वैज्ञानिकों का मानना है कि मृत सागर के ज्यादा घनत्व होने की एक वजह- दूसरे समुद्रों या नदियों के बहते पानी के बजाय मृत सागर के पानी का ऊपर से नीचे की ओर जाना है। बहाव न होने के कारण इसे एक बड़ी और संकीर्ण नमक झील का दर्जा भी दिया जाता है। इसका घनत्व इतना ज्यादा है कि अगर कोई व्यक्ति इस पानी में सीधे लेट जाए, तो कभी डूब नहीं सकता और बिना किसी डर के आसानी से तैर सकता है। मृत सागर की इस खूबी की वजह से 2007 में ‘विश्व के सात अजूबे’ में चुने गए 28 जगहों की सूची में शामिल किया गया।
मृत सागर दुनिया का अकेला ऐसा समुद्र है जो सबसे कम जगह में फैला है। यह 48 मील लंबा और ग्यारह मील चौड़ा है। पृथ्वी की सतह से लगभग 1,375 फुट या 420 मीटर गहरा हैै और समुद्री सतह से वह करीब 400 मीटर नीचे है। यह इजरायल और जार्डन के बीच स्थित है। इसका पूर्वी तट जार्डन है, जबकि दक्षिणी-पश्चिमी तट इजरायल है। इजरायल की तीन पर्वतमालाएं मृत सागर को घेरे हुए हंै और पूर्व में जार्डन के पठार हैं। यहां यहूदिया और यरदन जैसी नदियां बहती हैं जिनसे मृत सागर को पानी की आपूर्ति होती रहती है।
इसके दक्षिणी-पश्चिमी तट पर काफी कम पानी है। यहां नमक और खनिज लवणों के छोटे-छोटे खूबसूरत टीले और फैला नमक दूर से समुद्र झाग की तरह लगते हंै। हालांकि इसमें नदियों से और वार्षिक वर्षा से ताजा पानी आता रहता है। लेकिन यहां का वातावरण और हवा काफी शुष्क है। पूरे साल यहां तापमान ज्यादा होता है- सर्दियों में जहां तीस डिग्री सेल्शियस होता है, वहीं गर्मियों में 40 डिग्री। गर्मी की वजह से मृत सागर का पानी वाष्पीकृत होता रहता है जिससे सागर में नमक का घनत्व बढ़ता रहता है।
मृत सागर का पानी खारा ही नहीं है, इसमें पोटाश, ब्रोमाइड, मैग्नीशियम, कैल्शियम, जिंक, सल्फर जैसे खनिज लवण भी काफी मात्रा में मिलते हैं। इस वजह से न तो यह पानी पीने लायक होता है, न इसमें मौजूद नमक का उपयोग किया जा सकता। नमक की सघनता ज्यादा होने की वजह से मृत सागर में न तो जलीय जीव जीवित रह पाते हैं, न यहां कुछेक बैक्टीरिया और शैवाल को छोड़कर पौधे पनप पाते हैं। यही कारण है कि प्राचीन ग्रीक लेखक ने इसे मृत सागर का दर्जा दिया। इसे नमक समुद्र, बदबूदार समुद्र, पूर्वी सागर, लूत के सागर, सदोम और अमोरा के सागर, डामर और सोअर के सागर जैसे नामों से भी जाना जाता है।
इसके बावजूद आज वैज्ञानिकों ने भी यह साबित किया है कि मृत सागर का यह खनिज-लवणयुक्त नमकीन पानी, सागर किनारे की काली मिट्टी और नमक से स्पा और मड-थेरेपी के जरिए कई लाइलाज रोगों का इलाज किया जा सकता है। इनसे सोरायसिस, गठिया, एक्जिमा, चकत्ते पड़ने जैसे त्वचा रोगों, चोट लगने या पुराने घावों का उपचार किया जाता है। नमक और खनिजों की मदद से रक्त संचार ठीक करके तनी हुई नसों को राहत प्रदान की जाती है।
मृत सागर अपने चिकित्सीय गुणों के कारण आज पूरे एशिया का चिकित्सकीय पर्यटन केंद्र बनता जा रहा है। मृत सागर के उत्तरी-पश्चिमी भाग में पर्यटन और स्वास्थ्य-केंद्र खोले गए हंै। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए मृत सागर के पश्चिमी तट के पास कई पर्यटन केंद्र, होटल, अतिथि गृह, शॉपिंग सेंटर भी बनाए गए हैं, जिनमें पर्यटकों की सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाता है। उनके मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम और अनेक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
दूसरी ओर मृत सागर के दक्षिणी भाग में सागर लवण उद्योग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। सागर के नमकीन पानी से नमक बनाने के लिए यहां कई मिलें स्थापित की गई हैं। इन मिलों में भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए उपयोगी उर्वरक या खाद का निर्माण भी किया जा रहा है जिन्हें दूसरे देशों में भी भेजा जाता है।