कविताएं- प्रमाणपत्र. उम्र और दुख, गपशप, फल्टन
रुचि भल्ला और निशांत की कविताएं।

निशांत
प्रमाणपत्र
पिताजी पेंशन के लिए
जिंदा रहने का प्रमाणपत्र लेते रहे
जब तक जिंदा रहे
मैं जिंदा हंू
इसे बताने के लिए
बार-बार पॉकेट से निकाल कर
दिखाता रहता हंू अपना फोटो प्रमाणपत्र
सब मान लेते हैं- मैं जिंदा हंू!
वही हूं, जो फोटो में हूं!
रात के अकेले में
वह मेरे ऊपर शक करता है
मांगता है मुझसे
मेरे जिंदा होने का प्रमाणपत्र
मेरे मनुष्य होने का प्रमाणपत्र
वह कागज के टुकड़ों को नहीं मानता
मेरी नब्ज टटोलता है
मेरा चेहरा ध्यान से देखता है और
हर रात मुझे मृत घोषित करता है।
उम्र और दुख
उम्र बढ़ने से गंभीरता आती
गंभीरता आने से
आता जाता दुख
दुख के आते जाने से
बढ़ती जाती उम्र।
गपशप
कमरे में
मेरे अलावा दो मछलियां हैं
घंटों बतियाती हैं वे मुझसे।
रुचि भल्ला
फल्टन
स्वर्णा बाई फल्टन में रहती है
फल्टन ही उसकी दुनिया है
दुनिया से बाहर की दुनिया भी स्वर्णा जानती है
पूछने पर बताती है वह दिल्ली जानती है
दिल्ली वही है जहां शिंदे साब टूर पर जाता है
शिंदे साब वही है जो फल्टन में रहता है
जहां वह काम करती है
स्वर्णा की दुनिया फल्टन है
फल्टन से बाहर की दुनिया
उसने देखी है लोगों की जुबानी
सुनी-सुनाई बातों पर वह यकीन से कहती है
वह दिल्ली जानती है
स्वर्णा के लिए दिल्ली राजनीति का गढ़ नहीं
लाल किले पर फहराता तिरंगा नहीं
इंडिया गेट से अंदर जाने का रास्ता नहीं
दिल्ली दिल्ली है
जहां शिंदे साब टूर पर जाता है ०