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कब है पुत्रदा एकादशी, जानिये शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि

पुत्रदा एकादशी साल में दो बार होती है। पहली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं, जो जनवरी या दिसंबर माह में पड़ती है और दूसरी एकादशी को श्रावण एकादशी कहते हैं जो..

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पौष एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है (फाइल फोटो)

Paush Putrada Ekadashi 2021: संतान की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला यह एकादशी इस बार 24 जनवरी को है। इस एकादशी को सामान्य तौर पर विवाहित जोड़ों द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से संतान प्राप्ति का योग बनता है। आपको बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार, साल भर में कुल 24 एकादशी होती है। महीने की हर 11 वीं तिथि को एकादशी होती है अर्थात एक महीने में दो बार एकादशी होती है।

एक एकादशी पूर्णिमा के बाद और एक अमावस्या के बाद होती है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार होती है। पहली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं, जो जनवरी या दिसंबर माह में पड़ती है और दूसरी एकादशी को श्रावण एकादशी कहते हैं जो जुलाई या अगस्त के महीने में पड़ती हैं।

Pausha Putrada Ekadashi 2021 Shubh Muhurt: व्रत प्रारंभ: 23 जनवरी, शनिवार, रात 8:56 बजे

व्रत समाप्ति: 24 जनवरी, रविवार, रात 10: 57  बजे।

पारण का समय: 25 जनवरी, सोमवार, सुबह 7:13 से 9:21 बजे तक।

व्रत कथा- भद्रावती के राजा सुकेतु मन और उनकी रानी हबिया उदास रहते थे क्योंकि उनके पास कोई लड़का नहीं था। वे श्राद्ध कर्मकांडों के बारे में सोचकर बहुत चिंतित थे कि उनकी मृत्यु के बाद कौन उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध अनुष्ठान करेगा। हताशा में  राजा अपने राज्य और सभी सुख- सुविधाओं को छोड़ घने जंगलों में चले गए। कष्टों का सामना करने और बहुत दिनों तक जंगल में भटकने के बाद पौष एकादशी के दिन वो मानसरोवर तट पर रहने वाले कुछ संतों के आश्रम में गए।

राजा के बारे में जानने के बाद ऋषियों ने उन्हें सुझाव दिया कि पौष एकादशी व्रत का पालन करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। ऋषियों की सलाह का पालन करते हुए सुकेतु मन वापस साम्राज्य गए और अपनी रानी के साथ पौष एकादशी का व्रत रखा। इसके कुछ समय बाद ही रानी गर्भवती हो गईं और राजा- रानी को भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई।

पूजा विधि- व्रतधारियों को सुबह उठकर स्नान करना चाहिए। अगर आप संतान प्राप्ति के लिए व्रत कर रहे हैं तो पति पत्नी दोनों को इसका व्रत करना चाहिए। स्नान के पश्चात पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। आप चाहें तो भगवान विष्णु या कृष्ण के मंदिर जाकर वहां पूजा करें और प्रसाद चढ़ाएं। भगवान विष्णु की आरती करें। इस व्रत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है।

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First published on: 16-01-2021 at 11:59 IST
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