कभी हम खुश रहते हैं तो कभी उदास। कभी ऐसा भी होता है कि हम बहुत दुखी हो जाते है। हम सोचते हैं कि हमारे साथ ही ऐसा हो रहा है लेकिन सभी के साथ ऐसा होता है। किसी भी इनसान की भावनाएं एक स्तर पर नहीं रह सकतीं। भावनाओं के न जाने कितने स्तर होते हैं। अगर भावनाओं का ग्राफ बनाया जाए तो उसमें अनेक उतार चढ़ाव देखने को मिलेंगे। भावनाओं के ये उतार चढ़ाव ही हमारी जिंदगी को अर्थवान बनाते हैं।
आप कहेंगे कि उदास और दुखी होकर जिंदगी कैसे अर्थवान हो सकती है। दरअसल उदासी या दुख हमें जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। अगर यह कहा जाए कि उदासी या दुख का भाव सच्चे अर्थों में जिंदगी की हकीकत से हमारा साक्षात्कार कराता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कोई भी एक भाव हमेशा नहीं रह सकता। इसलिए उदासी या दुख का भाव भी कुछ समय तक ही हमारे साथ रहता है।
हम सबके साथ ऐसा होता है कि किसी दिन हम बहुत खुश रहते हैं। हर काम में हमारा मन लगता है। हमें जिंदगी बहुत खुशगवार लगने लगती है। यह खुशी हमारे चेहरे पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसी तरह किसी दिन हम बहुत उदास हो जाते हैं। किसी भी काम में मन नहीं लगता। हमें लगने लगता है कि हम जिंदगी जी ही क्यों रहे हैं। यानी हमें जिंदगी पूरी तरह निरर्थक लगने लगती है।
हमारी जिंदगी में कुछ-कुछ समय बाद उदासी और खुशी के ये चरण आते रहते हैं। उदासी और खुशी के ये चरण जिंदगी की कई ऐसी वास्तविकताओं से हमारा परिचय कराते हैं, जिनका हमें पहले पता नहीं होता है। जाहिर है यदि जिंदगी में एक ही भाव रहता तो हम जीवन की अनेक सच्चाइयों से वंचित हो सकते थे। जब जीवन की अनेक सच्चाइयों से हमारा परिचय होता है तो हम अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल पाते हैं।
इसलिए जीवन के ये चरण हमें विभिन्न परिस्थितियों में जीने का हौसला भी प्रदान करते हैं। कई बार खुश या उदास होने के पीछे कोई वजह होती है तो कई बार ये भाव हमारे जीवन में आ जाते हैं। किसी कारण से खुश या उदास होने की बात तो समझ में आती है लेकिन जब इसके पीछे कोई ठोस कारण ही न हो तो यह सिद्ध होता है कि भावनाओं का ज्वार-भाटा आना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
हमारी दु:ख, सुख और उदासी रूपी भावनाएं लगातार बदलती रहती हैं। इसीलिए कभी-कभी हमें यह पता नहीं चलता है कि हम क्यों खुश या उदास हो रहे हैं। निश्चित रूप से खुश या उदास होने के पीछे हमारे वातावरण का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। वातावरण का प्रभाव किसी न किसी रूप में हमारी भावनाओं पर पड़ता ही है। अगर हम उदासी के शिकंजे में आ जाते हैं तो चिकित्सक भी वातावरण बदलने या फिर खराब हो चुके पारिवारिक माहौल को ठीक करने की सलाह देते हैं। वातावरण बदलने या पारिवारिक माहौल ठीक होने पर हमारी उदासी दूर होती भी है।
स्पष्ट है कि बाहरी वातावरण का असर हमारे आंतरिक वातावरण पर भी पड़ता है। लेकिन जब हमारा आंतरिक वातावरण बाहरी वातावरण के साथ तारतम्य नहीं बना पाता है तो कई समस्याएं सामने आती हैं। ये समस्याएं आसानी से सुलझ नहीं पाती हैं। क्योंकि हम इस बिगड़े हुए तारतम्य को समझ नहीं पाते हैं इसलिए हमें इन समस्याओं का स्रोत ही पता नहीं चल पाता है। ज्यादा खुशी का भाव भी कई तरह की समस्याएं पैदा करता है। जब हम बहुत ज्यादा खुश होते हैं तो हमारे अंदर ज्यादा आत्मविश्वास पैदा होता है। खुशी के माध्यम से पैदा हुए इस आत्मविश्वास के माध्यम से हम कई ऐसे काम कर देते हैं जो हमारे लिए परेशानी का सबब बनते हैं। इसलिए भावनानों के ज्वार-भाटे पर नियंत्रण बहुत जरूरी है।