पहले भी ध्यान दिया करती थी इन चीजों पर लेकिन जबसे नरेंद्र मोदी बने हैं भारत के प्रधानमंत्री, विकसित देशों के विकास में रुचि बढ़ गई है। इसलिए कि मोदी शायद पहले प्रधानमंत्री रहे हैं अपने महान देश के जिन्होंने विकसित बनने के सपने न सिर्फ दिखाए हैं हमको, साथ में ये भी बार-बार कहा है कि हम कुछ ही सालों में विकसित देशों की गिनती में आ जाएंगे। ऐसा करके मोदी ने देशवासियों को एक नया रास्ता दिखाया है।
फिजूल की प्रशंसा करने की आदत नहीं है मुझे और न मैं अब मोदी भक्त हूं। लेकिन यहां मोदी की तारीफ कर रही हूं इसलिए कि मैंने समाजवाद का दौर देखा है जब हमारे शासक हमारी गरीबी पर नाज करते थे। जब कोई विदेशी आलोचक जिक्र करता था भारत की असफलताओं का तो हमारे राजनेता और आला अधिकारी अकड़ कर जवाब दिया करते थे कि भारत गरीब देश है, इसलिए उसकी तुलना किसी विकसित देश से नहीं की जा सकती है।
अजीब-सा गर्व दर्शाते थे ये लोग भारत की गरीबी पर जैसे कि उनको डर था कि बात आगे बढ़ी तो उनकी नाकामियों पर अंगुली उठेगी। उठनी चाहिए भी, क्योंकि उनकी रद्दी नीतियों के कारण ही भारत गरीब रहा दशकों तक। उन्होंने भारत की गरीब जनता को कभी गुरबत से निकलने के औजार नहीं दिए। ये औजार हैं- अच्छे स्कूल, अच्छे अस्पताल, भरोसेमंद बिजली, अच्छी सड़कें और जीवित रहने का वह सबसे जरूरी साधन स्वच्छ पीने लायक पानी।
जनता का पैसा उस समाजवादी दौर में हमेशा जाया किया जाता था। सिर्फ लोगों को गरीबी में जकड़े रख कर राहत पहुंचाने में। मुफ्त की बिजली मिलती थी चाहे आए, न आए। मुफ्त का पानी मिलता था चाहे आए, न आए। ऊपर से गरीब अशिक्षित लोगों को मुफ्त का अनाज देना ऐसे कि जैसे लोगों को लगे कि उनके शासक कितने मेहरबान हैं, कितने संवेदनशील। ज्यादातर गरीब, अशिक्षित लोग अपने देश में आज भी मानते हैं कि सरकारी पैसा खर्च किया जा रहा है उन पर इसलिए कि कभी उनको बताया नहीं जाता है कि पैसा जनता का है, सरकार का नहीं।
ऐसा नहीं है कि मोदी ने उस रद्दी, झूठी समाजवादी सोच को बदल डाला है पिछले आठ वर्षों में, लेकिन ऐसा जरूर है कि उन्होंने परिवर्तन और विकास की बातें राजनीतिक बहस में लाने का काम किया है। लोगों को अहसास दिलाया है कि हमारा लक्ष्य है भारत को जल्द से जल्द विकसित बनाना। लक्ष्य बदलने से सब कुछ अचानक तो बदलता नहीं है, लेकिन लक्ष्य बदलने से परिवर्तन यह आया है भारत में कि अब आम आदमी भी मानता है कि भारत अवश्य आर्थिक महाशक्ति बन सकता है।
हम अगर इस लक्ष्य की तरफ तेजी से दौड़ नहीं रहे हैं अभी तक तो इसलिए कि मोदी के दौर में भी गरीबी हटाने के औजार नहीं दिए गए हैं गरीबों को। भाजपा शासित राज्यों में भी देहातों में अच्छे स्कूलों का सख्त अभाव है। कोविड की महामारी से सफलता से जूझने के बावजूद आज भी देहातों में अच्छे अस्पतालों का सख्त अभाव है। स्विट्जरलैंड में जब आई थी कोई दस साल पहले तो एक दोस्त के घर खाने पर गई थी, जिसके पास कोलंबो नाम का एक छोटा कुत्ता था।
हुआ यह कि हम जब खाना खा रहे थे तो कोलंबो बाहर बगीचे में गया किसी के देखे बिना। जब काफी देर तक वापस नहीं लौटा तो हम लोग उसको ढूंढ़ने निकले और देखा कि उसके पांव में चोट आ गई थी। फौरन हम सब निकले उसका इलाज कराने और यकीन मानिए कि पशुओं का अस्पताल भारत के इंसानों के अस्पतालों से स्वच्छ था।
स्वच्छता की बात आ ही गई है तो यह कहना जरूरी मानती हूं कि विकसित देशों की एक अहम पहचान है उनकी स्वच्छता। न शहरों की गलियों में दिखता है सड़ता हुआ कचरा और न ही छोटे गांवों में। मोदी के आने के बाद हमने स्वच्छता अभियान पहली बार देखा अपने देश में, लेकिन ये सीमित रहा देहातों में शौचालयों के निर्माण तक। इस अभियान का नया लक्ष्य होना चाहिए कचरे को समाप्त ऐसे करना, ताकि शहरों में न बन जाएं कूड़े के पहाड़ और गांवों में न दिखें कचरे के ढेर। जिस देश में हम अंतरिक्ष में जाने के सफल प्रयास कर चुके हैं, उस देश में क्यों नहीं हम कचरे और गंदगी को आधुनिक तरीके से समाप्त कर पाए हैं अभी तक?
जवाब मैं दे देती हूं आपको। समाजवाद के उस लंबे दौर में हमने कभी इन चीजों पर ध्यान ही नहीं दिया था। हमारे शासक खुद तो रहते थे आलीशान कोठियों में, ऐसी गलियों में जहां कूड़े-कचरे का नामो-निशान नहीं होता था, लेकिन आम लोगों की बेहाल बस्तियों की परवाह उनको बिल्कुल नहीं थी। आज हाल है हमारे शहरों का कि सर्दियों के मौसम में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है, क्योंकि हवा इतनी प्रदूषित और जहरीली है। अगर और देशों में हवा-पानी साफ रखने के तरीके उपलब्ध हैं तो हमारे देश में क्यों नहीं?
मोदी ने परिवर्तन और विकास लाकर काफी हद तक दिखाया है कि भारत के लिए असंभव नहीं है कुछ ही सालों में विकसित देश बनना, लेकिन अभी तक मोदी ने पूरी तरह उन नीतियों को कूड़ेदान में डाला नहीं है जिनके कारण भारत गरीब और लाचार रहा है। हमसे गरीब जो देश हुआ करते थे वे हमसे आगे निकल गए हैं कैसे? हम क्यों पीछे रह गए हैं पीछे और पिछड़े? यह सवाल हम सबको पूछने चाहिए।