Vidur Niti: कोरोना के इस कठिन समय में महात्मा विदुर की ये 4 बातें जीवन आसान बनाने में मददगार
Vidur Niti for Better Life: बेहतर जीवन जीने के लिए धन का होना बहुत जरूरी है। साथ ही, उसे कहां इस्तेमाल करना ये सोचना भी आवश्यक है।

Vidur Niti for Happy Life: महात्मा विदुर की गिनती महाभारत के सबसे समझदार पात्रों में की जाती है। धर्म और नीति के ज्ञाता विदुर एक दासी के गर्भ से जन्में थे, इस कारण उन्हें राजा बनने के अधिकार प्राप्त नहीं थे। मगर इससे उनका हस्तिनापुर के लिए प्रेम कम नहीं हुआ। वो सदैव महाराष्ट्र धृतराष्ट्र को ज्ञान का पाठ पढ़ाने की कोशिश में लगे रहते थे। विदुर को इतना अधिक ज्ञानी माना जाता था कि पितामह भीष्म भी कोई जरूरी फैसला लेने से पहले विदुर से सलाह मशविरा अवश्य करते थे। अपनी नीति पुस्तक में महात्मा विदुर ने कई ऐसी बातों का जिक्र किया है जिसे पढ़कर और समझकर लोग अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों को आसानी से पार कर सकते हैं।
‘ईर्ष्यी घृणी त्वसंतुष्ट: क्रोधनो नित्यशड्कितः।
परभाग्योपजीवी च षडेते दुखभागिनः।।’
इस श्लोक के जरिये विदुर कहना चाहते हैं कि दूसरों से ईर्ष्या, घृणा करने वाले, असंतोषी, क्रोधी, सदा संदेह करने वाले और पराये आसरे जीने वाले ये छः प्रकार के मनुष्य हमेशा दुखी रहते हैं। अतः यथा संभव इन प्रवृत्ति के लोगों से संपर्क बनाने से बचना चाहिए।
‘अष्टौ गुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम: श्रतुं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।।’
महात्मा विदुर के मुताबिक जो लोग बुद्धि, कुलीनता, संयम, ज्ञान, बहादुरी, कम बोलना, दान और दूसरे के उपकारों को याद रखते हैं, दूसरे लोगों की तुलना में उनकी इज्जत अधिक होती है। इस कारण लोग अकेलापन से नहीं जूझते हैं और उनका जीवन लोगों से भरा-पूरा होता है।
‘षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।’
विदुर के अनुसार लोगों को अपने अंदर मौजूद 6 दोष या अवगुण – नींद, आलस, डर, गुस्सा, तंद्रा और जानबूझ कर किसी कार्य में देरी करने की अपनी आदतों से पीछा छुड़ाना होगा। जो लोग अपनी इन आदतों को छोड़ देते हैं, वो अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं और आसानी व खुशी से अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
‘येऽर्थाः स्त्रीषु समायुक्ताः प्रमत्तपतितेषु च।
ये चानार्ये समासक्ताः सर्वे ते संशयं गताः।।’
बेहतर जीवन जीने के लिए धन का होना बहुत जरूरी है। साथ ही, उसे कहां इस्तेमाल करना ये सोचना भी आवश्यक है। विदुर की मानें तो बिना सोचे-समझे किसी के भी हाथ में धन देना उचित नहीं माना जाता है। इस श्लोक के जरिये महात्मा विदुर कहते हैं कि स्त्री, आलस्य से भरा व्यक्ति, पापी और अधर्मी मनुष्य को धन देने से बचना चाहिए।