मैंने अपने टीवी देखते साथी से पूछा कि क्या इस यात्रा के बाद गांधी परिवार के वारिस की छवि ऐसे राजनेता की हो गई है, जो 2024 में मोदी को टक्कर दे सकता है। मेरे टीवी साथी ने जब ना में जवाब दिया, तो मैंने पूछा क्यों नहीं, तब उसका जवाब था- ‘बात यह है जी कि राहुल गांधी की छवि जितनी भी अच्छी हो गई हो, मेरे जैसे अनपढ़ आदमी के लिए वे मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते हैं, इसलिए कि परिवारवाद से आए हैं राजनीति में राहुल गांधी, और मोदी आए हैं केवल देश की सेवा करने। बहुत फर्क है दोनों में।’ ऐसा नहीं कि इस आम मतदाता को राजनीति की कोई समझ नहीं थी।
झारखंड की सरकार को लेकर उसने शिकायतों की लंबी फेहरिस्त गिनवाई, लेकिन मोदी के खिलाफ उसकी एक भी शिकायत नहीं थी। मैंने जब पूछा कि उसको मोदी क्यों इतना पसंद हैं तो पट जवाब आया कि मोदी ने दुनिया की नजरों में भारत की शान बढ़ाई है। उदाहरण उसने जी20 के नेतृत्व का दिया, तो मैंने याद दिलाया कि इतनी बड़ी चीज नहीं है कि इस साल भारत को दुनिया के सबसे धनवान, विकसित देशों की इस संस्था का नेतृत्व करने का मौका मिला है। मेरी बातों का मेरे साथी पर कोई प्रभाव नहीं दिखा।
मुझे जब भी लगता है कि इस देश के आम आदमी के विचारों से मेरे विचार दूर हो गए हैं, तो मैं कोशिश करती हूं आम लोगों से बातें करने की। इस कोशिश में पिछले सप्ताह मैंने देश के अलग-अलग राज्यों से दिल्ली में बसे कुछ लोगों से बातें की। इस कोशिश के पीछे एक कारण यह भी था कि ‘इंडिया टुडे’ ने हाल में अपना ‘मूड आफ द नेशन’ सर्वेक्षण किया है, जिसमें पाया गया कि बेरोजगारी और महंगाई जैसी आर्थिक समस्याओं के बावजूद आम लोग चाहते हैं कि मोदी ही प्रधानमंत्री बने रहें।
सर्वेक्षण के मुताबिक आज अगर लोकसभा चुनाव कराए जाते हैं तो भारतीय जनता पार्टी अपने बल पर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना सकती है। कांग्रेस का हाल 2019 से थोड़ा बेहतर हुआ है, लेकिन इतना नहीं कि मोदी को राहुल चुनौती दे सकें।
मैंने अपने निजी छोटे सर्वेक्षण में पाया कि मोदी की लोकप्रियता के कारण हैं कि उनकी छवि एक काबिल राजनेता की होने के अलावा लोग यह भी पसंद करते हैं कि अभी तक उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई आरोप साबित नहीं हुए हैं। लोग जानते हैं कि देश में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है, लेकिन साथ में यह भी मानते हैं कि भ्रष्टाचार करने वालों का मोदी से कोई वास्ता नहीं है। लोगों पर असर काफी हद तक केंद्र सरकार की ग्रामीण कल्याण योजनाओं का भी है और इस बात को भी नहीं भूले हैं कि मोदी ने अति-सफल ढंग से कोरोना को हराया है दुनिया का सबसे विशाल टीकाकरण अभियान चला कर।
ये सारी बातें मोदी के प्रचारक कहते नहीं थकते हैं। दिल्ली की जिन गलियों में मैं घूमी हूं पिछले सप्ताह, शायद ही कोई ऐसी जगह मिली जहां मोदी की तस्वीर न दिखी हो। पेट्रोल पंपों पर मुस्कुराते हुए दिखते हैं उज्ज्वला योजना के पोस्टरों पर। बस अड्डों पर इन दिनों दिखते हैं योगी आदित्यनाथ के साथ उत्तर प्रदेश में निवेशकों को आमंत्रित करते हुए। दिल्ली के गोल चक्करों पर प्रचार है जी 20 के नेतृत्व का।
एक पूर्व मोदी भक्त होने के नाते मैं यहां कहना चाहती हूं कि इस तरह का प्रचार मुझे निजी तौर पर इसलिए पसंद नहीं है, क्योंकि ऐसा प्रचार राजनेताओं का दिखता है उन देशों में, जहां लोकतंत्र नहीं है। लेकिन जाहिर है कि मोदी इस देश के आम मतदाता की मन की बात मेरे जैसे राजनीतिक पंडितों से बेहतर जानते हैं, सो जानते हैं कि लगातार प्रचार करने से उनको फायदा हुआ है नुकसान नहीं।
लोकसभा चुनाव अभी एक साल से ज्यादा दूर हैं, लेकिन जब भी होंगे चुनाव, भारतीय जनता पार्टी लड़ेगी मोदी का नाम लेकर। इस साल जो कर्नाटक और राजस्थान जैसे महत्त्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें भी भारतीय जनता पार्टी लड़ेगी मोदी का नाम लेकर। इसमें कोई शक नहीं कि मोदी देश के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं, लेकिन यह बात भी सच है कि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्धी अभी तक राहुल गांधी हैं और कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा पूरी करने के बाद भी उनकी छवि एक ताकतवर राजनीतिक परिवार के वारिस की है।
उनकी पदयात्रा से कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में बेशक एक नया उत्साह पैदा हुआ है, लेकिन फिलहाल इतना नहीं कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी को हरा सकें। प्रधानमंत्री जब निकलते हैं चुनाव प्रचार में, तो अक्सर उनके भाषणों में जिक्र रहता है परिवारवाद का। इसलिए कि वे जानते हैं कि आज के मतदाता को परिवारवाद से इसलिए तकलीफ है कि वे देखते हैं कि यह बीमारी पंचायतों तक पहुंच गई है और जहां भी पहुंची है, अपने साथ भ्रष्टाचार इतना लाई है कि गांव के सरपंच भी अपना पद तभी त्यागते हैं, जब वे अपने किसी रिश्तेदार को अपनी जगह बिठा सकें। बीमारी शुरू हुई है कांग्रेस पार्टी से, सो राहुल गांधी के लिए अभी दिल्ली दूर है।