पिछला हफ्ता बजट की चर्चाओं से भरा रहा। केंद्रीय बजट एक वित्तीय वर्ष के लिए केंद्र सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय के वार्षिक विवरण से कुछ आगे निकल गया है। अब यह लोगों को सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों से अवगत कराने का प्रमुख साधन बन गया है। लोग विशेष प्रस्तावों के साथ-साथ संकेतों के लिए बजट को देखते हैं।
हालांकि, बेजुबान, बेजुबान ही रहते हैं। सरकार में निर्णय लेने वालों तक उनकी कोई पहुंच नहीं है और वे एक सेतु के रूप में कार्य करने के लिए राजनीतिक दलों और सांसदों पर निर्भर हैं। लोकसभा में बहुमत वाली प्रभावशाली सरकार प्राय: आत्ममुग्ध है और राजनीतिक दलों या सांसदों से कभी परामर्श नहीं करती।
संदर्भ का खुलासा
आम लोग और विशेषज्ञ आर्थिक स्थिति पर अद्यतन जानकारी के लिए बजट की पूर्व संध्या पर पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण को देखते हैं। हमेशा की तरह, अध्याय एक में 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण में अगले वर्ष के लिए ‘दृष्टिकोण’ शामिल है। इस वर्ष, मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने बिना किसी दिशा-निर्देश के, भटकने के बाद, 2023-24 के लिए ‘दृष्टिकोण’ की मूल भावनाओं को दो पैराग्राफ में संक्षिप्त रूप में पेश किया, जिन्हें मैं नीचे पुन: प्रस्तुत कर रहा हूं।
1.30- भले भारत का ‘दृष्टिकोण’ उज्ज्वल बना हुआ है, लेकिन इसे अगले साल की वैश्विक आर्थिक संभावनाओं, चुनौतियों और कुछ संभावित नकारात्मक जोखिमों के एक अद्वितीय सेट के संयोजन से आंकने का प्रयास किया गया है। बहुदशकीय ऊंची महंगाई ने दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों को वित्तीय संकट से जूझने पर मजबूर किया है। मौद्रिक सख्ती का असर मंदी के रूप में दिखने लगा है, खासकर उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक गतिविधियों पर इसका असर नजर आने लगा है।
इसके अलावा भू-राजनीतिक संघर्ष के कारण आपूर्ति शृंखलाओं में लंबे समय तक तनाव और बढ़ी हुई अनिश्चितताओं से वैश्विक परिदृश्य और बिगड़ गया है। इस तरह, विश्व मुद्रा कोष के वैश्विक आर्थिक परिदृश्य, अक्तूबर 2022 के अनुसार वैश्विक विकास 2022 के 3.2 फीसद की तुलना में 2023 में 2.7 फीसद तक धीमा रहने का अनुमान है। आर्थिक उत्पादन में धीमी वृद्धि के साथ-साथ अनिश्चितता बढ़ने से व्यापार वृद्धि में कमी आएगी। विश्व व्यापार संगठन ने 2022 की वैश्विक व्यापार वृद्धि दर के 3.5 फीसद से घट कर 2023 में 1.0 फीसद तक पहुंचने का पूर्वानुमान लगाया है।
1.31 बाहरी मोर्चे पर, चालू खाता शेष के जोखिम कई स्रोतों से उत्पन्न होते हैं। हालांकि रोजमर्रा इस्तेमाल की वस्तुओं की कीमतें अभूतपूर्व ऊंचाई से कुछ कम हुई हैं, पर अब भी वे पूर्व-संघर्ष स्तरों से ऊपर बनी हुई हैं। भारत में बढ़ती मांग के बीच जिंसों की ऊंची कीमतों के चलते कुल आयात खर्च बढ़ेगा और चालू खाता शेष पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देगा। वैश्विक मांग में कमी के कारण निर्यात वृद्धि स्थिर रहने से इनमें और बढ़ोतरी देखी जा सकती है। अगर चालू खाता घाटा और अधिक बढ़ता है, तो मुद्रा के अवमूल्यन का दबाव बढ़ सकता है।
अगर सीईए को लगता है कि उसने अपना काम कर दिया है, तो यह गलत धारणा है। उन्हें भारतीय संदर्भ में ‘परिदृश्य’ का कठोर विश्लेषण करना और सरकार के सामने पूर्वव्यापी या सुधारात्मक उपाय करने के विकल्प रखना चाहिए था। उसी समय, माननीय वित्तमंत्री को आर्थिक सर्वेक्षण का अध्याय एक पढ़ने के बाद, संसद में अपने आकलन को साझा करना और उसके द्वारा सुझाए उपायों को बताना चाहिए था। मगर दोनों विफल रहे। लिहाजा, बजट भाषण के पाठ की उस संदर्भ से कोई प्रासंगिकता नहीं है, जिसमें बजट प्रस्तुत किया गया। नब्बे मिनट का भाषण अंधेरे में एक लंबी सीटी की तरह था।
तीन संदिग्ध बिंदु
बजट में तीन बातें स्पष्ट हैं: (1) 2022-23 में पूंजीगत व्यय के लिए आबंटित धन को खर्च करने में विफल रहने के बाद, वित्तमंत्री ने 2023-24 में पूंजीगत व्यय के बजट अनुमानों को 33 फीसद तक बढ़ा दिया है। (2) सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च में बेरहमी से कटौती करने के बाद, वित्तमंत्री ने गरीबों और वंचितों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि उनका कल्याण सर्वोपरि है। (3) 2020 में शुरू की गई नई (कोई छूट नहीं) कर व्यवस्था में लोगों को स्थांतरित करने के लिए प्रेरित करने में विफल रहने के बाद, वित्तमंत्री ने इस पर संदेहास्पद गणना पेश की कि मध्यवर्ग के करदाता के लिए नई कर व्यवस्था कैसे एक वरदान है।
रेखांकित किए गए तीन बिंदुओं में से कोई भी बारीकी से जांच के दायरे में नहीं आता। पहला, सरकारी पूंजीगत व्यय। वित्तमंत्री ने खामोशी के साथ स्वीकार किया है कि विकास के अन्य तीन इंजन लड़खड़ा रहे हैं। निर्यात की दर नीचे है; वित्तमंत्री द्वारा उद्योगपतियों को डांटे जाने के बावजूद निजी निवेश सुस्त है; खपत स्थिर है और गिर सकती है।
वित्तमंत्री के पास सरकारी पूंजीगत व्यय बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। 2022-23 में, 7,50,246 करोड़ रुपए के बजट अनुमान के मुकाबले संशोधित अनुमान घटकर 7,28,274 रुपए रह जाएगा, जो सरकारी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में अंतर्निहित कमजोरियों को उजागर करता है। मंत्रालयों (जैसे, रेलवे और सड़क) की बाधाओं और दोहन क्षमता को अनदेखा करते हुए, वित्तमंत्री ने 10,00,961 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं! यहां तक कि पूंजीगत व्यय के पैरोकार भी बौखलाए हुए हैं।
दूसरा, कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च बढ़ाने का वादा। 2022-23 में, कई प्रमुख क्षेत्रों के तहत- कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज कल्याण, शहरी विकास, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों और कमजोर समूहों के विकास के लिए अंब्रेला योजनाएं, आदि से संबंधित आबंटन के झूठे वादे कर- सरकार ने बजट बनाकर लक्ष्य समूहों को छोटा कर दिया है। अगले वर्ष के लिए उर्वरक और खाद्य पर सबसिडी चालू वर्ष के मुकाबले 1,40,000 करोड़ रुपए कम कर दी गई है। मनरेगा के लिए आबंटन में 29,400 करोड़ रुपए की कटौती की गई है। जो शेष रह गया है वे केवल सुखदायी शब्द हैं।
रहस्य का पर्दाफाश
अंत में, नई कर व्यवस्था का रहस्य। हालांकि यह पहले से ही सुलझा हुआ है। इस विषय पर अगले सप्ताह अलग से चर्चा की आवश्यकता है। मगर इसमें एक बात स्पष्ट है कि सरकार व्यक्तिगत आयकर में सभी छूटों को समाप्त करना चाहती है। अब आप अनिश्चितताओं से भरे वर्ष में खुद को रोलरकोस्टर की सवारी के लिए तैयार कर लें।