भय से मुक्ति दिलाती हैं देवी चंद्रघंटा, जानिये आज कैसे करें देवी की आरती
ऐसा माना जाता है कि देवी श्रद्धालुओं की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अलौकिक ज्ञान प्रदान करती हैं

नवरात्र के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की उपासना का विधान है। विद्वानों का मानना है कि मां चंद्रघंटा का रूप परम कल्याणकारी और शांतिदायक है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चांद मौजूद है। इसी कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। गले में सफेद फूलों की माला धारण किये देवी दुर्गा की शक्ति का ये रूप बाघ पर सवार रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी श्रद्धालुओं की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अलौकिक ज्ञान प्रदान करती हैं। भय से मुक्ति दिलाने में भी मां चंद्रघंटा की उपासना लाभप्रद मानी गई है। किसी भी पूजा को बगैर कथा और आरती के अधूरा माना गया है। ऐसे में आइए जानते हैं आज के दिन की विशेष व्रत कथा एवं आरती –
पूजा विधि: सबसे पहले नहा-धोकर पूजा घर साफ कर लें। देवी की स्थापित मूर्ति को गंगाजलन या फिर केसर और केवड़ा से स्नान कराएं। इसके उपरांत देवी को सुनहरे रंग के वस्त्र धारण कराएं। तदोपरांत, देवी मां को कमल और पीले गुलाब की माला अर्पित करें। फिर मिठाई, पंचामृत और मिश्री का भोग लगाएं। जो लोग दुर्गा पाठ करते हैं, वो चालीसा, स्तुति अथवा सप्तशती का पाठ करें।
मां चंद्रघंटा व्रत कथा: पुराणों में जिस कथा का जिक्र है उसके मुताबिक देव लोक में जब असुरों का आतंक अधिक बढ़ गया तब देवी दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस वक्त महिषासुर असुरों का स्वामी था। ये दुत्कारी महिष देवराज इंद्र का सिंहासन पाना चाहता था। स्वर्गलोक पर राज करने की अपनी इच्छा को साकार करने हेतु वो तमाम तरीके अपनाता था।
जब देवगणों को उसकी ये इच्छा ज्ञात हुई तो वो चिंतित होकर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। देवताओं के मुख से महिषासुर के अत्याचार को जानने के बाद तीनों अत्यंत क्रोधित हुए। उसी वक्त उनके मुख से उत्पन्न ऊर्जा से देवी का अवतरण हुआ। इन देवी को भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। वहीं शिव जी ने अपना त्रिशूल तो ब्रह्मा ने अपना कमंडल दिया। इस प्रकार सभी देवताओं ने देवी को कुछ-न-कुछ भेंट किया।
सबसे आज्ञा पाकर देवी चंद्रघंटा महिषासुर के पास गई। माता का विशालकाय स्वरूप देखकर दैत्य महिषासुर इस बात को भांप चुका था कि अब उसका अंत निश्चित है। बावजूद इसके, असुरों ने मां चंद्रघंटा पर हमला करना शुरू कर दिया। भयंकर युद्ध में महिषासुर काल के ग्रास में समा गया और देवी ने सभी देवताओं की रक्षा की।
देवी चंद्रघंटा की आरती:
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।
चंद्र समान तुम शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती।
क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।
सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।
कांची पुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।
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