Sardar Udham Review: जालियांबाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए माइकेल ओ डायर (जो तब पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था, हालांकि गोलियां चलाने का आदेश रेजिनाल्ड डायर ने दिया था) को लंदन जाकर मारने वाले सरदार उधम सिंह के जीवन पर बनी ये फिल्म एक ऐसे क्रांतिकारी के जीवन और संघर्ष को सामने लाती है जिसके बारे में आज भी भारत के लोगों को कम ही मालूम है। हालांकि उधम सिंह नाम को भारत की आजादी की लड़ाई से परिचित हर हिंदुस्तानी जानता है। लेकिन उन्हें जीवन में किन हालातों से गुजरना पड़ा इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं।
फिल्म उसका थोड़ा सा परिचय देती है लेकिन पूरी तरह से नहीं, क्योंकि लगभग ढाई घंटे में आप कितना दिखा सकते हैं? फिर भी ये एक बड़ी कोशिश तो है ही, जालियांवाला बाग हत्याकांड को याद करने की भी और क्रांतिकारी उधम सिंह के जज्बे को सलाम करने की भी।
विक्की कौशल ने इसमें उधम सिंह की भूमिका निभाई है और काफी हद तक वे अपने चरित्र के साथ न्याय करने में सफल रहे। उधम सिंह का जीवन कई महाद्वीपों और देशों में फैला था इसलिए किसी अभिनेता के लिए उसे निभाना चुनौती थी। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि जालियांवाला बाग के नरसंहार को कैसे दिखाया जाए कि वो दर्शकों में सही जज्बा पैदा कर सके, ये आसान नहीं था।
हालांकि इस पर बहस हो सकती है कि जो दिखाया गया है वो और भी बेहतर हो सकता था, फिर भी इतना तो कहना पड़ेगा कि सिनेमेटोग्राफर अवीक मुखोपाध्याय ने एक बेहतरीन कल्पनाशीलता का परिचय दिया है। ये भी ध्यान रखना चाहिए कि उधम सिंह की ये कहानी मुख्य रूप से जालियांवाला बाग पर ही केंद्रित है, इसलिए वो दृश्य इसका एक केंद्रीय पक्ष है। यानी वो एक ऐसा किरदार भी है जो उधम सिंह के मन में भी मोजूद रहता है और दर्शक के भीतर भी। अमोल पाराशर ने भी सरदार भगत सिंह की भूमिका के साथ न्याय किया है।
वैसे समय में जब भारत आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगांठ मना रहा है, ये फिल्म हमें इतिहास के उस दौर में ले जाती है जिसमें देशभक्ति की भावना प्रज्वलित थी। ये फिल्म अमेजन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई है।
निर्देशक– शूजित सरकार
कलाकार– विकी कौशल, स्टीफन होगन, शॉन स्कॉट, बनिता संधू, अमोल पाराशर