बाखबर: सरिया, कीलें, कंटीले तार और खाई
सरकार अपने ही ‘बैरीकेड’ में फंसी दिखती है : बैरीकेड लगाती है, तो कहा जाता है कि अपने ही लोगों से डरते हो और जब लोग बैरीकेड तोड़ कर उपद्रव करते हैं, तो कहते हैं रोका क्यों नहीं?

छह जनवरी को चक्का जाम करेंगे? दिल्ली को तो राजा ने अपने आप जाम कर दिया, हम तो बाहर करेंगे। हम अनाज बो रहे थे, वो कीलें बो रहे थे। वो अनाज को तिजोरी में बंद कर रहे हैं। जिनको (सांसदों) नहीं आने दिया, वे वहीं बैठ जाते। हम इंगै बैठे हैं वो उंगै बैठ जाते। दो ट्रैक्टर आज आए वो चले गए, तो दूसरे आ गए। ये तो आते जाते रहेंगे। अक्तूबर तक आते ही रहेंगे। रिहाना का नाम सुना है? मैं नहीं जानता। कोई विदेशी समर्थन करता है, तो हमारा क्या ले रहा है। हम कील काट कर जाएंगे। हंसते हुए) मंच टूट गे गोड्डे फूटगे।
पत्रकार हंसते हैं। राकेश टिकैत ‘मैन आफ द मोमेंट’ हैं।
उनकी भाषा सुनें। एकदम ठेठ हिंदी का ठाठ! एकदम दोटूक खड़ी बोली। चंद आसुओं और सिसकियों के बाद उनका चेहरा धुला, चमकीला, गर्वीला नजर आता है। वे किसानों के नए ‘आइकन’ हैं!
हम एक नया लालू बनते देख रहे हैं। लालू की भोजपुरी इसी तरह दो टूक और मुहावरेदार रही, जिस तरह की राकेश की है। एक सबाल्टर्न स्पर्श लिए एकदम तरल और अप्रत्याशित…
पत्रकार बात करते अचकचाते हैं कि क्या पूछें? हर सवाल का दोटूक और ठेठ खड़ी बोली में जवाब तैयार है, बिना किसी नाटकीयता के!
फिर, एक शाम हर चैनल पर तीन तीन पॉप स्टार देवियां- पॉप स्टार रिहाना, पोर्न स्टार मिया खलीफा और पर्यावरणी पॉप स्टार ग्रेटा थनबर्ग किसानों के पक्ष में नाचती-गाती नजर आती हैं और आंदोलन समर्थक निहाल हो जाते हैं, जैसे कहते हों कि तुम्हारे पास सत्ता है, तो हमारे पास तीन तीन ग्लोबल पॉप स्टार हैं!
लेकिन शाम तक एक देशभक्त एंकर ग्रेटा थनबर्ग के ‘टूलकिट’ की पोल खोलता जाता है कि यह ‘टूलकिट’ कम ‘अराजकता का किट’ अधिक है, जो गाइड करता है कि छब्बीस जनवरी को कहां कहां क्या-क्या उखाड़-पछाड़ करनी है, कैसे-कैसे करनी है और जैसे ही एक ‘राष्ट्रवादी’ एंकर उसे डाउनलोड करता है, वैसे ही गे्रटा का यह ‘टूलकिट’ हटा लिया जाता है और अगले दिन संशोधित किट लगा दिया जाता है। फिर भी एंकर सिद्ध करता रहता है उक्त ‘टूलकिट’ के पीछे फलां खालिस्तानी हमदर्द है और यह भारत को टुकड़े-टुकड़े करने का ‘प्लाट’ है, भारत के दुश्मनों का अराजकता में धकेलने का षड्यंत्र है।
खबर आती है कि गे्रटा पर एफआईआर हुआ है। फिर खबर आती है कि ग्रेटा पर नहीं, ‘टूलकिट’ पर एफआईआर हुआ है।
ये कैसा पराक्रम सर जी?
एक अंग्रेजी चैनल का क्रांतिकारी एंकर बार-बार रेखांकित करता है कि यह सत्ता ‘भयाक्रांत’ है, ‘पेरानॉयड’ है कि यह एक ग्लोबल ट्वीट से, ‘टूलकिट’ से डर जाती है। ‘टूलकिट’ तो सोशल मीडिया में आम हैं, लेकिन उसके बुलाए चार में से तीन पैनलिस्ट ग्रेटा के टूलकिट को मासूम हरकत नहीं मानते। इसे देख एंकर खिसिया कर रह जाता है।
सरकार अपने ही बैरीकेड में फंसी दिखती है : बैरीकेड लगाती है, तो कहा जाता है कि अपने ही लोगों से डरते हो और जब लोग बैरीकेड तोड़ कर उपद्रव करते हैं, तो कहते हैं रोका क्यों नहीं?
एक चैनल पर सिरसा कहते हैं कि सरकार का विरोध करते ही हम देशद्रोही, खालिस्तानी बता दिए जाते हैं। क्यों? देश और सरकार अलग-अलग होते हैं। आज देश का अन्नदाता देशद्रोही कैसे हो गया?
कुछ गंभीर बहसें राज्यसभा में दिखीं। इनमें गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा के हस्तक्षेप स्तरीय दिखे, लेकिन मनोज झा का भाषण सर्वाेत्तम दिखा। बीस मिनट में उन्होंने पहले भक्त मीडिया और सरकार की खबर ली कि शाम होते-होते यह मीडिया हर ‘असहमत’ को ‘खालिस्तानी या पाकिस्तानी या टुकड़े टुकड़े गैंग’ बना देता है।
जो सरकार इनके भरोसे चलेगी उसका भगवान ही बेली है! उनके चुटीले वक्तव्य में ‘पंचतंत्र’ और ‘मैकबेथ’ के बहाने तीखे व्यंग्य रहे। साथ ही किसानों के पक्ष में पुरजोर अपील रही कि वह सरिया, कील, खाई तो सरहद की तस्वीरों तक में नहीं देखी… आज आप किसानों से ही लड़ रहे हैं। वे आपकी जान नहीं, अपना हक मांग रहे हैं। अपना लोकतंत्र किसी के ट्वीट से कमजोर नहीं होने का।
अगर जेपी के वक्त ये कीलें और खाई होतीं, तो उनको कैसा लगता?… आप सिर्फ सुनाना जानते हैं, सुनना भूल गए हैं। अब किसान ने कोड़ा लगा दिया है…
और आश्चर्य कि कुछ देर बाद ही एक चैनल गाजीपुर की कीलों को उखाड़े जाते दिखाने लगा।