जब आप रविवार, 29 जनवरी, 2023 को यह स्तंभ पढ़ रहे होंगे, तब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा एक सौ पैंतीस दिनों में लगभग चार हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी होगी। किसी की राजनीतिक धारणा चाहे जो भी हो, या भले कोई राजनीतिक धारणा न हो, कोई इस बात पर विवाद नहीं कर सकता कि यह यात्रा धैर्य, दृढ़ संकल्प और शारीरिक सहनशक्ति का एक अद्वितीय प्रदर्शन रही है।
भाजपा को चिंता क्यों?
राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि उनकी यात्रा का कोई राजनीतिक या चुनावी मकसद नहीं है। उसका एकमात्र उद्देश्य प्रेम, बंधुत्व, सांप्रदायिक सद्भाव और एकता का संदेश फैलाना है। इन्हें बड़े करीने से ‘राजनीतिक’ या ‘चुनावी’ मुद्दे के रूप में प्रचारित नहीं किया जा सकता; इसलिए भाजपा और अन्य आलोचक बौखलाए हुए हैं। भाजपा ने यात्रा की आलोचना करने के लिए तर्कहीन आधार गढ़े। उसके स्वास्थ्य मंत्री ने ‘कोरोना वायरस के प्रसार के खतरे’ का बचकाना विचार प्रचारित कर प्रहार किया, ताकि राहुल गांधी अपनी यात्रा रद्द कर दें।
मगर राहुल गांधी विचलित नहीं हुए। उन्होंने आलोचना के बावजूद यात्रा जारी रखी। वे लोगों, खासकर युवाओं, महिलाओं, बच्चों, किसानों, मजदूरों और समाज के हाशिए पर रहने वालों तक पहुंचे हैं। उनका विश्वास और दृढ़ हुआ है कि भारत में व्यापक गरीबी और बेरोजगारी है; जनता का हर तबका महंगाई के बोझ से कराह रहा है; कि समाज में नफरत फैलाने वाले तत्त्व सक्रिय है; और यह कि भारतीय समाज पहले से कहीं अधिक विभाजित है। नुक्कड़ सभाओं और बड़ी-बड़ी रैलियों में उन्होंने गहरे विभाजनों पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है।
यात्रा के दौरान राहुल गांधी को मिले भारी जनसमर्थन से भाजपा क्यों चिंतित है? इसे समझने के लिए कुछ बातों पर गौर करना पड़ेगा। मैं राहुल गांधी के साथ कन्याकुमारी, मैसूर और दिल्ली में चला। जगह-जगह भारी भीड़ थी। हर राज्य में और हर जगह ऐसा ही माहौल था: मैंने सारी तस्वीरें और वीडियो देखे हैं। रास्ते के किसी भी बिंदु पर किसी को बस नहीं दी गई थी।
इसमें भाग लेने के लिए किसी को भुगतान नहीं किया गया। किसी को भोजन के पैकेट देने का वादा नहीं किया गया था। हजारों की संख्या में युवा पैदल चल रहे थे। सड़क के दोनों ओर सैकड़ों अधेड़, बूढ़े और बच्चे झंडे लहरा रहे थे, फूल फेंक और जयजयकार कर रहे थे। लगभग सभी के पास मोबाइल फोन था और वे उससे तस्वीरें उतार रहे थे।
कलाकार, लेखक, विद्वान, राजनेता, दिव्यांग आदि विशिष्ट लोग इसमें शामिल थे। जहां तक मेरा मानना है, आम लोग इस यात्रा का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे। वे एक मौन संदेश दे रहे थे कि उन्होंने राहुल गांधी के संदेश को सुना और समझा है: कि भारत बहुत अधिक विभाजित है, घृणा और हिंसा से भर गया है तथा सामाजिक सौहार्द छिन्न-भिन्न हो गया है। इसका उत्तर प्रेम, बंधुत्व, सांप्रदायिक सद्भाव और एकता को गले लगाकर ही दिया जा सकता है।
गरीबों की उपस्थिति
जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह थी हर जगह गरीब लोगों की उपस्थिति। गरीबी से इनकार करने वाले अगर वहां मौजूद होते, तो उन्हें एहसास होता कि उसमें कितने हजार गरीब थे और इस गरीबी का कारण बेरोजगारी है। वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2022 के अनुसार, भारत में गरीबों का अनुपात जनसंख्या का 16 प्रतिशत है, यानी 22.4 करोड़ लोग। इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी अमीर हैं। गरीबी रेखा का पैमाना 1286 रुपए प्रति माह (शहरी क्षेत्रों में) और 1089 रुपए प्रति माह (ग्रामीण क्षेत्रों में) बहुत कम है। दिसंबर, 2022 में बेरोजगारी दर 8.3 फीसद थी।
मुझे यकीन है कि भीड़ में ऐसे सैकड़ों लोग थे, जिन्होंने पिछले चुनावों में भाजपा या गैर-कांग्रेसी पार्टियों को वोट दिया था, लेकिन मैंने उनके चेहरों पर कोई नफरत का भाव नहीं देखा। बहुत सारे लोग उत्सुक थे, लेकिन लगभग सभी की आंखों में आशा की एक किरण थी: क्या यह यात्रा एक बेहतर कल की ओर ले जाएगी?
भाजपा की दुश्मनी क्यों?
भाजपा प्रेम और सांप्रदायिक सद्भाव फैलाने के विचार के प्रति शत्रुतापूर्ण भाव क्यों रखती है? क्योंकि, ‘सबका साथ सबका विकास’ के बावजूद, भाजपा ने मुसलमानों और ईसाइयों को सुनियोजित तरीके से बाहर कर दिया है और अन्य अल्पसंख्यकों का तिरस्कार किया है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में कोई मुसलमान नहीं है। भाजपा के लोकसभा के 303 और राज्यसभा के 92 सांसदों में एक भी मुसलिम सदस्य नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय में एकमात्र मुसलिम जज 5 जनवरी, 2023 को सेवानिवृत्त हो गए।
भाजपा के समर्थक हिजाब पहनने, अंतर-धार्मिक विवाह, तथाकथित ‘लव जिहाद’, गायों को ले जाने, छात्रावासों में मांसाहारी भोजन परोसने जैसे बहाने ढूंढ़ते हैं। आज भी भीड़-हिंसा होती है। ईसाई चर्चों में तोड़फोड़ की जाती है। किसी ऐसे क्षेत्र में किसी भी पुलिस अधिकारी से पूछें, जहां बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों का मिश्रण है, तो और वह आपको बताएगा कि वह अति-ज्वलनशील डिब्बे (टिंडरबाक्स) की निगरानी कर रहा है।
व्यक्ति से क्या मतलब है- राहुल गांधी खुद? यात्रा के अनुभव ने भले राहुल गांधी को प्रभावित किया हो, लेकिन मैं जानता हूं कि इससे उनके प्रति लोगों के दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। यहां तक कि भाजपा के सदस्य भी अनिच्छा से उनके धैर्य, दृढ़ संकल्प और शारीरिक पीड़ा को सहन करने की शक्ति को स्वीकार करते हैं।
दर्जनों लोगों (जिन्हें मैं जानता हूं, जिन्होंने कांग्रेस को वोट नहीं दिया) ने मुझे बताया कि वे राहुल गांधी को एक नए नजरिए से देखते हैं। मेरे लिए यह स्पष्ट है कि व्यक्ति का संदेश सभी वर्गों के लोगों तक पहुंच गया है। व्यक्ति ने सम्मान अर्जित किया है। मिशन ने निस्संदेह सफलता अर्जित की है। संदेश दूर-दूर तक फैल चुका है। यह अच्छा है, फिलहाल के लिए।