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श्रावण मास में क्यों करना चाहिए ‘नमः शिवाय’ मंत्र का जाप? जानें, शिव उपासना के पांच अक्षर इतने ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों हैं

सृष्टि पांच तत्वों से मिलकर बनी है। हर अक्षर का अपना अर्थ और महत्व है। आइये जानते हैं-

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श्रावण मास भगवान शिव एवं माता पार्वती को समर्पित है। (Image: Freepik)

शास्त्रों में भगवान शिव की उपासना के पांच अक्षर बताए गए हैं। ‘नमः शिवाय’ में न, म, शि, व और य ये पांच अक्षर हैं। भगवान शिव सृष्टि को नियंत्रण करने वाले माने जाते हैं। सृष्टि पांच तत्वों से बनी है इसी से चलती भी हैं। पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। शिव के पंचाक्षर मंत्र से सृष्टि के पांचों तत्वों को नियंत्रित किया जा सकता है। यह सृष्टि जो पांच तत्वों से संचालित होती है। जब इन पांचों अक्षरों को मिलाकर जप किया जाता है तो सृष्टि पर नियंत्रण किया जा सकता है। इन पांच अक्षरों के रहस्य को इस प्रकार जाना जा सकता है-

‘न’ अक्षर का मतलब

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥

इसका अर्थ नागेंद्र से है। यानि नागों को धारण करने वाले। न का अर्थ निरंतर शुद्ध रहने से है। यानि नागों को गले में धारण करने वाले और नित्य शुद्ध रहने वाले भगवान शिव को मेरा नमस्कार हैं। इस अक्षर के प्रयोग से व्यक्ति दशों दिशाओं में सुरक्षित रहता है। साथ ही इससे निर्भयता की प्राप्ति होती है।

‘म’ अक्षर का मतलब

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नमः शिवायः।।

यानि जो मंदाकिनी को धारण करते हैं, जिसका अर्थ ‘गंगा’ है। इस अक्षर का दूसरा अर्थ है ‘शिव महाकाल’ इस अक्षर का अर्थ महाकाल और महादेव से भी है। नदियों, पर्वतों और पुष्पों को नियंत्रित करने के कारण इस अक्षर का प्रयोग हुआ। क्योंकि ‘म’ अक्षर के अंदर ही प्रकृति की शक्ति विद्यमान है।

‘श’ अक्षर का मतलब

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥

इस श्लोक में शिव की व्याख्या की गई है। इसका अर्थ शिव द्वारा शक्ति को धारण करने से है। ये परम कल्याणकारी अक्षर है। इस अक्षर से जीवन में अपार सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही शिव के साथ-साथ शक्ति की कृपा भी मिलती है।

‘व’ अक्षर का मतलब

वषिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवायः॥

यानि ये जो ‘व’ अक्षर है इसका संबंध शिव के मस्तक के त्रिनेत्र से है। त्रिनेत्र का मतलब शक्ति होती है। साथ ही ये अक्षर शिव के प्रचंड स्वरूप को बताता है। इस नेत्र के द्वारा शिव इस सृष्टि को नियंत्रित करते हैं। इस अक्षर के प्रयोग से ग्रहों-नक्षत्रों को नियंत्रित किया जा सकता है।

शिव पंचाक्षर मंत्र का अंतिम अक्षर ‘य’ है। इसके बारे में कहा गया है-

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥

इसका अर्थ है भगवान शिव आदि-अनादि और अनंत है। जब सृष्टि नहीं थी तब भी शिव थे, जब सृष्टि है तब भी शिव है और जब सृष्टि नहीं रहेगी तब भी शिव विद्यमान रहेंगे। ये संपूर्णता का अक्षर है। यह अक्षर बताता है कि दुनिया में शिव का ही केवल नाम है। जब आप नमः शिवाय में य बोलते हैं तो इसका अर्थ है भगवान शिव आपको शिव की कृपा प्राप्त होती है।

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First published on: 29-07-2022 at 15:03 IST
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