केएस कृष्णन की आरंभिक शिक्षा गांव के ही पास के स्कूल श्रीविलिपुत्तूर में हुई थी। बाद में कालेज की पढ़ाई के लिए मदुरै के अमेरिकन कालेज में दाखिला लिया। उसके बाद स्नातक के लिए उन्होंने क्रिश्चियन कालेज मद्रास में प्रवेश ले लिया। फिर उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से एमए और डीएस-सी की डिग्री हासिल की। केएस कृष्णन का भौतिक विज्ञान के अलावा साहित्य से भी गहरा लगाव था। वे तमिल, संस्कृत और अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे।
जिस क्रिश्चियन कालेज से उन्होंने भौतिकी में स्नातक की डिग्री हासिल की, उसी कालेज में वे कुछ वर्षों तक ‘डिमांस्ट्रेटर’ के पद पर रहे। फिर 1920 में वे वैज्ञानिक सीवी रमन के साथ कलकत्ता में ‘इंडियन एसोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ साइंस’ में काम करने लगे। उसके बाद वे 1928 में ढाका चले गए और ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी के रीडर के रूप में वे 1928 से 1933 तक सेवा की। उसके बाद वे सन 1933 में वापस कलकत्ता आकर प्रगति संस्थान से जुड़ गए। फिर 1933 से 1942 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उन्होंने 1942 से 1947 तक अपनी सेवाएं दी।
केएस कृष्णन ने अपने जीवन में कई कीर्तिमान स्थापित किए। 1947 में जब भारत को आजादी मिली, तब भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय अनुसंधानशाला का निदेशक नियुक्त किया। इस पद पर रहते हुए वे अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारी के साथ-साथ अनुसंधान में भी लगे रहे। सन 1948 में वे नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी, नई दिल्ली के पहले निदेशक बने। 1949 में वे भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1947 से 1961 तक परमाणु शक्ति आयोग के सदस्य भी रहे। इसके आलवा वे राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान तथा परमाणु विज्ञान अनुसंधान के अध्यक्ष पद पर भी रहे। अंतरराष्ट्रीय भू-भौतिक 1957-58 के कार्यक्रम में केएस कृष्णन का अहम योगदान रहा। वे 1955 से 1957 तक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संघ परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे।
डॉ. कृष्णन का मुख्य कार्यक्षेत्र भौतिक विज्ञान में ‘सालिड स्टेट फीजिक्स’ से जुड़ा था। उनके अनुसंधान-कार्य से ठोस अवस्था भौतिकी की आधारशिला मजबूत हुई। उन्होंने विश्व को पहली बार अणुओं की आंतरिक विशेषताओं से अवगत कराया। उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों में प्रकाश के विकिरण और चुंबकत्व की माप पर उनका शोध माना जाता है। इसके साथ ही उन्होंने प्रकाशीय प्रभावों और चुंबकीय प्रभावों पर भी अहम अनुसंधान किया। अनेक देशों के वैज्ञानिकों ने उनके शोध को मान्यता प्रदान की। लार्ड रदर फोर्ड तथा सर विलियम बेग ने उन्हें लंदन आमंत्रित किया।
डा. कृष्णन को भौतिक विज्ञान में अमूल्य योगदान के लिए देश-विदेश से कई सम्मान और पुरस्कार प्रदान प्राप्त हुए। भारत सरकार ने 1954 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से अलंकृत किया। उन्हें अमूल्य शोध के लिए सन 1957 में डा. शांतिस्वरूप भटनागर स्मृति पुरस्कार प्रदान किया गया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1946 में इंग्लैंड के सर्वोच्च सम्मान ‘सर’ (नाइटहुड) की उपाधि प्रदान की। उन्हें सन 1937 में लीज विश्वविद्यालय पदक प्रदान किया गया। देश की राजधानी दिल्ली में उनके सम्मान में एक पथ का नाम रखा गया है।