Makar Sankranti (Khichdi) 2020: मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा, महत्व और सभी जानकारी यहां जानिए
Makar Sankranti 2020 Time in India: इस बार सूर्य का मकर राशि में गोचर 15 जनवरी को हो रहा है जिस कारण हिंदू पंचांग में इस पर्व की तिथि 15 जनवरी दी गई है। उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ इलाकों में इस त्योहार को खिचड़ी (Khichdi 2020) के नाम से जाना जाता है।

Makar Sankranti 2020: आज पूरे भारत में मकर संक्रांति मनाई जा रही है। ये त्योहार हर साल माघ महीने में मनाया जाता है। साल में कुल 12 संक्रांति आती हैं लेकिन सभी में से सूर्य के मकर राशि में गोचर करने का दिन ज्यादा खास माना गया है। इस पवित्र त्योहार में नदी स्नान कर दान करने की परंपरा है। तीर्थस्थलों पर स्नान करने का ये सबसे शुभ दिन है। जो लोग मकर संक्रांति के दिन नदी में स्नान न कर पायें उन्हें घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लेना चाहिए।
14 जनवरी को ही हर साल क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति? 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाने की वजह है सूर्य का राशि गोचर। जो समान्यत: जनवरी के चौदहवे- पहन्द्रवे दिन में होता है और ज्यादातर समय इसकी तारीख 14 ही पड़ती है। इसी दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश कर जाता है और खरमास की समाप्ति भी हो जाती है। जिससे एक महीने से रूके हुए मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं।
14 की जगह 15 जनवरी को क्यों मनाई जा रही है मकर संक्रांति? हिंदू त्योहारों की तारीख पंचांग देखकर ही निर्धारित की जाती है। हिंदी और अंग्रेजी की तारीखों में हमेशा अंतर रहता है। इसी वजह से हर साल आने वाले त्योहारों की तारीख हर बार अलग होती है। लेकिन तिथियों का क्षय हो जाए, तिथियां घट-बढ़ जाएं, अधिक मास का पवित्र महीना आ जाए परंतु मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही आती है। पर पिछले कुछ समय से इसकी तारीख में भी अंतर आने लगा है। इसकी शुरुआत 2015 से हुई थी और मकर संक्रांति की तारीखों को लेकर साल 2030 तक यही असमंजस बना रहेगा।
मकर संक्रांति से जुड़ी सभी जानकारी जानने के लिए बने रहिए हमारे इस ब्लॉग पर…
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मौनी अमावस्या को मौनी अमावस के नाम से भी जाना जाता है। जैसा की नाम से ही पता चलता है कि यह हिंदू धर्म में मौन रहने का दिन है। अगर पूरे दिन मौन व्रत रख पाना संभव न हो तो बहुत जरूरत पड़ने पर ही बोलें। जानिए इस बार की मौनी अमावस्या क्यों है खास...
सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए बेला का फूल चढ़ा सकते हैं. कुछ फूल सूर्य देव को बिल्कुल नहीं चढ़ाने चाहिए. ये पुष्प हैं गुंजा, धतूरा, अपराजिता और तगर आदि. सूर्य को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा दिन मकर संक्रांति का माना गया है. इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है और यह वर्ष का सर्वश्रेष्ठ दिन है. इस दिन किए गए उपाय शीघ्र फलदायी भी होते हैं.
यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अत: उत्सव के साथ ही सेहत का भी लाभ मिलता है।
माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्यागकर उनके घर गए थे इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन विशेष तौर पर गायों को हरा चारा खिलाया जाता है। इस दिन गंगासागर में मेला भी लगता है। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं। इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है।
इसी दिन से सौर नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। सूर्य जब एक राशि ने निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब दूसरा माह प्रारंभ होजा है। 12 राशियां सौर मास के 12 माह है। दरअसल, हिन्दू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र पर आधारित है। सूर्य पर आधारित को सौर्यवर्ष, चंद्र पर आधारित को चंद्रवर्ष और नक्षत्र पर आधारिक को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। जिस तरह चंद्रवर्ष के माह के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह सौर्यवर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। सौर्यवर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का महला माह चैत्र होता है। नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है।
मकर संक्रांति के इस पर्व पर खिचड़ी का काफी महत्व है। मकर संक्रांति के अवसर पर कई स्थानों पर खिचड़ी को मुख्य पकवान के तौर पर बनाया जाता है। खिचड़ी को आयुर्वेद में सुंदर और सुपाच्य भोजन की संज्ञा दी गई है। साथ ही खिचड़ी को स्वास्थ्य के लिए औषधि माना गया है। प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार जब जल नेती की क्रिया की जाती है तो उसके पश्चात् केवल खिचड़ी खाने की सलाह दी जाती है।
सूर्य जब मकर राशि में गोचर करता है तब मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। इस बार सूर्य का राशि गोचर 15 जनवरी को हुआ है। मकर संक्रांति के दिन स्नान दान का सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 15 मिनट से 9 बजे कर रहेगा। इसकी कुल अवधि 1 घंटा 45 मिनट की है। वैसे सुबह सवा सात से लेकर शाम 6 बजे तक मकर संक्रांति का मुहूर्त रहेगा।
मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारतवर्ष में अलग-अलग रूप में होता है। इस पर्व की खासियत है कि जब पौष मास में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तभी मनाया जाता है। यानी मकर संक्रांति पर सूर्य उपासना का ही महत्व दिया गया है। मकर संक्रांति पर दिन और रात बराबर होते हैं। आज के बाद से दिन लंबा और रातें छोटी होने लगेंगी।
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है। दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
तड़के सुबह उठ कर स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य दैं। इसके बाद श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ या गीता क पाठ करें। नए अन्न, कंबल और घी का दान करें। भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनाएं। भोजन भगवान को समर्पित करके ग्रहण करें।
पतंग महोत्सव पर्व- यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग छतों पर खड़े होकर पतंग उड़ाते हैं। हालांकि पतंग उड़ाने के पीछे कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना मुख्य वजह बताई जाती है। सर्दी के इस मौसम में सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा और हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सूर्य उत्तरायण होंगे। इसी काल से देवताओं के दिन शुरू हो जायेंगे। सूर्य सिद्धांत के अनुसार कर्क से धनु के सूर्य तक 6 माह देवताओं की रात्रि होती है। मकर से मिथुन के सूर्य तक 6 माह देवताओं के दिन होते हैं। देवताओं के दिन की शुरुआत संक्रांति से माना जाता
15 जनवरी को सुबह सात बजकर 19 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक का समय ध्यान, पूजा-पाठ, स्नान व दान के लिए श्रेष्ठ रहेगा। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व पर किया गया दान सौ गुना बढ़कर प्राप्त होता है। इसी कारण इस पर्व पर दान करने का विशेष महत्व है।
मकर संक्रांति पर स्नान कर दान करने का काफी महत्व माना गया है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और जरूरतमंदों को दान किया जाता है।
वैसे तो माघ मास के दौरान देश भर में कई जगहों पर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं लेकिन इसका विशेष आयोजन प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में देखा जाता है। पौष पूर्णिमा से लोग इन तीर्थस्थलों पर जुटना शुरू हो जाते हैं और महाशिवरात्रि तक यहां स्नान चलते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य फल और मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्नान की सभी तिथियों में से मकर संक्रांति का स्नान और मौनी अमावस्या के दिन के स्नान को विशेष रूप से फलदायी माना गया है।
सूर्य के मकर राशि में जाते ही खरमास की समाप्ति हो जायेगी। यानी कि 15 जनवरी से सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो रहे हैं। जानिए साल 2020 में कब कब रहेंगे शादी ब्याह के शुभ मुहूर्त...
सभी ग्रह कुछ कुछ समय के अंतराल में अपनी राशि बदलते हैं। इसी प्रक्रिया में कई बार ऐसी भी स्थिति बनती है कि एक ही राशि में कई ग्रह एक साथ आ जायें। 24 जनवरी को शनि (Shani Gochar 2020) का राशि परिवर्तन होगा। इस दौरान शनि देव अपनी ही राशि मकर (Makar Rashi) में गोचर करने लगेंगे। जहां पहले से ही उनके शत्रु माने जाने वाले सूर्य भी मौजूद रहेंगे। धार्मिक मान्यताओं अनुसार शनि अपने पिता सूर्य को अपना दुश्मन मानते हैं। इसलिए इन दोनों ग्रहों की युति कभी भी अच्छी नहीं मानी जाती। इसी के साथ बुध भी मकर राशि में विराजमान हैं। बुध और सूर्य के मिलने से बुधात्यि योग भी बन रहा है। जानिए अपना राशिफल
तीर्थ स्नान न कर पाने की स्थिति में अपने घर में रखे पवित्र तीर्थ जल से भी स्नान करने का विधान शास्त्रों ने किया है। सारे तीर्थों का स्मरण करके घर पर भी पुण्य स्नान किया जा सकता है, जो तीर्थ स्नान के समान ही पुण्यदायी है। कई धार्मिक पुस्तकों में इसके प्रमाण हैं। भले ही शिशिर ऋतु चल रही हो लेकिन मकर संक्रांति को गर्म जल से स्नान करने से बचना चाहिए। जितना हो सके तो स्वच्छ और शीतल जल का ही इस्तेमाल करें।
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने और उसका दान करने का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन काली उड़द की छिलके वाली दाल की खचड़ी बनाई जाती है। काली उड़द को शनि का तो चावल को चंद्र का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि इस दिन खिचड़ी का दान करने से चंद्र, शनि और सूर्य मजबूत होते हैं।
सूर्य देव जब मकर राशि में प्रवेश करके कर्क राशि की ओर जाते हैं, तो वह उत्तरायण कहलाता है। जब वे कर्क राशि में प्रवेश करके मकर की ओर गमन करते हैं तो वह दक्षिणायन कहलाता है। सूर्य देव मकर से मिथुन तक की 6 राशियों में 6 महीने तक उत्तरायण रहते हैं तथा कर्क से धनु तक की 6 राशियों में 6 महीने तक वे दक्षिणायन रहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव के दक्षिणायन और उत्तरायण होने से ही देवताओं का दिन और रात तय होता है। उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन देवताओं की रात्रि माना गया है। इस प्रकार देवताओं के लिए 6 माह का एक दिन और 6 माह का एक रात हुआ।
मेष - गुड़ और लाल मसूरवृष- सतनजा (सात अनाज) और कम्बलमिथुन- काला कंबल कर्क- साबुत उड़दसिंह- लाल मसूर और ऊनी वस्त्र कन्या -चने की दाल और कंबलतुला - काला कंबल वृश्चिक- सतनजा (सात अनाज)धनु - गुड़ और साबुत उड़द मकर- साबुत उड़द और चावल का मिश्रणकुम्भ - काला कंबल और सरसों का तेलमीन- साबुत उड़द
धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन तिलों का छह प्रकार की विधियों से सेवन करना चाहिए। ये छह विधियां इस प्रकार से हैं। तिलों के तेल से मालिश, तिलों वाले जल से स्नान, तिलों का दान, तिलों से बना भोजन, जल में तिलों का अर्पण और अग्नि में तिलों की आहुति।
इस दिन प्रातः उगते हुए सूर्य को तांबे के लोटे के जल में कुंकुम, अक्षत, तिल तथा लाल रंग के फूल डालकर अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय ॐ घृणिं सूर्य: आदित्य मंत्र का जप करते रहें।
मकर संक्रांति 2020- 15 जनवरीसंक्रांति काल- 07:19 बजे (15 जनवरी)पुण्यकाल-07:19 से 12:31 बजे तकमहापुण्य काल- 07:19 से 09: 03 बजे तकसंक्रांति स्नान- प्रात: काल, 15 जनवरी 2020
मकर संक्राति एक ऐसा त्योहार है जिस दिन किए गए काम अनंत गुणा फल देते हैं. संक्राति के दिन सूर्य वरदान बनकर चमकते हैं. मान्यता है कि संक्राति के दिन शुभ मूहूर्त में नदियों का पानी अमृत में बदल जाता है. संक्राति के दिन किया गया दान लक्ष्मी की कृपा बनकर बरसता है. मकर संक्रांति को दान, पुण्य और देवताओं का दिन कहा जाता है. ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन स्नान और दान से तमाम जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं.
मेष: मंत्र- ऊं रवये नम:।वृषभ: मंत्र- ऊं मित्राय नम:।मिथुन: मंत्र- ऊं खगाय नम:।कर्क: मंत्र- जय भद्राय नम:।सिंह: मंत्र- ऊं भास्कराय नम:।कन्या : मंत्र- ऊं भानवे नम:।तुला: मंत्र- ऊं पुष्णे नम:।वृश्चिक: मंत्र- ऊं सूर्याय नम:।धनु: मंत्र- ऊं आदित्याय नम:।मकर: मंत्र- ऊं मरीचये नम:।कुम्भ: मंत्र- ऊं सवित्रे नम:।मीन: मंत्र- ऊं अर्काय नम:।
मकर संक्रांति पर्व सूर्य के मकर राशि में जाने पर मनाया जाता है। इस बार सूर्य का राशि परिवर्तन 14 की आधी रात यानी 15 को होने जा रहा है। इस लिहाज से मकर संक्रांति के पुण्य काम 15 जनवरी को करना ही फलदायी रहेगा।
सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।
यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग छतों पर खड़े होकर पतंग उड़ाते हैं। हालांकि पतंग उड़ाने के पीछे कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना मुख्य वजह बताई जाती है। सर्दी के इस मौसम में सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा और हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है।
मकर संक्रांति के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है। इस दिन से सभी शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी समाप्त हो जाता है। बता दें, उत्तर प्रदेश में इस पर्व पर खिचड़ी सेवन और खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व बताया जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था। यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में हर साल मेला लगता है।
मकर संक्रांति 2020- 15 जनवरी संक्रांति काल- 07:19 बजे (15 जनवरी)पुण्यकाल-07:19 से 12:31 बजे तकमहापुण्य काल- 07:19 से 09: 03 बजे तकसंक्रांति स्नान- प्रात: काल, 15 जनवरी 2020
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन की गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते है सागर में जा मिली थीं। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का सूचक भी माना जाता है। आज से वातारण में कुछ गर्मी आने लगती है और फिर बसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है. कुछ अन्य कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं। इस वजह से भी गंगा स्नान का आज विशेष महत्व माना गया है।
यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग छतों पर खड़े होकर पतंग उड़ाते हैं। हालांकि पतंग उड़ाने के पीछे कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना मुख्य वजह बताई जाती है। सर्दी के इस मौसम में सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा और हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है।
माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी भूलाकर उनके घर गए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से व्यक्ति का पुण्य प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है। इस दिन से मलमास खत्म होने के साथ शुभ माह प्रारंभ हो जाता है। इस खास दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है।
सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।
भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। तिल को पानी में मिलाकार स्नान करना चाहिए. अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था। यही वजह है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में हर साल मेला लगता है।
- तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें- शनि देव के मंत्र का जाप करें- मंत्र होगा - "ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः"- घी,काला कम्बल और लोहे का दान करें- दिन में अन्न का सेवन न करें
मकर संक्रांति के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष फलदायी माना गया है। इस दिन से सभी शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी समाप्त हो जाता है। बता दें, उत्तर प्रदेश में इस पर्व पर खिचड़ी सेवन और खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व बताया जाता है।
इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और गीता के अनुसार जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर का त्याग करता है, वह श्री कृष्ण के परम धाम में निवास करता है. इस दिन लोग मंदिर और अपने घर पर विशेष पूजा का आयोजन करते हैं. पुराणों में इस दिन प्रयाग और गंगासागर में स्नान का बड़ा महत्व बताया गया है, जिस कारण इस तिथि में स्नान एवं दान का करना बड़ा पुण्यदायी माना गया है.
उत्तरायण बुधवार, जनवरी 15, 2020 कोउत्तरायण संक्रान्ति का क्षण - 02:22 ए एममकर संक्रान्ति बुधवार, जनवरी 15, 2020 को
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365 दिन व 6 घंटे में पूरा करती है। वहीं चंद्र गणना के अनुसार 354 दिन का एक वर्ष होता है। इस प्रकार सूर्य गणना व चंद्र गणना के तरीके में प्रत्येक वर्ष 11 दिन तीन घड़ी व 46 पल का अंतर आता है। इसी कारण प्रमुख त्योहारों की तिथियां आगे-पीछे होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति भगवान भाष्कर से जुड़ा है जो बारह राशियों में प्रवेश करता है। राशि प्रवेश को संक्रांति कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार जिस साल सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी की रात को होता है, उस वर्ष मकर संक्रांति दूसरे दिन सुबह यानी 15 जनवरी को मान्य होती है।
मकर संक्रांति की तारीखों को लेकर पिछले कुछ समय से उलझन बनी हुई है। इसकी वजह सूर्य के राशि परिवर्तन के समय में अंतर आना है। वैसे तो आमतौर पर 14 जनवरी को सूर्य का राशि परिवर्तन होता था। जिस कारण ज्यादातर इसी दिन मकर संक्रांति मनाई गई। लेकिन पिछले साल की तरह ही इस बार भी सूर्य का राशि परिवर्तन 15 जनवरी को हो रहा है जिस कारण ज्योतिष अनुसार 14 की जगह 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाना सबसे फलदायी रहेगा।
सिंह राशि के स्वामी सूर्य ऊर्जा के कारक माने जाते हैं। जो एक राशि में लगभग एक महीने तक विराजमान रहते हैं। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहा जाता है तो वहीं जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व है। इस बार सूर्य का धनु से मकर में गोचर 15 जनवरी को होने जा रहा है। सूर्य का मकर में गोचर काफी शुभ माना जाता है। इस दिन से ही पिछले एक माह से रूके हुए शादी ब्याह के मुहूर्त में शुरू हो जायेंगे। जानिए सूर्य के राशि गोचर का आपके ऊपर क्या पड़ेगा प्रभाव…
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के शुभ अवसर जो व्यक्ति पवित्र नदी में डुबकी लगाता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इस दान धर्म का कार्य करने से पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य ग्रह दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर आता है। सूर्य की ये स्थिति बेहद शुभ होती है। धार्मिक नज़रिए देखें तो इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी छोड़कर उनके घर मिलने आते हैं। यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन को सुख और समृद्धि से भी जोड़ा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन की गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते है सागर में जा मिली थीं। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का सूचक भी माना जाता है। आज से वातारण में कुछ गर्मी आने लगती है और फिर बसंत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है. कुछ अन्य कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन देवता पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और गंगा स्नान करते हैं। इस वजह से भी गंगा स्नान का आज विशेष महत्व माना गया है।
मकर संक्रांति 2020- 15 जनवरीसंक्रांति काल- 07:19 बजे (15 जनवरी)पुण्यकाल-07:19 से 12:31 बजे तकमहापुण्य काल- 07:19 से 09: 03 बजे तकसंक्रांति स्नान- प्रात: काल, 15 जनवरी 2020
मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि के बारे में बताता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। ज्योतिषीय गणना के अनुसार मकर संक्रांति से ही सूर्य उत्तरायण होंगे।