नैना देवी शक्तिपीठ जो कि हिमाचल प्रदेश की एक पहाड़ी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि सती का आंख यहीं पर गिरा था। इसलिए इस स्थान का नाम नैना देवी पड़ा। हालांकि इस पीठ को 52 पीठों में नहीं रखा गया लेकिन सिद्धपीठ के रूप में इसे समूचे भारत में पूरी मान्यता प्राप्त है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे वह स्थान शक्तिपीठ बन गए जो अत्यंत पावन तीर्थ कहलाए। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। आज हम आपको इसी शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे हैं।
नैना देवी मंदिर की महिमा के बारे में जो कथा शास्त्रों में आई है उसके अनुसार नैना नाम का एक गुर्जर मंदिर इस पहाड़ी पर गाय चराने आता था। एक अन बयाई गाय जब मंदिर परिसर में स्थित पीपल के पेड़ के नीचे जाती है तो उसके स्तनों से अपने आप दूध निकल पड़ता है। कहते हैं कि यह दृश्य वह रोज देखता था। अंत में एक दिन उसने उस स्थान से पत्ते हटाए जहां पर गाय का दूध गिरता था। पत्ते हटाने पर एक दिन उसे मां भगवती की प्रतिमा दिखाई दी। उसी रात उसे देवी नैना ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि- ‘मैं आदिशक्ति दुर्गा हूं और मेरा मंदिर पीपल के नीचे बनवा दें तो मैं तेरे नाम से प्रसिद्ध हो जाऊंगी।’ नैना गुर्जर ने सुबह उठकर मंदिर की नींव रख दी।
जिसके बाद शीघ्र ही इस स्थान की महिमा चारों दिशाओं में फैल गई। साथ ही श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होने लगी तो भक्तों ने मां एक भव्य मंदिर बनवा दिया। जिसे नैना देवी के नाम से जाना जाने लगा। नैना देवी मंदिर के पास एक गुफा भी है जिसे नैना देवी गुफा कहते हैं। नैना देवी मंदिर का प्रांगण काफी बड़ा और पहाड़ी पर स्थित है। इसके चारों ओर दस फीट ऊंची चाहरदीवारी बनी हुई है। साथ ही इसके बीच में मुख्य मंदिर स्थित है। मंदिर प्रांगण के बाहर एक बड़ा मुख्य द्वार है जहां से भक्त अंदर जाते हैं।