यहां पढ़ें भगवान विश्वकर्मा की जन्म कथा, पूजन से होता है शिल्पकला का विकास
इस दिन लोग अपनी दुकाने रंग बिरंगे कागज से सजाते हैं, दुकानों में लोग गुब्बारें लगाते हैं। अपने प्रतिष्ठानों में लोग विश्वकर्मा देवता की मूर्ति स्थापित कर औजारों की पूजा करते हैं।

आज देशभर में भगवान विश्वकर्मा जयंती मनाई जा रही है। भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार माना जाता है। मान्यता है की भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से शिल्पकला का विकास होता है। जिससे इंजीनियर, मिस्त्री, वेल्डर, बढ़ई, मिस्त्री जैसे पेशेवर लोग और अधिक कुशलता से काम कर पाते है। हिंदू धर्म में विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार माना जाता है। यह त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन लोग विश्वकर्मा देवता की पूजा करते है और अपने औजारों की साफ सफाई करते है, उनकी पूजा करते है। साथ ही प्रसाद बांटते हैं। इस दिन कारीगर अपने औजारों की पूजा करते हैं। कहा जाता है यदि जीवन में शिल्पकार ना रहे तो हम फिर से पाषाण काल में चले जाएंगे। आज जितना भी विकास हम देखतें हैं उसमें शिल्पकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए यह दिन शिल्पकारों के लिए बहुत खास होता है। जो लोग इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, चित्रकारी, वेल्डिंग और मशीनों के काम से जुड़े हुए वे खास तौर से इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।
हालांकि इस त्योहार को देश में कई जगह दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग अपनी दुकानें बंद रखते हैं। मुख्य रूप से इस पर्व पर उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और दिल्ली में बड़ी मूर्ति स्थापित की जाती है फिर उनकी अराधना होती है। इस दिन लोग अपनी दुकाने रंग बिरंगे कागज से सजाते हैं, दुकानों में लोग गुब्बारें लगाते हैं। अपने प्रतिष्ठानों में लोग विश्वकर्मा देवता की मूर्ति स्थापित कर औजारों की पूजा करते हैं। माना जाता है भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से शिल्प का विकास होता है और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
Vishwakarma Puja Vidhi, Mantra, Samagri: जानिए पूजा की विधि और शुभ मुहूर्त, इस मंत्र का करें जाप
विश्वकर्मा की जन्म कथा – पौराणिक कथा के अनुसार संसार की रंचना के आरंभ में भगवान विष्णु सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रह्मा जी दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र “धर्म” का विवाह “वस्तु” से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम ‘वास्तु’ रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला से परिपूर्ण थे। ‘वास्तु’ के विवाह के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम विश्वकर्मा रखा गया, जो वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बने। ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने सतयुग में स्वर्ग, त्रेतायुग में लंका, द्वापर में द्वारिका और कलियुग में जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों का निर्माण किया है।