हिन्दू धर्म के मुताबिक रावण एक असुर तरह लेकिन रावण यानी दशानन को महादेव का सबसे बड़ा भक्त कहा जाता है। हिन्दू धर्म में रावण से जुड़े कई किस्से मिलते हैं। रावण बहुत ज्ञानी था, अपने तप के और विद्या के बल पर सभी ग्रह-नक्षत्रों को वश करने के बाद रावण में इतना घमंड आ गया था कि एक बार उसने अपने घमंड में चूर होकर भगवान शिव सहित कैलाश पर्वत को भी उठाने की कोशिश कीथी, जिसके बाद भगवान शिव नाराज हो गए थे। आइए इस कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं-
कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण भोलेनाथ को लंका लाने के लिए न जाने कौन- कौन सा प्रयत्न करना पड़ा था, लेकिन रावण की मंशा से पहले ही भोलेनाथ अवगत थे। इसलिए भगवान शिव रावण के हर प्रयास को विफल कर देते। ऐसे ही एक बार रावण के मन में विचार आया कि क्यों न अपने आराध्य भगवान शिव को कैलाश पर्वत सहित लंका में लाया जाए। कथाओं के अनुसार रावण काफी शक्तिशाली था और वह कैलाश को उठाने में सक्षम था।
रावण कैलाश पर्वत की तरफ निकल पड़ा और सोचते-विचारते हुए जब रावण कैलाश पर्वत की तलहटी में पहुंचा तो सामने से भगवान शिव के वाहन नंदी आ रहे थे। भोलेनाथ के महान भक्त रावण को देखकर नंदी ने प्रणाम किया, लेकिन अपने अहंकार में चूर रावण ने उनका नंदी के अभिवादन का कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद जब पुनः नंदी ने रावण से बात करने की कोशिश की तो घमंड में डूबा रावण नंदी का अपमान कर दिया और बताया कि वह भगवान शिव को लंका लेकर जाने के लिए आया है।
यह सुनते ही नंदी ने रावण से कहा और उसको चेतावनी दी कि जो करने जा रहे हो वह गलत है क्योंकि शिव की इच्छा के बिना उन्हें कहीं नहीं ले जा सकता। लेकिन रावण कहां मानने वाला था, उसे अपने बल और शक्ति पर घमंड था। इसके बाद रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने के लिए अपने हाथ को एक चट्टान के नीचे रखा तो कैलाश हिलने लगा। सारे देवगण और भगवान विष्णु और स्वयं ब्रम्हा जी चिंतित हो उठे लेकिन भगवान शिव बड़े ही आराम से अपने आसन पर बैठे यह सब देख रहे थे।
जब रावण ने दोनों हाथों को कैलाश पर्वत की के नीचे लगाया और जैसे ही उठाने की कोशिश किया उसके बाद भोलेनाथ ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया, जिससे रावण का हाथ भी पर्वत के नीचे फंस गया। अपनी हथेलियों को निकालने के लिए कई असफल प्रयासों के बाद वह दर्द से बिलबिलाता हुआ रोने लगा। यह देखकर नंदी से रहा नहीं गया अंततः उन्होंने रावण को भगवान शिव को प्रसन्न करने का सुझाव दिया। जिसके बाद रावण ने भगवान शिव की स्तुति के लिए शिव तांडव स्रोत की रचना की। इसे सुनकर भगवान शिव ने रावण को मुक्त कर दिया।