राजस्थान के सिरोही शहर से करीब 22 किलोमीटर दूर अरावली स्थित नांदिया ग्राम की पवित्र धरती पर रिछी पर्वत की गोद में प्रसिद्ध रिछेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम और रावण के युद्ध के समय जामवंत युद्ध समाप्ति तक नहीं थके तो उन्होंने प्रभु श्रीराम से ही कहा कि अभी मुझे और युद्ध करना है।
इस पर भगवान श्रीराम ने कहा कि अब मैं आपको द्वापर युग में कृष्णावतार में मिलूंगा, तब आपकी यह इच्छा पूरी होगी। तब तक के लिए जामवंत रिछी पर्वत पर जाकर तपस्या में लीन हो गए। द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि चुराने का आरोप लगा तो अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए वह मणि की खोज में यहां पहुंचे। स्यमंतक मणि के पीछे प्रचलित कथानुसार, द्वापर युग के दौरान द्वारिका धाम क्षेत्र में सत्राजित नामक एक राजा था वह सूर्यदेव का महान भक्त था। सूर्यदेव ने ही उसे स्यमंतक मणि प्रदान की थी। यह मणि प्रतिदिन लगभग आठ भार सोना दिया करती थी। सत्राजित का एक भाई प्रसेन था।
वह एक दिन उस स्यमंतक मणि को गले में धारण करके जंगल में आखेट के लिए चला गया। वह घोड़े पर सवार होकर जा रहा था, तभी वन में एक सिंह ने उस पर हमला कर दिया और उसे वहीं घोड़े सहित मारकर मणि लेकर अपनी गुफा की ओर चल दिया। अपनी गुफा में प्रवेश करने से पहले ही जामवंत ने उसका वध करके मणि को अपने अधिकार में कर लिया।
जामवंत मणि लेकर अपनी गुफा में चले गए। दूसरी ओर, प्रसेन के वापस न लौटने से उसके भाई सत्राजित को चिंता हुई। वह उसे ढूंढने के लिए वन में गए। वहां जाकर उन्हें पता चला कि उनका भाई अब जीवित नही हैं। उसके मन में विचार आया कि उनका भाई मणि गले में धारण करके वन में गया था इसलिए हो सकता है कि श्रीकृष्ण ने मणि के लिए उसकी हत्या कर दी हो।
सत्राजित ने जब यह बात नगर के लोगों से कही तो यह बात श्रीकृष्ण तक भी पहुंच गई। इस बात को जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने कुछ विश्वसनीय लोगों के साथ मिलकर प्रसेन की खोज आरंभ कर दी। उसे तलाशते हुए वह वन में उस स्थान पर पहुंच गए जहां पर सिंह ने उसको मारकर उससे मणि ले ली थी।
वहां से उन्होंने सिंह के पंजों के निशान का पीछा करना शुरू किया तो वे सिंह की गुफा के द्वार तक पहुंच गए जहां सिंह को मारकर जामवंत ने उससे मणि प्राप्त कर ली थी। यहां उन्होंने जामवंत की पुत्री के गले में वह मणि देखी। लेकिन, जामवंत ने वह मणि लौटाने से इनकार कर दिया। इसके चलते श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच 28 दिन तक मल्ल युद्ध चला।
अंत में, भगवान श्रीकृष्ण ने जब अपना साक्षात विष्णु रूप जामवंत को दिखाया तो वह पहचान गए कि भगवान श्रीराम अपना वचन निभाने आए हैं। अपनी पुत्री जामवंती के साथ विवाह की शर्त पर जामवंत ने श्रीकृष्ण को मणि लौटा दी। श्रीकृष्ण ने शर्त मानकर जामवंती से ब्याह रचाया और मंदिर स्थित एक स्तंभ के चारों ओर फेरे लिए।
तब भगवान शिव ने वहां प्रकट होकर दोनों को आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद यही शिवलिंग स्वयंभू प्रकट हुआ जिसकी स्थापना श्रीकृष्ण के हाथों हुई। जामवंत रीछों के राजा थे, इसलिए इस स्थान का नाम रिच्छेश्वर महादेव पड़ा। आज भी यहां मौजूद शिवलिंग पर प्राकृतिक जनेऊ की आकृति बनी हुई है।
इस मंदिर के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व के चलते देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए आते हैं। पर्वतों के बीच में होने के कारण यह मंदिर बहुत ही मनमोहक है। मंदिर के नीचे गुफा के पास एक पानी का कुंड बना हुआ है, जहां हमेशा पानी रहता है। यह पानी कभी भी नहीं सूखता है। मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी परिवार के मनोज रावल बताते हैं कि रिछेश्वर महादेव जिन लोगों के कुलदेवता हैं, वे यहां अपने बच्चों का मुंडन कराने आते है।
श्रावण माह में यहां लंबी कतारों में लगने के बाद ही दर्शन होते हैं। एक किंवदंती के अनुसार श्रीकृष्ण भगवान जामवंती से विवाह के बाद मंदिर में बनी गुफा से माउंट आबू होते हुए द्वारका की ओर चले गए। इस मंदिर के अंदर से ही एक गुफा माउंट आबू तक जाती थी। लेकिन, इस गुफा के रास्ते से वन्य जीवों के मंदिर में आकर बैठ जाने के चलते कुछ दशक पूर्व इस गुफा को बंद कर दिया गया। रीछेश्वर महादेव पहुंचने के लिए आप रेल मार्ग से पिंडवाड़ा रेलवे स्टेशन से 15 किलोमीटर की दूरी स्थित गांव नांदिया में रीछी पर्वत की गुफा तक पहुंच सकते हैं।