लेखा महानियंत्रक द्वारा नवंबर तक उपलब्ध राजस्व और व्यय के आंकड़े भी अच्छे संकेतक हैं। इनसे वित्त मंत्री को चालू वर्ष के लिए संशोधित अनुमान और अगले वर्ष के बजट अनुमानों पर पहुंचने में मदद मिल सकती है।
अनुमानों का मिश्रित पिटारा
अनुमान गड़बड़ हो सकते हैं। जहां तक अर्थव्यवस्था का संबंध है, तीन या चार महीने का समय काफी लंबा होता है। मार्च, 2020 के आखिर तक किसी को कोरोना विषाणु के प्रकोप और इसके तेजी से प्रसार का अनुमान नहीं हो सका था। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए बनाए गए बजट में सभी आंकड़े धराशाई हो गए। सितंबर 2008 में दुनिया को प्रभावित करने वाले अप्रत्याशित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट ने भारत सहित हर देश में विकास, मुद्रास्फीति और रोजगार के अनुमानों को बढ़ा दिया था।
एनएसओ की छह जनवरी, 2023 को जारी प्रेस विज्ञप्ति से कुछ सबक और सुराग निकाले जा सकते हैं। ऐसा करने से पहले मैं उन निष्कर्षों को याद करना चाहूंगा, जो मैंने एक जनवरी, 2023 के स्तंभ में निकाले थे (‘अर्थव्यवस्था और अनिश्चितता’)। मैंने आधिकारिक और विश्वसनीय स्रोतों से ली गई जानकारी के आधार पर 2023-24 के लिए दृष्टिकोण रखा था। मेरा सुझाव है कि हम एफएई पर नजर डालें और पूछें कि क्या उन निष्कर्षों को संशोधित करने की आवश्यकता है। कुछ उत्साहवर्धक तथ्य हैं: जीडीपी (15.4 फीसद) बजट अनुमान (11.1 फीसद) से अधिक होगी। राजस्व उत्साहजनक है और सरकार के पास अधिक पैसा ला सकता है। नतीजतन, 6.4 फीसद के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना आसान हो जाएगा।
उपभोग आधारित वृद्धि
हालांकि कई काले धब्बे भी हैं। एफएई में कुछ भी मेरे निष्कर्ष को बदलने का कारण (आरबीआइ बुलेटिन के आधार पर) नहीं होगा कि ‘जोखिमों का संतुलन तेजी से एक अंधेरे वैश्विक दृष्टिकोण की ओर झुका हुआ है और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं अधिक कमजोर दिखाई देती हैं।’ वित्त वर्ष 2022-23 में विकास को प्रेरित करने का जो कारक लग रहा है, वह है निजी उपभोग (जीडीपी का 57.2 फीसद)। आगे चलकर निजी उपभोग पर स्थिर मुद्रास्फीति और उच्च बेरोजगारी की मार पड़ेगी।
विकास के अन्य कारक सपाट हैं- बहुप्रचारित सरकारी व्यय (जीडीपी का 10.3 फीसद) पिछले दो वर्षों की तुलना में कम होगा और वैश्विक व्यापार में मंदी (डब्लूटीओ के अनुसार) के पूर्वानुमानों के बीच निर्यात (जीडीपी का 22.7 फीसद) सपाट रहेगा। दूसरी चिंता आयात है, जो जीडीपी का 27.4 फीसद रहेगा। यह 2020-21 में 19.1 फीसद और 2021-22 में 23.9 फीसद से तेज उछाल का द्योतक है।
उच्च निर्यात के बिना उच्च आयात का मतलब है कि हम उपभोग के लिए आयात कर रहे हैं। इससे रुपए की विनिमय दर पर दबाव पड़ सकता है, चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है और पूंजी पलायन शुरू हो सकता है।
आर्थिक गतिविधियों के हिसाब से दो चिंताजनक आंकड़े ‘खनन एवं उत्खनन’ (पिछले साल की तुलना में 2.4 फीसद वृद्धि) और ‘विनिर्माण क्षेत्र’ (1.6 फीसद) के हैं। ये दरें 2021-22 में दर्ज की गई विकास दरों की तुलना में काफी कम हैं। ‘निर्माण’ 2022-23 में 9.1 फीसद की दर से बढ़ेगा, लेकिन यह 2021-22 में दर्ज 11.5 फीसद की तुलना में गिरावट वाला होगा। एफएई जारी होने के एक हफ्ते बाद भी न तो वित्त मंत्री और न ही संबंधित मंत्रियों ने अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों के निराशाजनक प्रदर्शन के बारे में व्याख्या की है।
उत्पादन नीचे, बेरोजगारी ऊपर
बेरोजगारी पर भी दृष्टिकोण उज्ज्वल नहीं है। सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाले क्षेत्र कृषि, खनन और उत्खनन, विनिर्माण, निर्माण और व्यापार, होटल, परिवहन, संचार आदि हैं। आखिरी (13.7 फीसद) को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में सपाट या सुस्त वृद्धि होगी। ये आंकड़े सीएमआइई के बेरोजगारी के अनुमान की पुष्टि करते हैं। बढ़ती बेरोजगारी (संदेश) के अंतर्निहित कारणों पर गौर करने की जगह सरकार संदेशवाहक पर ही कड़ाई बरत रही है।
उत्पादन के लिहाज से, 2022-23 के लिए एफएई के आंकड़े निराशाजनक हैं। यह स्वीकार करते हुए कि 2021-22 के प्रतिशत परिवर्तन के आंकड़े 2020-21 के महामारी से प्रभावित वर्ष पर आधारित थे, फिर भी लगभग सभी प्रमुख मदों में 2022-23 में प्रतिशत परिवर्तन अर्थव्यवस्था में स्पष्ट मंदी की ओर इशारा करते हैं- जैसे, चावल, कच्चे तेल और सीमेंट का उत्पादन। प्रमुख बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर माल ढुलाई का आंकड़ा पिछले साल की तुलना में कम वृद्धि दर दर्ज करेगा। रेलवे शुद्ध टन किलोमीटर और यात्री किलोमीटर में कम वृद्धि दर दर्ज करेगा। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) खनन (4.0 फीसद), विनिर्माण (5.0), बिजली (9.4) और धातु खनिज (-6.5) में निम्न स्तर पर एकल अंकों में होगा।
लगातार उच्च मुद्रास्फीति आर्थिक संकट को बढ़ाएगी। खाद्य वस्तुओं का थोक मूल्य सूचकांक 9.6 फीसद, विनिर्मित उत्पादों का 7.6 फीसद और सभी वस्तुओं का 12.3 फीसद रहेगा। वित्त मंत्री 2023-24 के बजट में इन कमजोरियों को कैसे दूर करेंगी? रियायतें या बयानबाजी अर्थव्यवस्था को ऊपर नहीं उठाएगी या मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और वैश्विक मंदी के कारण संकट को कम नहीं करेगी। हमें स्पष्ट नीतियों और दृढ़ कार्रवाई की आवश्यकता है। आइए, एक फरवरी 2023 का इंतजार करें।