किताबें मिलींः ‘स्त्री कविता’ और ‘प्रेम नाम है मेरा- प्रेम चोपड़ा’
स्त्री-कविता पर केंद्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोेजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं।/ आखिर कौन है प्रेम चोपड़ा? किस तरह का है उनका वास्तविक किरदार? प्रेम चोपड़ा की जिंदगी से जुड़े इन्हीं सवालों को हल करने का प्रयास करती है यह किताब।

किताबः स्त्री कविता
एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय और यथार्थ के साझे भोक्ता हैं, लेकिन परिस्थितियां समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि, दमन के जिन अनुभवों और मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियां बदलें। स्त्री-लेखन, स्त्री की चिंतनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ है, जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति और वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है।
स्त्री-कविता पर केंद्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोेजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, ‘स्त्री-कविता: पक्ष और परिप्रेक्ष्य’ में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। दूसरा खंड, ‘स्त्री-कविता: पहचान और द्वंद्व’ स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अंतर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, ‘स्त्री-कविता: संचयन’ के रूप में प्रस्तावित है…। इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के संबंध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
स्त्री कविता- पक्ष और परिप्रेक्ष्य तथा स्त्री कविता- पहचान और द्वंद्व : रेखा सेठी, राजकमल प्रकाशन, 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली; 299 रुपए (प्रति)।
किताबः कथा-विचार
यह किताब आज के परिप्रेक्ष्य में कथा-साहित्य के आकलन का प्रयत्न करती है। लगभग तीस वर्षों के समय को सहेजती हुई यह पुस्तक उपन्यास और कहानी में आए बदलावों के रेखांकन के साथ-साथ उनके परीक्षण के कतिपय नए मानदंडों को खोजने-पाने का प्रयत्न भी करती है। इस क्रम में पाठक देखेंगे कि निर्मल वर्मा, गोविंद मिश्र, रवींद्र वर्मा, चंद्रकिशोर जायसवाल, खुशवंत सिंह और नवनीता देवसेन प्रभृति वरिष्ठ उपन्यासकारों की कृतियों के साथ-साथ आलोचक ने जयश्री रॉय, कविता, ब्रजेश के बर्मन और मीनाक्षी स्वामी जैसे युवा उपन्यासकारों की कृतियों को भी परखा है। इसी तरह आलोचन ने आठवें दशक की हिंदी कहानी पर विचारोत्तेजक बहस करने के साथ उसके बाद की कहानी रचना पर समेकित प्रकाश डाला है। इस प्रक्रिया में रामदरश मिश्र, हिमांशु जोशी, बलराम, नरेंद्र नागदेव आदि वरिष्ठों के साथ राकेश तिवारी, जयश्री रॉय, गीताश्री, कविता, मनीषा कुलश्रेष्ठ आदि की कहानियों के बहाने आलोचक ने समकालीन कहानी में आए बदलावों का परीक्षण भी किया है, जिससे हम शिल्प और संवेदना के स्तर पर आज की कहानी को बदले हुए संदर्भों में समझ पाते हैं।
यह पुस्तक कुछ गद्य रचनाओं और कथा-समीक्षा की पुस्तकों पर भी विचार करती है जिससे हम सहजता से कथा आलोचना की दुरभिसंधियों से टकराते हुए एक ठोस विचार तक पहुंच पाते हैं।
कथा-विचार : ज्योतिष जोशी; विजया बुक्स, 1/10753, सुभाष पार्क, गली नं. 3, नवीन शाहदरा, दिल्ली; 650 रुपए।
किताबः प्रेम नाम है मेरा- प्रेम चोपड़ा’
क्या आपने कभी सोचा है कि रुपहले पर्दे पर जिस अभिनेता की एंट्री आपकी रूह कंपकंपा देने के लिए काफी है, उसका विस्तार जीवन के वास्तविक रंगमंच पर कैसा है? मायानगरी के अनगिनत कलाकारों के बीच अंगुलियों पर गिने जाने वाले खलनायक हैं, जिन्होंने दर्शकों के दिल ही नहीं, आत्मा पर भी अपनी छाप छोड़ी है। उन्हीं में से एक अजीमोशान किरदार है प्रेम चोपड़ा का।
आखिर कौन है प्रेम चोपड़ा? किस तरह का है उनका वास्तविक किरदार? प्रेम चोपड़ा की जिंदगी से जुड़े इन्हीं सवालों को हल करने का प्रयास करती है यह किताब। ‘प्रेम…प्रेम नाम पर मेरा…प्रेम चोपड़ा…’ यह वाक्य जब सिल्वर बालकनी, यहां तक कि बॉक्स में बैठे दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि पता नहीं अब यह क्या खुराफात करेगा। रुपहली दुनिया के अनदेखे किस्से अपने अंदर समाहित की हुई इस किताब के जरिए आप एक अद्भुत यात्रा पर निकलने वाले हैं। यात्रा एक ऐसे किरदार की, जिसने सदी के महानतम विरोधाभासों को जिया है। यह किताब पांच दशकों से ज्यादा की सिने जिंदगी का जिंदा दस्तावेज है, जिसमें प्रेम चोपड़ा के अलावा भारतीय सिनेजगत की सच्ची और अनूठी किस्सागोई मिलेगी।
प्रेम नाम है मेरा- प्रेम चोपड़ा : रकिता नंदा; यश पब्लिकेशंस, 1/10753, सुभाष पार्क, नवीन शाहदरा, दिल्ली; 299 रुपए।
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