इत्तेफाक से पिछले हफ्ते, जिस दिन अमृतपाल सिंह फरार हुआ था, मैं अपने कुछ पुराने कागजात छांट रही थी, कि खालिस्तान का पासपोर्ट उनमें से निकल कर गिर पड़ा। वह पासपोर्ट मुझे दिया था जगजीत सिंह चौहान ने 1981 में लंदन के पैडिंगटन स्टेशन के एक प्लेटफार्म पर। उस समय जरनैल सिंह भिंडरांवाले की चर्चाएं हर जगह हो रही थीं। सो, मैं चौहान से इसलिए मिलने गई थी कि वे खालिस्तान के सबसे पुरानी सिपाही थे। उनसे मिल कर यह जानने का इरादा था कि क्या वास्तव में वे इस खयाली देश का सपना देखते हैं और क्या वे जानते हैं कि इससे सबसे ज्यादा नुकसान होगा सिख कौम का। मुझे याद नहीं कि उनका जवाब क्या था, मगर बातचीत खत्म होने के बाद उन्होंने मुझे यह नकली पासपोर्ट पकड़ाया था यह कहते हुए कि सिख होने के नाते मुझे नागरिकता का अधिकार है।
जब आपरेशन ब्लू स्टार के तहत गुरुद्वारे में सेना भेजी गई, तब गुस्सा जरूर था
वापस देश आई कुछ महीनों बाद, तो मेरी पहली मुलाकात हुई भिंडरांवाले से स्वर्ण मंदिर परिसर में गुरु नानक निवास के अंदर। उस समय उस ‘संत’ का सारा झगड़ा पंजाब पुलिस के साथ था, जिन्होंने उनके कुछ अनुयायियों को जेल में डाल कर उनके साथ मारपीट की थी। गुरुद्वारे के अंदर भिंडरांवाले के हथियारबंद सिपाही इतनी अकड़ से घूम रहे थे कि जैसे खालिस्तान बन चुका हो। लेकिन गुरुद्वारे के बाहर न अमृतसर शहर में खालिस्तान के समर्थक मिले मुझे और न ही पंजाब के गांवों में। दो साल बाद जब आपरेशन ब्लू स्टार के तहत सेना भेजी गई गुरुद्वारे के अंदर, तब गुस्सा जरूर था सिखों में गुरुद्वारे की बेअदबी को लेकर, लेकिन तब भी खालिस्तान के समर्थक विदेशों में थे, पंजाब में नहीं।
आज भी खालिस्तान के समर्थक विदेशों में मिल जाएंगे, पंजाब में नहीं। सो, सवाल है कि यह अमृतपाल सिंह आया कहां से और क्या उसके आने से खालिस्तान के लिए समर्थन पैदा हो जाएगा पंजाब के देहातों में? मेरा मानना है कि उसके कुछ समर्थक बेशक होंगे, लेकिन खालिस्तान के नहीं। खूब नाम इस शख्स ने कमा लिया है, जबसे इसने अपने हथियारबंद सिपाहियों के साथ अजनाला पुलिस थाने पर हमला करके अपने एक साथी को छुड़ा लिया था पिछले महीने।
उस हमले के बाद कई पत्रकार उसके पास पहुंच गए और उसने हिंदी और अंग्रेजी में साक्षात्कार दिए, जिसमें उससे जब पूछा गया कि वह खालिस्तान का समर्थन करता है कि नहीं, तो उसने जवाब दिया कि वह सीखी को दुबारा जिंदा करना चाहता है और इसके लिए खालसा पंथ को जिंदा करना भी जरूरी है। यह भी कहा कि अगर हिंदू राष्ट्र की बातें हो सकती हैं, तो खालिस्तान की भी बातें होनी चाहिए। काश, उसके बाद देश के गृहमंत्री और पंजाब के मुख्यमंत्री ने उसके पास अपने नुमाइंदे भेजे होते बातचीत करने के लिए। मेरा मानना है कि इससे सारा मामला शायद ठंडा पड़ जाता और हमको इस पूरे हफ्ते टीवी पर अमृतपाल सिंह के फरार होने के किस्से न सुनने पड़ते। समझ में नहीं आता कि पुलिस ने उसको चुपके से उसके घर से क्यों नहीं गिरफ्तार किया। यही सवाल उसके पिता पूछ रहे हैं।
सवाल जरूरी इसलिए है कि जिस तरह नाटकीय अंदाज में पुलिस ने उसके समर्थक पकड़े हैं और उसके पीछे लगे हुए हैं, उसे देख कर पुरानी, डरावनी यादें ताजा हो गई हैं मुझ जैसे लोगों के मन में, जिन्होंने भिंडरांवाले का जमाना करीब से देखा है। अब कई राजनीतिक पंडित मानते हैं कि भिंडरांवाले से अगर बातचीत करके उसको राजनीति में जगह दे दी जाती, तो शायद स्वर्ण मंदिर पर हमला करने की नौबत न आती। इस हमले के बाद शुरू हुआ था पंजाब में आतंकवाद का ऐसा दौर, जो एक पूरे दशक तक थमा नहीं और जिसकी वजह से पाकिस्तान के जरनैलों को मौका मिला भारत में अशांति फैलाने का।
जो लोग अभी से कह रहे हैं कि अमृतपाल सिंह के तार सीधे पाकिस्तान के आइएसआइ से जुड़े हैं, तो उनको इसका सबूत दुनिया के सामने पेश करना चाहिए, ताकि जो थोड़ा-बहुत समर्थन है अमृतपाल सिंह का, वह कम हो जाए। पंजाब के देहातों में शायद ही ऐसा कोई गांव मिलेगा, जिसमें पुराने फौजी नहीं मिलेंगे या ऐसे परिवार, जिनमें कोई न कोई शहीद नहीं हुआ है सरहद पर। जो लोग भारत के लिए शहीद होने को तैयार हैं, वे कैसे गद्दार हो सकते हैं? अफसोस कि आज माहौल ऐसा बन रहा है, जिसमें हर सिख को शक की नजर से देखा जाएगा।
याद कीजिए कि जब किसान एक साल तक धरना दे रहे थे दिल्ली की सीमाओं पर, वरिष्ठ मंत्रियों ने उनको खालिस्तानी कहा था। दोष सिर्फ राजनेताओं का नहीं है, हम पत्रकारों का भी है। पिछले सप्ताह मैं हैरान हुई यह देख कर कि टीवी के कई जाने-माने पत्रकार अमृतपाल सिंह को ‘खालिस्तानी ठग’ कह रहे थे। अभी साबित नहीं हुआ है कि वह वास्तव में ‘खालिस्तानी ठग’ है, तो ऐसा कहना गलत था और खतरनाक भी। खासकर हिंदुत्व के इस दौर में, जब भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता बिना सोचे-समझे देशद्रोह का आरोप लगाते फिरते हैं उन सब पर जो प्रधानमंत्री के आलोचक माने जाते हैं।
अमृतपाल सिंह उस वक्त उभरा है, जब पंजाब में हर राजनीतिक दल से मायूस हो गई है जनता। ऐसे माहौल में शांति कायम करने की बहुत जरूरत है, चाहे इसके लिए अमृतपाल सिंह और उसके साथियों से बातचीत का सिलसिला क्यों न शुरू करना पड़े। उनको जेलों में अगर बंद किया जाता है बातचीत के बजाय, तो पंजाब पर वही काले बादल मंडराने लगेंगे, जो भिंडरांवाले के समय हमने देखे हैं। पंजाब उस डरावने दौर से दुबारा नहीं गुजरना चाहता है।