों को हल करने के साथ-साथ कुछ सवालों को एक से ज्यादा तरीके से हल किया था। बोस ने स्कूली शिक्षा हिंदू हाईस्कूल, कोलकाता से पूरी करने के बाद प्रेसिडेंसी कालेज में प्रवेश लिया, जहां जगदीश चंद्र बोस और आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय पढ़ाते थे। मेघनाथ साहा और प्रशांत चंद्र महालनोविस बोस के सहपाठी थे।
जब बोस कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ते थे, तभी सोचा कि विज्ञान में कुछ नया करना चाहिए। मगर बोस विज्ञान की नई खोजों से संबंधित पुस्तकें पढ़ने में असमर्थ थे, क्योंकि उस समय अधिकतर शोधकार्य जर्मन और फ्रांसीसी भाषा में ही उपलब्ध होता था। बोस ने बहुत जल्दी ये भाषाएं सीख लीं। फिर ‘सापेक्षता सिद्धांत’ के शोधपत्रों का अनुवाद किया, जिन्हें बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित कराया गया। बोस पढ़ने और अनुवाद के अलावा समस्याओं के हल ढूंढ़ने में व्यस्त रहते थे। एक साल के अंदर ही बोस और साहा ने मिलकर एक शोधपत्र लिखा, जो इंग्लैंड के प्रसिद्ध जर्नल ‘फिलासाफिकल मैगजीन’ में प्रकाशित हुआ।
सन 1921 में भौतिकी विभाग में रीडर पद पर उनकी नियुक्ति हुई। उसी दौरान बोस ने अपना सबसे प्रसिद्ध शोधपत्र लिखा, जो उन्होंने आइंस्टीन को भेजा और उनसे प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त किया था। आइंस्टीन से प्रशंसा-पत्र प्राप्त करना ही अपने आप में बड़ी बात थी। ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए ही बोस ने अपने तरीके से प्लांक के नियम की नई व्युत्पत्ति दी। इससे भौतिक विज्ञान को एक बिल्कुल नई अवधारणा मिली। उन्होंने उस शोधपत्र को आइंस्टीन के पास बर्लिन भेजा। उस शोधपत्र को आइंस्टीन ने स्वयं जर्मन भाषा में अनूदित किया तथा अपनी टिप्पणी के साथ अगस्त 1924 में प्रकाशित करवाया।
ग्रहों और उनके संबंधों को समझने के लिए न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की आवश्यकता होती है। उसके अनुसार संसार की हर वस्तु अपने आसपास पाई जाने वाली दूसरी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह सिद्धांत ज्यादातर जगहों पर तो लागू होता है, लेकिन बहुत-सी जगहों पर काम नहीं आता। जैसे गैसों पर यह नियम असहाय हो जाता है।
ऐसे में सत्येंद्रनाथ बोस ने नए नियमों की खोज की, जो आगे चलकर ‘बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी’ के नाम से जाने गए। इस नियम के सामने आने के बाद वैज्ञानिकों ने परमाणु-कणों का गहन अध्ययन किया और पाया कि ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। इनमें से एक का नाम बोस के नाम पर ‘बोसान’ रखा गया और दूसरे का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मिआन।’
सत्येंद्रनाथ बोस ने प्लांक के ‘ब्लैक बाडी रेडिएशन’ नियमों का गहन अध्ययन किया और ब्लैक बाडी रेडिएशन की फोटान गैस के रूप में पहचान की। उस समय क्वांटम मेकेनिक्स में विकास तो हो रहा था, लेकिन गति बेहद धीमी थी। उसी समय सत्येंद्रनाथ बोस ने 1924 में एक चार पृष्ठ का शोधपत्र लिखा, जिसका शीर्षक था- ‘प्लांक ला ऐंड द हाइपोथिसिस आफ लाइट क्वांटा’, जो आज आधुनिक क्वांटम मेकेनिक्स और कणों से जुड़ी किसी भी खोज, अध्ययन का आधार है।
सत्येंद्रनाथ का यह शोधपत्र आगे चलकर बोस-आइंस्टीन स्टेटिक्स और बोस-आइंस्टीन कनडेनसेट (एक तरह की स्टेट आफ मैटर) के रूप में बदला, जिसकी खोज सत्येंद्रनाथ बोस और आइंस्टीन ने मिलकर की थी। तबसे लेकर आज तक यह खोज सभी कणों की खोजों का आधार रही है, जिसका ताजा उदाहरण हिग्स बोसान कण की खोज है।