यात्रांत में राहुल भैया बम बम! लालचौक बम बम! भाई-बहन की बाल बर्फ लीला बम बम! एक-दूसरे पर बर्फ के गोले मारते हुए भाई-बहन खिल खिल! गिरती बर्फ के बीच राहुल की तिरंगा लीला! अंत में राहुल उवाच बम बम कि… मैंने सहा है। इनने क्या सहा? मैंने यहां तक यात्रा की। वो करके दिखाएं… मैंने दर्द देखा है…
लेकिन बागेश्वर वाले बाबा हर हाल में बम बम! सनातन धर्म बम बम! राष्ट्रधर्म बम बम! रामकथा ही राष्ट्रकथा बम बम! ‘कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे’ बम बम! प्रयागराज बम बम! बाबा जी का संगम स्नान बम बम! एक अ-सनातन बोले कि ये सनातन राष्ट्रधर्म कैसे? अन्य धर्म कहां गए? देश में सनातन बड़ा कि संविधान? सनातन बोले कि सनातन सनातन है, सनातन टनाटन है, सनातन की जय हो!
हिंदू चिह्नों की निराली लीला : पहले ‘हिंदू’, फिर ‘हिंदुत्व’ और अब ‘सनातन सनातन…’ कर लो, क्या कर लोगे! बाबाओं के पिटारे में अभी बहुत कुछ है… फिर दो दिन ‘ढोल गंवार…’ वाली चौपाई पर बहसें बम बम! स्वामी बम बम! उन पर मुकदमा बम बम! चौपाई के एक से एक व्याख्या विशारद बम बम… इधर ‘चौपाई हटाओ’ तो उधर ‘चौपाई बचाओ’ और ‘हटाने वालों को हटाओ’… बहसों में चौपाई का संदर्भ कथन कि ये वचन जड़ समुद्र के हैं, न कि तुलसी के… अजी जिसके भी हों, इनको हटाओ… जवाब आता है कि देखें तो कौन हटाता है?
जो मानस का विरोधी वो राष्ट्र-विरोधी! किसी और किताब के बारे में कहके देखो, तब मालूम होगा… हिंदू को आहत करना बंद करो… एक बाबा भी एक ‘मानस विरोधी’ को धमकी देते दिखे… मानस का जलवा कि कल तक जिस मानस को विवादास्पद कहा जाता था, वही इन बहसों के दौरान हिंदुओं की ‘पवित्र किताब’ बन गई और कुछ सेक्युलर तक उसे ‘पवित्र ग्रंथ’ मानने लगे!
फिर एक दिन संसद का बजट सत्र आरंभ और राष्ट्रपति का हिंदी में अभिभाषण, लेकिन विपक्ष के एक हिस्से ने उनको भी न बख्शा! हे महामहिमों! ऐसी भी क्या नाराजी कि राष्ट्रपति के भाषण की ‘औपचारिकता’ पर भी पिल पड़े! सच! ‘जाकी रही भावना जैसी…।’ फिर, एक दिन ‘कट टू अयोध्या’ फिर ‘कट टू नेपाल’: अयोध्या राम मंदिर के लिए छह करोड़ बरस पुरानी ‘शालिग्राम’ शिलाएं नेपाल से ‘लाइव लाइव’ अयोध्या पहुंचीं बम बम! यानी ‘भक्ति नेपाल उपजी, अयोध्या आए शालिग्राम’, लेकिन हिंदी एंकर कन्फ्यूज कि पवित्र ‘शालिग्राम शिला’ के मायने क्या?
फिर एक शाम अचानक बीबीसी बम बम! बहसें बम बम! प्रतिबंध की मांग बम बम! अगले रोज एक वरिष्ठ वकील ने ताल ठोकी कि बीबीसी भारत-विरोधी! बीबीसी ने जो बनाया, चीन की शह पर बनाया! एक वरिष्ठ वकील का खुलासा कि अठारह चीनी कंपनियों ने बीबीसी की इस भारत-विरोधी परियोजना को धन मुहैया कराया है! हाय! इतने ऊंचे दर्जे का बीबीसी कहां जा गिरा… प्रतिबंधित करो प्रतिबंधित करो…
बजट से एक दिन पहले ‘आर्थिक सर्वे’ का सीधा प्रसारण! विशेषज्ञों की विशेषज्ञ जानें, हम जैसे ‘अज्ञ’ क्या जानें कि जिन दिनों विश्व बाजार डूब रहा है, हमारा उछल रहा है, तो हे प्रभु सो कैसे? प्रवक्ताजन शाश्वत भाव से आश्वस्त कि यह सब ‘सबका साथ सबका विश्वास’ का जलवा है! इसके आगे ‘बजट’ की पेशबंदी थी। एक हिंदी चैनल ‘क्रेन’ के सहारे ‘हवा हवाई’ था, तो दूसरा गैस गुब्बारे में ‘हवा हवाई’ था और वहीं से बजट का अनुमान और विश्लेषण करा रहा था। बजट के दिन प्रस्तुत वित्तमंत्री का बजट सबको खुश करने वाला दिखा। विपक्ष भी तुरंत कुछ न कह सका। जब कहा तो इतना भर कि यह ‘मध्यवर्गीय’ और ‘चुनावी’ है!
लेकिन अगले ही रोज अमेरिका की ‘शार्टचेंजिंग’ (यानी ज्यादा पैसा लेकर कम देने वाली यानी ‘छलछंदी’) रिसर्च कंपनी ‘हिंडनबर्ग’ की रिपोर्ट ने बजट द्वारा पैदा किए गए सारे उत्साह पर पानी फेर दिया और चैनलों में ‘वाह वाह’ की जगह ‘हाय हाय’ होती दिखने लगी! हिंडनबर्ग नामक ‘छलछंदी’ कंपनी ने पहले अडाणी की कंपनियों को ‘छलछंदी’ होने का आरोप लगाया और इस तरह अडाणी कंपनियों के शेयर बाजार को ‘ढेर’ कर दिया। आरोपों के जवाब में अडानी ने हिंडनबर्ग पर प्रत्यारोप लगाया कि हमारे ‘एफपीओ’ को फेल करने के लिए उसने रिपोर्ट दी। बहरहाल, एक ही दिन में अडाणी का ‘एफपीओ’ सवाया आपूर्त हो गया और फिर अगले रोज अडाणी ने ‘नैतिक आधार’ पर ‘एफपीओ’ को वापस करने का एलान कर दिया। बाजार फिर भी लुढ़कता रहा! अडाणी कंपनियों के शेयर गिरते रहे!
विपक्ष के लिए मानो ‘बिल्ली के भागों छींका टूटा’: पहले से ही खल मानी जाने वाले अडाणी कपंनियों को हिंडनबर्ग द्वारा खलत्व की सनद देना और अडाणी को लुढ़का कर अपनी कमाई करना, फिर उठते भारतीय बाजार को गिरवा देना… दृश्य देख विपक्ष अपनी रौ में आ गया! चैनलों में चर्चे रहे और चिंता रही कि अडाणी के डूबते ही आम आदमी की गाढ़ी कमाई डूब गई। एलआइसी, एसबीआइ को नुकसान। विपक्षी कहते दिखे: अडाणी का पासपोर्ट जब्त किया जाए… संयुक्त संसदीय समिति जांच करे या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हो… विपक्ष की आक्रामकता के लिए यह मुंहमांगा अवसर रहा!
पहली बार बहसों में भाजपा या सरकार के प्रवक्ता अनुपस्थित नजर आए। कुछ हमदर्द कहते रहे कि यह भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था को जानबूझ कर गिराने की अंतरराष्ट्रीय कारपोरेटों की साजिश है। कुछ कहते रहे कि अडाणी के बहाने समूचे भारतीय पूंजीपति वर्ग को गरियाने की जरूरत नहीं! कुछ कहते रहे कि यह सारा हल्ला दो-चार दिन रहना है फिर सब ठीक हो जाना है, क्योंकि अडाणी कंपनियां पोली नहीं, ठोस कंपनियां हैं, उनके पीछे ठोस ‘परिसंपत्तियां’ उपलब्ध हैं! शुक्रवार की सुबह एक चैनल पर विश्व रेटिंग कंपनी ‘फिच’ ने साफ कहा कि इससे अडाणी की रेटिंग्स पर तुरंत असर नहीं पड़ेगा! बहरहाल, सरकार चौकन्नी है। विपक्ष कोप भवन में है। संसद में दनादन है!