साथ और स्नेह की सुदृढ़ बुनियाद कहे जाने वाले परिवार में रिश्तों की रंजिशें और मन का अलगाव जानलेवा साबित हो रहा है। यह वाकई चिंताजनक है कि अपनों का साथ हिम्मत देने के बजाय जिंदगी से हारने का कारण बन रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2020 में देश में एक लाख तिरपन हजार लोगों ने आत्महत्या का कदम उठाया। यह आंकड़ा 2019 के मुकाबले दस प्रतिशत ज्यादा है। इनमें सबसे अधिक 33.6 प्रतिशत मामलों में पारिवारिक समस्याएं खुदकुशी की वजह बनीं।
ऐसे सभी कारण पारिवारिक संबंधों की उलझनों, तलाक, अकेलापन, सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से जुड़े हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक आत्महत्या करने वालों में शादी से जुड़ी समस्याओं से पांच प्रतिशत और प्रेम संबंधों के चलते 4.4 प्रतिशत लोगों ने जीवन से मुंह मोड़ लिया। इतना ही नहीं, सामाजिक स्थिति से जुड़ी आत्महत्याओं में 66.1 फीसद शादीशुदा थे और चौबीस प्रतिशत अविवाहित।
पारिवारिक जीवन से जुड़े हालात के तहत ही जीवन साथी को खो चुके विधवा या विधुर लोगों में 1.6 प्रतिशत और तलाकशुदा लोगों में 0.5 फीसद खुदखुशी के मामले सामने आए हैं। ऐसे में लगता है कि घर-परिवार की जिम्मेदारी उठा रहे लोगों ने भी आत्महत्या जैसा अतिवादी कदम उठाया तो अलगाव के हालात से जूझ रहे लोग भी जीवन से नहीं जूझ पा रहे।
विचारणीय है कि पारिवारिक समस्याओं से जुड़े पहलू जीवन को हर मोर्चे पर प्रभावित करते हैं। साथ ही जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी तकलीफें भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पारिवारिक जीवन पर असर डालती ही हैं। ऐसे में भावनात्मक टूटन और व्यावहारिक उलझनों का जाल अनगिनत मुश्किलें खड़ी कर देता है। यही वजह है कि पारिवारिक समस्याओं से जीवन हारने वालों में गृहिणियां भी हैं और पेशेवर महिला-पुरुष भी। दिहाड़ी मजदूर भी हैं और युवा भी। हालांकि कारण अलग-अलग हैं, पर समग्र रूप से ऐसी उलझनें घर-परिवार के परिवेश से ही जुड़ी हैं, जो कहीं न कहीं साथ, सहयोग और संबल के रीतने की ओर इशारा करती हैं।
गौरतलब है कि 2020 में बीमारी से अठारह फीसद, नशे की लत से छह प्रतिशत, कर्ज के चलते 3.4 प्रतिशत, बेरोजगारी से 2.3 फीसद और परीक्षाओं में विफलता के कारण 1.4 प्रतिशत खुदकुशी के मामले सामने आए हैं। साफ है कि जिंदगी से मुंह मोड़ने वालों में हर उम्र के लोग शामिल हैं। यानी पारिवारिक सहयोग और संबल का भाव विद्यार्थियों से लेकर बेरोजगारी की परिस्थितियों से जूझ रहे वयस्कों तक, सभी के लिए अहम है। जबकि जो कुछ हो रहा है वह ठीक इसके विपरीत है। ऐसी अधिकतर घटनाओं के पीछे घर-परिवार से मिलने वाला मानसिक दबाव और अपेक्षाएं भी आत्महत्या जैसा कदम उठाने की वजह बन रही हैं।
दरअसल, बीते कुछ बरसों से पारिवारिक अलगाव, अपनों की अपेक्षाएं और घरेलू रंजिशें आत्महत्या का कारण बन रही हैं। करीबी रिश्तों में भी असंतोष और अधीरता की भावना पनप रही है। एक ओर आपाधापी ने धैर्य छीन लिया है, तो दूसरी ओर अपनों के साथ होकर भी अकेलेपन को जीने के हालात बन गए हैं। इतना ही नहीं, पारिवारिक कलह के कारण हिंसा और हत्या के मामले भी देखने में आ रहे हैं। कहीं उपेक्षा का भाव तो कहीं अपेक्षाओं का बोझ, जीवन पर भारी पड़ रहा है। कभी पारिवारिक ताने-बाने में सांसारिक मुश्किलों की अपनों से शिकायत कर मन को संतोष मिल जाया करता था। आज अधिकतर घरों के लोग अपने ही आंगन में असंतोष, आक्रोश और उलाहनों की उलझनों में घिर गए हैं। कोरोन की आपदा ने इन पहलुओं पर मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
यह कटु सच है कि बदलती जीवन-शैली और स्वार्थपरक सोच ने मन-जीवन से जुड़ी जटिलताएं बढ़ा दी हैं। व्यक्तिगत स्तर पर जरूरतों की जगह इच्छाओं और सामुदायिक जुड़ाव का स्थान एकाकी सोच ने ले लिया है। साथ ही बड़ी आबादी वाले हमारे देश में असमानता, बेरोजगारी और लैंगिक भेदभाव ने भी मुश्किलें बढ़ाई हैं। तकलीफदेह यह है कि सामाजिक हो या परिवेशगत, हर समस्या से जूझने में परिवार भी मददगार नहीं बन पा रहे हैं। चिंता की बात यह भी है कि हाल के बरसों में यह जीवन का साथ छोड़ने का अहम कारण बन गया है।
2019 में भी आत्महत्या के चार बड़े कारणों में दो घर-परिवार से जुड़े कारण ही थे। इनमें समग्र रूप से 29.2 लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते खुदकुशी की, तो 5.3 फीसद वैवाहिक जीवन से जुड़े मसले आत्महत्या का कारण बने। दुखद है कि हमारे यहां कर्ज और बीमारी जैसे कारणों के चलते पूरे के पूरे परिवार सामूहिक आत्महत्या जैसा कदम तक उठा ले रहे हैं। परिवारों में छोटी-छोटी बातें भी कलह का कारण बन रही हैं। ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं जब किसी बच्चे या बड़े ने मामूली विवाद या कहा-सुनी के चलते खुदकुशी का रास्ता चुन लिया। ऐसे में पारिवारिक मामलों में बढ़ती मुश्किलों को लेकर चेतना जरूरी हो चला है।
अपनों से जुड़ी परेशानियां इंसान को मन के मोर्चे पर कमजोर बनाती हैं। बिखरते मन के ऐसे ही किसी मोड़ पर इंसान आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है। तभी तो देश की सुरक्षा में डटे जवानों में भी आत्महत्या का मुख्य कारण पारिवारिक वजहें ही हैं। हाल ही में सामने आया कि जवानों की खुदकुशी के पचास प्रतिशत मामलों में पारिवारिक उलझनें और घरेलू विवाद हैं। मौजूदा दौर में घरेलू मुद्दे इस कदर उलझ गए हैं कि जिंदगी का ही दम घुट रहा है। महिला, पुरुष, दिहाड़ी मजदूर, विद्यार्थी या किसान, कोई इनसे अछूता नहीं है।
एक ओर रिश्तों से भरोसा रीत रहा है तो दूसरी ओर संबंधों में आ रहा बिखराव मन-मस्तिष्क को कमजोर कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि देश में 2016 से 2020 के बीच विवाहेतर संबंधों के कारण हर साल ग्यारह सौ आत्महत्याएं हुईं। विडंबना है कि खुलेपन की इस सोच के चलते भी जिंदगी में दुश्वारियां बढ़ी हैं और पुरातनपंथी सोच भी लोगों की जान ले रही है। यही वजह है कि दहेज की मांग और घरेलू हिंसा के चलते आत्महत्या करने वाली महिलाओं के आंकड़े भी बेहद चिंताजनक हैं।
समझना मुश्किल नहीं कि ऐसी सभी समस्याएं कमोबेश पारिवारिक हालात से जुड़ी हैं। अफसोसनाक है कि संवाद, मनोरंजन और सूचनाओं की पहुंच बढ़ाने वाली तकनीक भी पारिवारिक समस्याओं में इजाफा ही कर रही है। वर्चुअल माध्यमों के जरिए बाहरी दुनिया से जुड़ने की जद्दोजहद और बेवजह के आभासी संवाद के चलते अधिकतर लोग आत्मकेंद्रित और अकेलेपन को जी रहे हैं। आभासी संसार की दिखावटी दोस्ती, अनजाने रिश्ते और अनर्गल संवाद ने व्याहारिक हालात इतने विकट कर दिए हैं कि हजारों से बतियाने और पल-पल की बात साझा करने वालों के पास असल में मन की पीड़ा साझा करने वाला कोई नहीं है।
देखने में आ रहा है कि सामाजिक संवाद का खत्म होता दायरा अब पारिवारिक रिश्तों में पसरते मौन तक आ पहुंचा है। इस बेवजह की मसरूफियत में करीबी लोग भी एक-दूजे का हाल जानने के बजाय स्क्रीन में झांक रहे हैं। ऐसे हालात अकेलेपन को पोषित करने वाले और पारिवारिक परिवेश में दूरियां पैदा करने का कारण बन रहे हैं। जरूरी है कि अपनों के मन-जीवन के प्रति भी समझ और संवेदनाएं रखी जाएं।