Mangla Gauri Vrat 2020: आज सावन मास का दूसरा मंगला गौरी व्रत है। इस दिन माता पार्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। ये व्रत सावन के हर मंगलवार को रखा जाता है। विवाहित महिलाएं ये व्रत अपने पति और संतान के सुखद जीवन की कामना से रखती हैं। अविवाहित महिलाएं इस व्रत को अच्छे जीवनसाथी की कामना से रखती हैं।
पूजा विधि: इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है। मंगला गौरी व्रत पूजा के दौरान सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए। इनमें 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां और मिठाई मां को चढ़ाई जाती हैं। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि भी पूजा में होना चाहिए। पूजा के बाद मंगला गौरी की व्रत कथा सुननी चाहिए।
मंगला गौरी व्रत कथा: पौराणिक लोक कथा के अनुसार, पुराने समय में एक धर्मपाल नाम का सेठ था। उसके पास धनधान्य की कमी नहीं थी लेकिन उसका वंश बढाने के लिए उसके कोई संतान नहीं थी। इस वजह से सेठ और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे। जिसके चलते सेठ ने कई जप-तप, ध्यान और अनुष्ठान किए, जिससे देवी प्रसन्न हुईं। देवी ने सेठ से मनचाहा वर मांगने को कहा, तब सेठ ने कहा कि मां मैं सर्वसुखी और धनधान्य से समर्थ हूं, परंतु मैं संतानसुख से वंचित हूं मैं आपसे वंश चलाने के लिए एक पुत्र का वरदान मांगता हूं। देवी ने कहा सेठ तुमने यह बहुत दुर्लभ वरदान मांगा है, पर तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वरदान तो दे देती हूं लेकिन तुम्हारा पुत्र केवल 16 साल तक ही जीवित रहेगा। यह बात सुनकर सेठ और सेठानी काफी दुखी हुए लेकिन उन्होंने वरदान स्वीकार कर लिया।
देवी के वरदान से सेठानी गर्भवती हुई और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। सेठ ने अपने पुत्र का नामकरण संस्कार किया और उसका नाम चिरायु रखा। समय बीतता गया और सेठ-सेठानी को पुत्र की मृत्यु की चिंता सताने लगी। तब किसी विद्वान ने सेठ से कहा कि यदि वह अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करा दे जो मंगला गौरी का व्रत रखती हो। इसके फलस्वरूप कन्या के व्रत के फलस्वरूप उसके वर को दीर्घायु प्राप्त होगी। सेठ ने विद्वान की बात मानकर अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से ही किया, जो मंगला गौरी का विधिपूर्वक व्रत रखती थी। इसके परिणामस्वरूप चिरायु का अकाल मृत्युदोष स्वत: ही समाप्त हो गया और राजा का पुत्र नामानुसार चिरायु हो उठा। इस तरह जो भी स्त्री या कुंवारी कन्या पूरे श्रद्धाभाव से मां मंगला गौरी का व्रत रखती हैं उनकी सभी मनोरथ पूर्ण होती हैं और उनके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है।