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परिवर्तिनी एकादशी की कथा पढ़ने से मिलती है पापों से मुक्ति, जानिए प्राचीन कथा

Parivartini Ekadashi 2020: एकादशी के दिन व्रत कर इस कथा को पढ़ने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

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दैत्य राजा बलि से तीनों लोक मुक्त कराने के लिए वामन अवतार लिया। यह भगवान विष्णु का पांचवा अवतार था।

Parsva Ekadashi 2020: परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 29 अगस्त, शनिवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु सोते हुए करवट बदलते हैं। इस एकादशी को पार्श्व एकादशी (Parsva Ekadashi), वामन एकादशी (Vaman Ekadashi), जयझूलनी एकादशी (Jai Jhulni Ekadashi), डोल ग्‍यारस (Dol Gyaras) और जयंती एकादशी (Jayanti Ekadashi) भी कहा जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु या उनके अवतारों की पूजा की जाती है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा: त्रेता युग की बात है। बलि नाम का एक दैत्य था। वह दैत्यों का राजा था। भगवान विष्णु का परम भक्त था। विष्णु जी को अपना आराध्य मान उनका पूजन किया करता था। साथ ही ब्राह्मणों का भी आदर सत्कार किया करता था। उन्हें कभी खाली हाथ नहीं लौटने देता था।

बलि का इंद्रदेव से बैर था। उसने अपनी शक्तियों से सभी देवी-देवताओं सहित इंद्र को जीत लिया था। तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। दैत्य के शासन का विस्तार देखकर सभी देवता चिंतित हो गए कि पृथ्वी पर दैत्यों का शासन स्थापित हो जाएगा। इसलिए सभी देवी-देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। उनकी स्तुति कर उनसे इस समस्या का समाधान मांगा।

भगवान विष्णु ने उनको आश्वासन दिया कि वह संपूर्ण विश्व पर दैत्यों का राज नहीं होने देंगे। क्योंकि इससे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा और चारों ओर हिंसा फैल जाएगी। उन्होंने दैत्य राजा बलि से तीनों लोक मुक्त कराने के लिए वामन अवतार लिया। यह भगवान विष्णु का पांचवा अवतार था।

वामन अवतार लेकर भगवान विष्णु राजा बलि के महल गए। वहां जाकर उन्होंने राजा बलि से संकल्प लेने को कहा कि वह वामन देव को तीन पग भूमि दान करेंगे। वामन की बातों से दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने यह समझ लिया कि यह भगवान विष्णु हैं और यह राजा बलि से तीनो लोक लेने आए हैं। गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को सावधान किया। लेकिन राजा बलि ने कहा यह संकल्प ले चुके हैं और वह विष्णु जी को अपना आराध्य मानते हैं तो उन्हें मना कैसे कर सकते हैं।

इस पर वामन देव ने दो पगों में ही समस्त संसार और लोकों को नाप दिया। इसके बाद विष्णु जी ने वामन देव से पूछा कि अब तीसरा पग कहां रखें। इसके जवाब में बलि महाराज ने अपना सिर भगवान विष्णु के कदमों में रख दिया और कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रखें। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने तीनों लोगों को दैत्य शासन से मुक्त कर दिया। एकादशी के दिन व्रत कर इस कथा को पढ़ने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

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First published on: 25-08-2020 at 09:26 IST
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