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भविष्य की खदान, जम्मू-कश्मीर में मिले लिथियम का मानक साढ़े पांच सौ पीपीएम से अधिक, आयात पर घटेगी निर्भरता

लिथियम आयन बैटरी के बाजार में चीन की भागीदारी अस्सी फीसद है। ऐसे में भारत में लिथियम का बड़ा भंडार मिलना, कुदरत का खजाना हाथ लगने जैसा है।

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जम्मू कश्मीर में 59 लाख टन लीथियम का भंडार मिला है। (Image Credit-Express File)

रंजना मिश्रा

हाल ही में जम्मू-कश्मीर में लिथियम का बड़ा भंडार मिला है, जिसमें करीब उनसठ लाख टन लिथियम होने का अनुमान लगाया जा रहा है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार रियासी में पाया गया यह लिथियम भंडार उच्च गुणवत्ता का है। सामान्य श्रेणी का लिथियम दो सौ बीस पीपीएम (पार्ट्स प्रति मिलियन) का होता है, जबकि जम्मू-कश्मीर में मिले भंडार में लिथियम का मानक साढ़े पांच सौ पीपीएम से अधिक है। तीन सौ पीपीएम से अधिक गुणवत्ता वाले किसी भी लिथियम खनिज को अच्छा माना जाता है। यह एक दुर्लभ धातु है। विद्युत बैटरी के लिए दुनिया भर में इसकी बहुत अधिक मांग है। अभी तक भारत लिथियम के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है, लेकिन अब जम्मू-कश्मीर में लिथियम का भंडार मिलने से भारत की आयात पर निर्भरता कम होगी।

सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग मोबाइल, लैपटाप, डिजिटल कैमरा में होता है

लिथियम एक अलौह धातु है, जिसका सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग मोबाइल, लैपटाप, डिजिटल कैमरा और विद्युत वाहनों के लिए रिचार्जेबल बैटरी में होता है। दिल के पेसमेकर, खिलौने और घड़ियों जैसी चीजों के लिए कुछ गैर-रिचार्जेबल बैटरी में भी लिथियम का उपयोग किया जाता है। अनेक चिकित्सीय उपकरणों में भी लिथियम का उपयोग किया जाता है। इसीलिए भविष्य के लिए लिथियम बहुत महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान में लिथियम सहित निकल और कोबाल्ट जैसे कई महत्त्वपूर्ण खनिज भारत द्वारा आयात किए जाते हैं। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों का पता लगाना और उन्हें संसाधित करना बहुत जरूरी है, क्योंकि चाहे मोबाइल फोन हों या सोलर पैनल, हर जगह इन खनिजों की आवश्यकता होती है।

उच्च क्षमता वाली रिचार्जेबल बैटरी में उपयोग के कारण लिथियम की बढ़ती मांग को देखते हुए इसे अब एक नया ‘सफेद सोना’ कहा जाता है। यह एक नरम तथा चांदी के समान सफेद धातु होती है, जो मानक परिस्थितियों में सबसे हल्की धातु और सबसे हल्का ठोस तत्त्व है। यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील और ज्वलनशील होता है। इसका उपयोग परमाणु और अन्य उच्च तकनीकी उद्योगों जैसे इलेक्ट्रानिकी, दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, रक्षा आदि में भी किया जाता है। उपयोगी मिश्रित धातु को बनाने में भी लिथियम का उपयोग किया जाता है।

दुनिया के लगभग पचास फीसद लिथियम भंडार अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली में पाए जाते हैं। आस्ट्रेलिया में भी लगभग 27 लाख टन लिथियम के भंडार हैं। लिथियम आयन बैटरी के बाजार में चीन की भागीदारी अस्सी फीसद है। ऐसे में भारत में लिथियम का बड़ा भंडार मिलना, कुदरत का खजाना हाथ लगने जैसा है। जीएसआइ की रिपोर्ट के अनुसार, यह भंडार इतना बड़ा है कि लिथियम के मामले में भारत शीर्ष देशों की श्रेणी में आ गया है।

भविष्य में इसकी भूमिका बढ़ेगी

अब पेट्रोल-डीजल, कोयला और प्राकृतिक गैसों के भंडार तेजी से घटते जा रहे हैं तथा दुनिया के सामने स्वच्छ ऊर्जा को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की चुनौती है। इसे देखते हुए लिथियम की भूमिका आने वाले समय में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाएगी, क्योंकि स्वच्छ ऊर्जा का संचय करने के लिए लिथियम बैटरी की जरूरत पड़ेगी। एक अनुमान के अनुसार, 2040 तक दुनिया भर में स्वच्छ ऊर्जा के रूप में नब्बे फीसद तक लिथियम का उपयोग किया जाएगा, क्योंकि जैसे-जैसे विद्युत वाहनों की मांग बढ़ेगी, वैसे-वैसे लिथियम आयन बैटरी का उपयोग भी बढ़ेगा।

लिथियम-आयन बैटरियों में पुरानी बैटरियों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा घनत्व होता है, इसीलिए ये पुरानी बैटरियों की तुलना में काफी छोटी होती हैं, साथ ही ये अधिक हल्की और ताकतवर होती हैं। ये अधिक ऊर्जा का संचय करने में सक्षम होती हैं। रिचार्जेबल होने के साथ-साथ इनका जीवन भी लंबा होता है। इस तरह लिथियम आयन बैटरी भविष्य में ऊर्जा का बड़ा स्रोत बनेंगी। दुनिया के कुल उत्पादित लिथियम का लगभग चौहत्तर फीसद उपयोग बैटरियों में होता है।

दुनिया के अधिकतर देश बैटरियों के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं

चीन दुनिया भर में लिथियम आयन बैटरियों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। अभी दुनिया के अधिकांश देश इन बैटरियों के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं। भारत बड़ी संख्या में चीन से इन बैटरियों को खरीदता रहा है। मगर चीन की चालबाजियों और विस्तारवादी नीतियों को देखते हुए कोरोना के बाद दुनिया के अधिकांश देश चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहते हैं। भारत भी आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ इस क्षेत्र में अपने लिए अपार संभावनाएं तलाश रहा है। वह अर्जेंटीना, चिली, आस्ट्रेलिया और बोलिविया जैसे लिथियम समृद्ध देशों की खदानों में हिस्सेदारी खरीदने के प्रयास कर रहा है।

देश में ही लिथियम मिलने से बैटरी निर्माण को बढ़ावा मिलेगा। भारत सरकार ने 2030 तक वाहन क्षेत्र में विद्युत वाहनों की हिस्सेदारी तीस फीसद तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में विद्युत वाहनों का बाजार 2030 तक लगभग 206 अरब डालर तक पहुंचने की संभावना है, जिससे लगभग दस लाख नौकरियां और लगभग पांच करोड़ रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है। भारत में लिथियम का भंडार मिलने से इसकी आर्थिक हालत तो सुधरेगी ही, पूरी दुनिया में इसका प्रभाव बढ़ेगा। विश्व बैंक के अनुसार, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए 2050 तक लिथियम जैसे खनिजों के खनन में पांच सौ फीसद तक वृद्धि करनी होगी।

भारत में पहलेा लिथियम भंडार कर्नाटक में मिला था

देश का पहला लिथियम भंडार कर्नाटक में खोजा गया था। 2021 में वहां लिथियम का एक छोटा भंडार मिला था, जिसमें लगभग सोलह सौ टन लिथियम होने की संभावना जताई गई थी, पर अब भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लिथियम का भंडार मिला है। इतनी बड़ी मात्रा में लिथियम का मिलना भारत के लिए रणनीतिक रूप से भी बेहद अहम है। विशेषज्ञों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में मिला लिथियम का विशाल भंडार कार्बन उत्सर्जन को कम करने के भारत के प्रयासों में मददगार साबित होगा।

हालांकि लिथियम के भंडार से लिथियम को निकालना भी एक लंबी प्रक्रिया है और इसके लिए भारत को कुछ चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है। लिथियम के खनन की प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल नहीं होती। इसमें पानी का काफी इस्तेमाल किया जाता है और वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन होता है। खनन के बाद लिथियम को खनिज तेल का इस्तेमाल कर पकाया जाता है, जिसकी वजह से वह जगह पूरी तरह जलकर सूख जाती है और वहां काले धब्बे पड़ जाते हैं। खनन के कारण मृदा क्षरण, पानी की कमी, वायु प्रदूषण और जैव विविधता की क्षति एक बड़ी चिंता का कारण है। इसके अलावा अस्थिर हिमालय क्षेत्र में खनन जोखिम भरा होता है।

यही कारण है कि अक्सर स्थानीय निवासी लिथियम की खनन प्रक्रिया का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि इससे प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाएंगे और आगे चलकर पानी की किल्लत का सामना करना पड़ेगा। देश और दुनिया के लिए लिथियम की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए इसकी कम नुकसानदायक खनन प्रक्रिया पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। यानी खनन के ऐसे तरीके तलाशने होंगे, जिसमें पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन का भी एक सीमा तक उपयोग हो।

लिथियम की खोज का अधिकतम लाभ हासिल करने के लिए इसे बैटरी-ग्रेड लिथियम में परिवर्तित करने की तकनीक भी देश में ही विकसित करनी होगी। लिथियम के साथ-साथ देश को कोबाल्ट और निकल जैसे खनिजों की भी आवश्यकता है, जो ईवी बैटरी निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। हमें बैटरी पुनर्चक्रण की संभावनाओं का भी पता लगाना चाहिए। ईवी बैटरी आपूर्तिकर्ता देश बनने की दिशा में आगे बढ़ते हुए, उच्च गुणवत्ता वाली बैटरी बनाने के लिए अधिकतम निवेश करना चाहिए।

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First published on: 05-03-2023 at 06:30 IST
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